Friday, March 14, 2025
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फेल पर फेल हुआ ये शख्स, टूटे मुसीबतों के पहाड़, तीन बार 0 से शुरू किया काम, अब जेब में 8000 करोड़ की कंपनी


Success Story : राजेंद्र चमारिया कहते हैं, “नियती हमारी इच्छाओं से बड़ी होती है, लेकिन हमें उम्मीद नहीं छोड़नी चाहिए और लड़ाई जारी रखनी चाहिए.” अब आप पूछेंगे कि राजेंद्र चमारिया कौन हैं? राजेंद्र चमारिया दरअसल उन लोगों के लिए एक उम्मीद हैं, जो किस्मत के थड़ेपे झेल-झेलकर थक गए हैं. उन लोगों के लिए उगते सूरज की तरह हैं, जिन्हें लगता है कि उनके जीवन में अंधेरा ही अंधेरा है. बिजनेसमैन राजेंद्र चमारिया अब एक सीमेंट कंपनी के मालिक हैं, जिसकी वैल्यूएशन 8,300 करोड़ रुपये से अधिक है. उनकी जिंदगी में ऐसी-ऐसी घटनाएं हुई हैं कि कोई सोच भी नहीं सकता. हम यकीन के साथ कह सकते हैं कि राजेंद्र चमारिया की पूरी कहानी जानकर हर व्यक्ति में कठिनाइयों से जूझने की इच्छा और प्रबल हो जाएगी.

राजेंद्र चमारिया को एक बार नक्सलवादियों ने उठा लिया था. लगभग 7 दिनों बाद वे नक्सलियों से छूटे. उन्होंने फोर्ब्स इंडिया से बातचीत में इसका जिक्र किया और कहा, “उसके बाद अब तक मैं जितने साल जीया हूं, वह मेरे लिए बोनस है.” एक समय ऐसा आया कि उनके परिवार के जमे-जमाये धंधे पर सुप्रीम कोर्ट का ऐसा फैसला आया कि सबकुछ शून्य हो गया. संकट पर संकट आते चले गए, मगर राजेंद्र चमारिया ने उम्मीद नहीं छोड़ी और नियती बदल डाली.

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क्या थी राजेंद्र चमारिया के अपहरण की कहानी?
5 फरवरी 1992 के दिन राजेंद्र चमारिका को नक्सलवादियों, जिन्हें अल्ट्रा (Ultra) कहा जाता है, ने अरुणाचल प्रदेश के बंदेरदेवा स्थित उनके घर से उठा लिया था. वे 7 दिन बाद 12 फरवरी को छूटकर घर लौटे. इन सात दिनों में अरुणाचल प्रदेश सरकार ने एक बड़ा बचाव अभियान (Rescue operation) चलाया. आज भी अरुणाचल प्रदेश में अल्ट्राज़ लोगों को बंधक बना लेते हैं या अपहरण कर लेते हैं. northeastlivetv की एक रिपोर्ट के मुताबिक, 5 नवम्बर 2023 को एक गांव के मुखिया का अपहरण कर लिया था, जिसे छोड़ने की एवज में 60 लाख रुपये मांगे गए. अल्ट्राज़ द्वारा लोगों पर ये अत्याचार आज से नहीं कई दशकों से जारी हैं. इसी का शिकार बिजनेसमैन राजेंद्र चमारिया भी हुए थे.

कोर्ट से फैसले से ठप हुआ बिजनेस
राजेंद्र चमारिया के पड़दादा (Forefather) राजस्थान से असम चले गए थे. पूर्वोत्तर (NorthEast) में उन्होंने लड़की का बड़ा बिजनेस (Timber Empire) खड़ा कर लिया था. बाद में जब परिवारों के बीच बिजनेस का बंटवारा हुआ तो राजेंद्र के पिता 1971 में अरुणाचल प्रदेश में जा बसे. वहां उन्होंने अपना टिंबर बिजनेस स्थापित करने की कोशिश की. जहां वे जाकर बसे थे, वहां न तो बिजली थी, न स्कूल और न ही कोई दूसरा इंफ्रास्ट्रक्चर था. ऐसे में राजेंद्र चमारिया ने 1979 में असम से ग्रेजुएशन करने के बाद अपने पिता के बिजनेस में हाथ बंटवाना शुरू कर दिया. अरुणाचल में चूंकि जमा-जमाया काम नहीं था, तो सबकुछ जीरो से शुरू करना था.

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चमारिया परिवार का टिंबर बिजनेस फिर से जमने लगा था कि सुप्रीम कोर्ट का एक आदेश आया. इस आदेश से पूर्वोत्तर भारत में पेड़ों को काटे जाने पर पूर्ण रूप से प्रतिबंध लगा दिया गया. यहां तक कि जिनके पास पहले से स्टॉक रखा था, वे इसे बेच भी नहीं सकते थे. इस आदेश के बाद फिर से एक बार कहानी शून्य पर आकर रुक गई. इसके बाद चमारिया परिवार भारी कर्ज में डूब गया. ऐसा नियती को मंजूर था, मगर राजेंद्र चमारिया को नहीं.

सीमेंट बिजनेस की शुरुआत और फिर डूब जाना
राजेंद्र चमारिया को पहले से ही अहसास था कि सबकुछ टिंबर बिजनेस पर टिका हुआ था, जोकि काफी नहीं था. अपने बिजनेस को डायवर्सीफाई करने के उद्देश्य से उन्होंने 1988 में कॉन्क्रीट स्लीपर बनाने का काम शुरू किया था. बाद में उन्हें एक सरकारी ठेका भी मिल गया. उसके दो साल बाद 1990 में उन्होंने राजस्थान के जयपुर में सीमेंट बनाने की एक छोटी-सी यूनिट स्थापित की. यह एक पायलट प्रोजेक्ट था. 1995 में उन्होंने इस प्रोजेक्ट को एक कदम आगे बढ़ाने के लिए हिमाचल प्रदेश में भारी निवेश करके एक सीमेंट प्लांट लगा दिया. उसके अगले ही साल 1996 में जब कोर्ट ने टिंबर पर बैन लगा दिया तो राजेंद्र चमारिया ज्यादा परेशान नहीं थे. उन्हें उम्मीद थी कि उनका सीमेंट का काम उस धक्के को सहन करने में मदद करेगा.

मगर, नियती कुछ और चाहती थी. उनके हिमाचल प्रदेश और राजस्थान में स्थित सीमेंट के प्लांट बड़े फेल्योर साबित हुए. कारण था, यहां कच्चे माल की उपलब्धता का न होना. यहां बाजार में पहले से बड़े खिलाड़ी मौजूद थे तो मार्केट भी उनके पक्ष में नहीं थी. एक बार फिर पूरी कहानी जीरो पर आ गई.

एक बार फिर नई शुरुआत
चमारिया भी जिद्द के पक्के थे. वे भी यूं ही नियती से हारने वाले नहीं थे. चूंकि उन्हें पूर्वोत्तर भारत की परिस्थितियों का अंदाजा था, तो उन्हें लगा कि उस क्षेत्र में सीमेंट के लिए कच्चा माल भी उपलब्ध है और मार्केट भी है. राजेंद्र चमारिया ने अपना सेटअप अरुणाचल प्रदेश में लगाने की प्लानिंग की.

फोटो – स्टार सीमेंट.

राजेंद्र चमारिया से पहले ACC और अल्ट्राटेक जैसे बड़े नामों ने नॉर्थ ईस्ट क्षेत्रों पर कब्जा करने की कोशिश की, मगर वे सफल नहीं हुए. 2000 में राजेंद्र चमारिया ने असम के दक्षिणी हिस्से में एक सीमेंट मैन्युफैक्चरिंग कंपनी की स्थापना की. इस तरह स्टार सीमेंट (Star Cement) का जन्म हुआ.

मंझे हुए बिजनेसमैन की तरह किया काम
कई जगहों पर काम करने से उन्हें सीमेंट के धंधे की समझ तो थी ही. उन्हें मालूम था कि लाइमस्टोन (Limestone) के बिना उत्पादन संभव नहीं. इसलिए उन्होंने मेघालय के लमशोंग (Lumshong) में एक प्लांट लगाया. यह प्लांट लाइमस्टोन माइन से केवल 3 किलोमीटर दूर था. अपने पहले ही साल में कंपनी ने 4 लाख टन सीमेंट का उत्पादन कर दिया.

लॉजिस्टिक की लागत कम हुई, लेकिन बिजली और ग्रांइडिंग अभी भी एक राह का रोड़ा बना हुआ था. इससे पार पाने के लिए राजेंद्र चमारिया ने लमशोंग में ही एक ग्रांइडिंग यूनिट भी लगा दी और 2009 में मेघायल में 8 मेगावाट का एक पावर प्लांट भी लगा दिया. अब सबकुछ एक सीध में आ गया. कंपनी ने 9 लाख मीट्रिक टन सीमेंट का उत्पादन किया और 450 करोड़ की सेल को छू लिया. राजेंद्र चमारिया नहीं थके, मगर नियती थक चुकी थी. नियती ने मानो राजेंद्र चमारिया को ही अपनी नियती समझ लिया था.

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राजेंद्र चमारिया की कंपनी स्टार सीमेंट के क्लाइंट्स में भेल (BHEL) और एनटीपीसी (NTPC) जैसी कंपनियां शामिल हो चुकी थीं. 2013 में सेल बढ़कर 596.87 करोड़ हो गई. इसके बाद इन्होंने गुवाहाटी के सोनापुर में 2 मिलियन टन का ग्रांइडिंग प्लांट लगा दिया. 2013 में ही कंपनी शेयर बाजार में भी लिस्ट हो गई. नॉर्थ ईस्ट इंडिया में जहां बड़ी-बड़ी कंपनियां पैर नहीं जमा पाईं, स्टार सीमेंट ने अपनी धाक जमा दी. अब यह कंपनी नॉर्थ ईस्ट की नंबर 1 सीमेंट कंपनी बन चुकी है. सालाना लगभग 3.10 मीट्रिक टन का उत्पादन हो रहा है.

2014 तक, 10 राज्यों में पहुंच चुकी कंपनी की सेल 1000 करोड़ रुपये तक पहुंच गई. उनके सीमेंट की मांग इतनी ज्यादा हो गई कि लगभग 1,000 डीलर और 5,000 रिटेलर उनके प्लांट के बाहर लाइन लगाकर खड़े हो गए, ताकि राजेंद्र चमारिया से एक मुलाकात हो जाए.

अक्षय कुमार को बनाया ब्रांड एंबेसडर
स्टार सीमेंट को नॉर्थ ईस्ट से बाहर निकलना चाह रही थी. इसलिए बॉलीवुड स्टार अक्षय कुमार को ब्रांड एंबेसडर बनाया गया. विज्ञापन की टैगलाइन रखी गई “सॉलिड सेटिंग”. अक्षय कुमार की अपील लोगों तक पहुंची और 2022 तक कंपनी का रेवेन्यू 2221.82 करोड़ रुपये पर पहुंच गया. सेल का 20 फीसदी हिस्सा बिहार और पश्चिम बंगाल से आने लगा. स्टार सीमेंट आज 8,300 करोड़ के वैल्यूएशन वाली कंपनी है. आधिकारिक वेबसाइट पर मिली जानकारी के मुताबिक, कंपनी 2026 तक 15 मिलियन टन कैपेसिटी हासिल करने के लिए अग्रसर है.

ट्रेंडलाइन के मुताबिक, राजेंद्र चमारिया के पास स्टार सीमेंट (Star Cement) के 4.83 प्रतिशत शेयर हैं. कंपनी की वैल्यू 8326.12 करोड़ रुपये की है. इस हिसाब से राजेंद्र चमारिया की हिस्सेदारी 409.8 करोड़ रुपये हुई. इसके अलावा एल्फालॉजिक टेक सिस्टम्स (Alphalogic Techsys Ltd.) में चमारिया की 1.05% की हिस्सेदारी है. इनकी वैल्यू तकरीबन 3 करोड़ रुपये है. इस तरह राजेंद्र चमारिया की नेट वर्थ 412 करोड़ रुपये है.

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