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विपक्षी एकता को लेकर 23 जून को बिहार की राजधानी पटना में बड़ी बैठक होने वाली है। इससे पहले ही ‘साथी’ दलों में फूट पड़ती नजर आ रही है। एक ओर जहां दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल राजस्थान में खुलकर कांग्रेस पर निशाना साध रहे हैं। वहीं, पश्चिम बंगाल में सीएम ममता बनर्जी भी कांग्रेस पर निशाना साधने का कोई मौका नहीं छोड़ रहीं। केरल में सीपीएम नेता भी प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व पर सवाल उठा रहे हैं।
राजस्थान से बंगाल तक सवाल
हाल ही में राजस्थान पहुंचे केजरीवाल ने कहा कि कांग्रेस के 50 वर्ष और भाजपा के 18 वर्ष के शासन में सिवाए भ्रष्टाचार, गरीबी, पिछड़ापन, अशिक्षा, बेरोजगारी तथा भुखमरी के देश को कुछ नहीं मिला। इधर, बंगाल में सीएम बनर्जी भी साफ कर चुकी हैं कि अगर कांग्रेस उनकी धुर विरोधी वाम दल के साथ रहती है, तो वह कांग्रेस के साथ नहीं जाएंगी।
एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, आप के वरिष्ठ नेताओं का कहना है कि उनकी पार्टी की मौजदूगी एक दर्जन राज्यों में है। साथ ही उनके पास मध्य प्रदेश, राजस्थान और छत्तीसगढ़ चुनाव में कांग्रेस और भाजपा दोनों का सामना करने के लिए प्लान है। ऐसे में यह योजना कांग्रेस के साथ कलह की वजह बन सकती है। हालांकि, खास बात है कि दिल्ली अध्याधेश के मुद्दे पर अब तक कांग्रेस आप नेता के समर्थन में खुलकर नहीं आई है।
केरल में सीपीएम ने घेरा
केरल में सीपीएम प्रदेश सचिव एमवी गोविंदन ने आरोप लगाए हैं कि कांग्रेस के प्रदेश अध्यक्ष के सुधाकरण सजा काट रहे फर्जी एंटीक डीलर मोंसन मवुंकल के घर पर उस समय मौजूद थे, जब एक नाबालिग के साथ यौन हिंसा हो रही थी। शनिवार को ही एक पॉक्सो कोर्ट ने मवुंकल को बलात्कार मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई है।
कांग्रेस से ये दल भी दूर
23 जून को पटना में होने वाली बैठक से तेलंगाना राष्ट्र समिति, तेलुगु देशम पार्टी और बीजू जनता दल भी दूरी बना सकते हैं। एक ओर जहां मुख्यमंत्री के चंद्रशेखर राव कांग्रेस को ‘बंगाल की खाड़ी’ में बहाने की बात कर रहे हैं। वहीं तेदेपा प्रमुख चंद्रबाबू नायडू भाजपा के साथ नए रिश्ते तलाश रहे हैं। ओडिशा सीएम नवीन पटनायक भी अकेले चुनाव लड़ने की बात कह चुके हैं।
क्या नीतीश कुमार का फॉर्मूला है वजह?
कहा जा रहा है कि बिहार के सीएम और विपक्षी एकता के मुख्य खिलाड़ी माने जा रहे नीतीश कुमार के ‘एक उम्मीदवार’ फॉर्मूले पर विपक्ष को आपत्ति हो सकती है। पंजाब, दिल्ली, ओडिशा, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और पश्चिम बंगाल में इस उपाय पर सहमति बनाना मुश्किल हो सकता है।