रुद्रादित्य प्रकाशन से प्रसिद्ध बाल गीतकार द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी के बाल गीतों का संकलन प्रकाशित हुआ है. ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी बालगीत कोश’ नाम के इस बाल कविता संग्रह का संपादन किया है प्रसिद्ध गीतकार डॉ. ओम निश्चल और डॉ. विनोद माहेश्वरी ने. विनोद माहेश्वरी द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी जी के पुत्र हैं. पुस्तक हाथ में आई और जैसे-जैसे इसके पन्नों को पलटना शुरू किया, दिल और दिमाग बचपन के दिनों में खोने लगा.
हापुड़ के एक स्कूल में जब पढ़ना-लिखना शुरू किया तो पढ़ाई के दौरान हिंदी की किताबों में कुछ ऐसी कविताएं थीं जिनकी दो-चार लाइन दिमाग में मानो छप-सी गई थीं. समय के साथ-साथ बचपन की बहुत सारी बातें विस्मृत होती गईं. इनमें ज्यादातर बातें स्कूल के दिनों की हैं. लेकिन रह-रहकर कुछ कविताओं की लाइनें होंठों पर खुद-ब-खुद बुदबुदाने लगती हैं. ना तो ये कविताएं पूरी याद हैं और न ये याद पड़ता है किस कक्षा में इन्हें पढ़ा था. बारिश होने पर ‘रिमझिम रिमझिम बरसा पानी’ लाइन होंठों पर आ जाती है. हां इसमें एक पंक्ति और याद आती है- ‘फिसला पैर गिरी शीला’. इससे ज्यादा कुछ नहीं.
एक कविता और याद पड़ती है- ‘जिसने सूरज चांद बनाया, जिसने चिड़ियों को चहकाया’. आठवीं या हाईस्कूल में अंग्रेजी के पाठ्यक्रम में एक निबंध आया करता था- If I were a Prime Minister यानी यदि मैं प्रधानमंत्री होता. उस समय प्रधानमंत्री होने पर क्या होता या ना होता, इसका तो पता नहीं लेकिन एक कविता अनायास याद आन पड़ती- ‘यदि मैं किन्नर नरेश होता’. इन कविताओं के बारे में ना तो ज्यादा विस्तार से पता था और ना ही ये जानकारी कि इनके लेखक कौन थे.
साहित्यकार और भाषाविद् डॉ. ओम निश्चल के सहयोग से जब ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी बालगीत कोश’ को पढ़ने का मौका मिला तो दिमाग में घूम रहीं एक-दो लाइनों की तमाम कविताओं की पंक्तियां आंखों के सामने खुद-ब-खुद आपस में जुड़ने लगीं. इन कविताओं के साथ दिए गए चित्र भी भले ही धंधुले लेकिन आकार लेने लगे.
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इस बालगीत कोश के पन्ने पलटते हुए इसकी भूमिका पर जो नजर पड़ी तो उस पर भी ‘यदि होता किन्नर नरेश’ वाली कविता दी हुई थी. पहले इस कविता को ही पढ़ लिया जाए-
यदि होता किन्नर नरेश
यदि होता किन्नर नरेश मैं
राजमहल में रहता
सोने का सिंहासन होता
सिर पर मुकुट चमकता।
बंदी जन गुण गाते रहते
दरवाजे पर मेरे
प्रतिदिन नौबत बजती रहती
सन्ध्या और सवेरे।
मेरे वन में सिंह घूमते
मोर नाचते आंगन
मेरे बागों में कोयलियां
बरसाती मधु रस कण।
मेरे तालाबों में खिलतीं
कमल दलों की पांती
बहुरंगी मछलियां तैरतीं
तिरछे पर चमकाती।
यदि होता किन्नर नरेश मैं
शाही वस्त्र पहन कर
हीरे, पन्ने, मोती, माणिक
मणियों से सज धज कर।
बांध खड्ग तलवार
सात घोड़ों के रथ पर चढ़ता
बड़े सवेरे ही किन्नर के
राजमार्ग पर चलता।
राजमहल से धीमे धीमे
आती देख सवारी
रुक जाते पथ, दर्शन करने
प्रजा उमड़ती सारी।
‘जय किन्नर नरेश की जय हो’
के नारे लग जाते
हर्षित होकर मुझ पर सारे
लोग फूल बरसाते।
सूरज के रथ सा मेरा रथ
आगे बढ़ता जाता
बड़े गर्व से अपना वैभव
निरख निरख सुख पाता।
तब लगता मेरी ही हैं ये
शीतल, मंद हवाएं
झरते हुए दूधिया झरने
इठलाती सरिताएं।
हिम से ढकी हुई चांदी सी
पर्वत की मालाएं
फेन रहित सागर, उसकी
लहरें करती क्रिड़ाएं।
दिवस सुनहरे, रात रुपहली
ऊषा सांझ की लाली
छन-छन कर पत्तों से बुनती
हुई चांदनी जाली।
इस कविता के बारे में खुद ओम निश्चल लिखते हैं- “बचपन में प्राथमिक कक्षाओं की प्रवेशिका में पहली बार यह गीत पढ़ा और इसकी मोहक धुन में खो गया था. यह कविता आज भी मेरी ही नहीं, लाखों लोगों की स्मृति में होगी.” बिल्कुल सही कहा ओम निश्चल जी ने. जिन लाखों लोगों की स्मृति में यह कविता है उनमें एक मैं भी हूं.
रुद्रादित्य प्रकाशन से प्रकाशित हुए ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी बालगीत कोश’ का संपादन डॉ. ओम निश्चल और डॉ. विनोद माहेश्वरी ने किया है.
किताब के पन्ने फटाफट पलटता जाता हूं और जिस भी कविता से थोड़ी-बहुत जान-पहचान सी दिखलाई पड़ती है, फौरन पढ़ने लगता हूं. एक-एक करके कई कविताएं पढ़ डालीं. अपनी बेटी को सुबह जागाने के लिए मैं अक्सर जिस कविता को गुनगुनाया करता था, वह भी इसी संग्रह का एक हिस्सा है-
सूरज निकला
सूरज निकला
चिड़ियां बोली
कलियों ने भी
आंखें खोलीं।
आसमान में
छायी लाली।
हवा बही सुख
देने वाली।
नन्हीं नन्हीं
किरणें आयीं।
फूल हँसे
कलियां मुसकायीं।
ईश्वर को याद करते हुए स्कूलों में इससे अच्छी प्रार्थना और क्या हो सकती है- ‘जिसने सूरज चांद बनाया’. इस गीत के माध्यम से हम ईश्वर का तो नमन करते ही हैं, उसका धन्यवाद करते हैं, साथ में कुदरत का भी स्मरण करते हैं-
जिसने सूरज चांद बनाया
जिसने सूरज चांद बनाया
जिसने धरती गगन बनाया
जिसने तारों को चमकाया
जिसने फूलों को महकाया
जिसने सर सर हवा चलायी
जिसने जल की नदी बनायी
उस प्रभु को हम सीस नवाते
उस प्रभु को हम सीस झुकाते।
और अब मेरी पसंदीदा कविता. जब भी जोर से बारिश होती है. बिजली कड़कती है और बादलों के गरजने से डरकर भागने वाली शीला हर बार मेरे आगे ही फिसल पड़ती है-
रिमझिम रिमझिम
रिमझिम रिमझिम बरसा पानी
झम झम- झमझम बरसा पानी।
बदला चमका बिजली कड़की
भागी डरकर शीला लड़की
और जोर से बरसा पानी।
झमझम-झमझम बरसा पानी।
फिसला पैर गिरी ज्यों शीला
हँसी जोर से मीरा-लीला
दौड़ी तब शीला की नानी।
रिमझिम-रिमझिम बरसा पानी।
बालगीत या कविता की बात हो और गुड्डे-गुड्डियों का जिक्र ना आए, कैसे संभव है. हमारे समय में बच्चियों की संसार तो गुड्डे-गुड्डियों के इर्द-गिर्द ही समायी होती थी. आज भले ही बच्चों की दुनिया मोबाइल, कंप्यूटर, लैपटॉप या फिर स्कूल के होमवर्क में उलझ कर रह गई हो, लेकिन जब तक गुड्डे-गुड्डिया के ब्याह का जिक्र ना हो तो बचपन कुछ अधुरा-सा ही लगता है.
मुन्नी मुन्नी, ओढ़े चुन्नी
मुन्नी मुन्नी ओढ़े चुन्नी
गुड़िया खूब सजाई
किस गुड्डे के साथ हुई तय
इसकी आज सगाई?
मुन्नी मुन्नी, ओढ़े चुन्नी
कौन खुशी की बात है?
आज तुम्हारी गुड़िया प्यारी
की क्या चढ़ी बरात है?
मुन्नी मुन्नी, ओढ़े चुन्नी
गुड़िया गले लगाये
आंखों से यों, आंसू ये क्यों
रह रह बह-बह आए?
मुन्नी मुन्नी, ओढ़े चुन्नी
क्यों ऐसा यह हाल है?
आज तुम्हारी गुड़िया प्यारी
जाती क्या सुसराल है?
‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी बालगीत कोश’ में लगभग 225 बालगीत हैं. हर विषय और हर वर्ष के लिए अलग-अलग गीत कविताएं. इस संग्रह की सबसे अच्छी बात ये है कि अभिभावक इसकी मदद से बच्चों को मिले होलीडे होमवर्क का पूरा कर सकते हैं. क्योंकि होलीडे होमवर्क में हिंदी के पाठ्यक्रम में ऐसे कई क्रियाकलाप हैं, जिनमें अलग-अलग विषयों की कविताओं को लिखने की बात कही गई है.
निश्चित ही ‘द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी बालगीत कोश’ हर घर में रखने वाला बालगीत संग्रह है. इसके माध्यम से न केवल हम अपने बच्चों को हिंदी के गीत और कविताओं के नजदीक लाने का काम कर सकते हैं, साथ ही ये हमें यानी बड़ों को उनके बचपन की सैर कराने में भी मदद करेगा.
पुस्तकः द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी बालगीत कोश
संपादकः डॉ. ओम निश्चल और डॉ. विनोद माहेश्वरी
प्रकाशनः रुद्रादित्य प्रकाशन, प्रयागराज
मूल्यः 525 रुपये
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Tags: Books, Hindi Literature, Hindi poetry, Hindi Writer, Literature
FIRST PUBLISHED : June 12, 2023, 17:05 IST