Wednesday, February 5, 2025
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बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त: हर आखिरी सांस के साथ कर सकते हो एक ताजा शुरुआत


हर चीज बदलती है.
अपनी हर आखि‍री सांस के साथ
तुम एक ताजा शुरुआत कर सकते हो.
लेकिन जो हो चुका, सो हो चुका.
जो पानी एक बार तुम शराब में
उडेल चुके हो, उसे उलीच कर
बाहर नहीं कर सकते.

जो हो चुका, सो हो चुका है.
वह पानी जो एक बार तुम शराब में उडेल चुके हो
उसे उलीच कर बाहर नहीं कर सकते
लेकिन
हर चीज बदलती है
अपनी हर आखि‍री सांस के साथ
तुम एक ताजा शुरुआत कर सकते हो.

हर चीज बदलती है
अपनी हर आखिरी सांस के साथ
तुम एक ताजा शुरुआत कर सकते हो.

जर्मनी के प्रख्‍यात नाट्यकार, कवि, लेखक बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त की 14 अगस्‍त को पुण्‍यतिथि है. जब-जब दुनिया पर युद्ध का खतरा गहरा होता है तब-तब बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त याद आते हैं. जब-जब साम्राज्‍यवाद और पूंजीवाद के नाखून मानवता को लहूलुहान करते हैं तब-तब ब्रेख्‍त याद आते हैं. वे श्रेष्‍ठ नाटककार माने गए लेकिन उतने की बेहतर कवि भी हैं. उन्‍होंने जितनी बेहतर कविताएं रची हैं, उतनी ही प्रभावी छोटी कहानियां भी लिखी हैं. प्रथम और द्वितीय विश्‍व युद्ध की विभीषिका के बीच लिखा गया उनका सारा साहित्‍य हमें हमेशा ही मानवता पर आसन्‍न खतरों के प्रति आगाह करता है. इसलिए ब्रेख्‍त को उनके नि‍र्वासित जीवन की घटनाओं से समझने की जगह उनके साहित्‍य से समझना अधिक आसान और प्रासंगिक है.

बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त का जन्म 10 फरवरी 1898 को जर्मनी के बावेरिया प्रांत के ऑग्सबर्ग कस्बे में हुआ था. ऑग्सबर्ग में इनके पिता एक पेपरमिल में प्रबंध निदेशक थे. स्कूली शिक्षा ऑग्सबर्ग में पूरी करने के बाद 1917 में ब्रेख्‍त ने म्यूनिख यूनिवर्सिटी में मेडिकल साइंस की पढ़ाई आरंभ की. मेडिकल की पढ़ाई के दौरान इनका रुझान ज़्यादातर कविता और नाट्यलेखन की ओर ही बना रहा. उनकी कुछ कविताएं ऑग्सबर्ग के एक अखबार में प्रकाशित हो चुकी थीं. प्रथम विश्वयुद्ध के अंतिम वर्ष में ब्रेख्‍त को फौज से भर्ती होने का बुलावा आ गया. मेडिकल के छात्र होने के कारण उन्‍हें चिकित्सा कोर में भर्ती किया गया. सेना की नौकरी ने उनके जीवन पर जो प्रभाव छोड़ा, उसकी वजह से वह जिंदगी भर युद्धविरोधी बने रहे. इस शान्तिकामी दर्शन का असर बाद में उनके राजनीतिक दृष्टिकोण पर भी पड़ा.

ब्रेख्‍त ने अपना पहला नाटक ‘बाल’ 1918 में लिखा. इस नाटक में एक युवा कवि की ऐसी उदात्त भावनाओं को नाट्यकथा का आधार बनाया गया है, जो जीवन के नशे में चूर होकर इतना अधिक उन्मत्त हो गया है कि तमाम सामाजिक रस्मों को तिलांजलि देकर वह आवारा और हत्यारा बन जाता है.

अपने विचार के कारण और तात्‍कालिक वैश्विक परिस्थितियों के कारण ब्रेख्‍त का जीवन निर्वासन में ही गुजरा. 30 जनवरी 1933 को जब हिटलर जर्मनी की सत्ता पर काबिज हुआ, तब ब्रेख्‍त के जीवन में निर्वासन का लंबा सिलसिला शुरू हुआ. सबसे पहले वह जर्मनी से निकलकर डेनमार्क आए. मार्च 1938 में जर्मनी द्वारा ऑस्ट्रिया का अधिग्रहण करने के बाद ब्रेख्‍त का लेखन अधिक वैचारिक होने लगा. इस दौर का सर्वाधिक उल्लेखनीय नाटक ‘द लाइफ ऑफ गैलीलियो’ है. इस नाटक का केंद्रीय पात्र ऐसा प्रतिभाशाली वैज्ञानिक है जो अपने प्रतिद्वंद्वियों से घिरा हुआ है.

द्वितीय विश्वयुद्ध के करीब आते आते ब्रेख्‍त को महसूस होने लगा था कि डेनमार्क में रह पाना भी सुरक्षित नहीं होगा. वे अप्रैल 1939 में स्वीडन और एक वर्ष बाद फिनलैंड चले गए. वे 1936 से 1939 तक मास्को से प्रकाशित होने वाली एक जर्मन साहित्यिक पत्रिका में वह बतौर सहायक सम्पादक के रूप में जुड़े रहे थे. अतः मई 1941 में अमरीकी वीसा प्राप्त होने पर वह अमेरिका पहुंच गए. अमेरिका में वे कैलीफोर्निया में रहे. अपनी न्यूयार्क यात्रा के दौरान उन्होंने हॉलीवुड के लिए भी काम करने के प्रयास किए लेकिन सफल नहीं हो सके. उनका जीवन एक देश से दूसरे देश और एक स्‍थान से दूसरे स्‍थान पर निर्वासन में ही गुजरा. शांतिप्रिय लेखन का पर्याय बने ब्रेख्‍त को मई 1955 में लेनिन शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया. फिर 14 अगस्त 1956 को दिल का दौरा पड़ने से ब्रेख्‍त का देहांत हो गया. बीसवीं सदी के इस महान कवि-नाटककार बर्तोल्‍त ब्रेख्‍त को आज दुनिया उनके विचारों के कारण जानती है. वे कई लेखकों के आदर्श हैं और लाखों पाठकों के प्रिय.

ब्रेख्‍त मार्क्‍सवादी थे और कार्ल मार्क्स के इस कथन को उन्होंने अपने नाट्य लेखक का केंद्र में रखा था कि सवाल केवल दुनिया को समझने का नहीं है, बल्कि उसे बदलने का भी है. वे मानते थे कि राजनीति को समझे बिना दुनिया को नहीं बदला जा सकता. इसीलिए राजनीतिक तौर पर शिक्षित होना बहुत जरूरी है. इस बारे में उनका यह कथन काफी कुछ कहता है:

सबसे ज्‍यादा शिक्षित व्यक्ति वह होता है जो राजनीतिक रूप से अशिक्षित होता है. वह सुनता नहीं, बोलता नहीं, राजनीतिक सरगर्मियों में हिस्सा नहीं लेता. वह नहीं जानता कि ज़िंदगी की कीमत, सब्जियों, मछली, आटा, जूते और दवाओं के दाम तथा मकान का किराया – यह सब कुछ राजनीतिक फैसलों पर निर्भर करता है. राजनीतिक रूप से अशिक्षित व्यक्ति इतना घामड़ होता है कि वह इस बात पर घमंड करता है और छाती फुलाकर कहता है कि वह राजनीति से नफरत करता है. वह कूढ़मगज नहीं जानता कि उसकी राजनीतिक अज्ञानता किस तरह एक औरत को वेश्या, एक परित्यक्त बच्चे को चोर बनाती है और एक व्यक्ति को बुरा राजनीतिज्ञ बनाती है, जो भ्रष्ट राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय कम्पनियों का टुकड़खोर चाकर होता है.

ब्रेख्‍त को जानने के लिए उनका साहित्‍य पढ़ना ही काफी है. ख्‍यात लेखक मोहन थपलियाल द्वारा अनुदित ब्रेख्‍त का लेखन ‘इकहत्तर कविताएं और तीस छोटी कहानियां’ शीर्षक वाली पुस्‍तक में संकलित हैं. इन कविताओं और कहानियों में ब्रेख्‍त के दर्शन को समझा जा सकता है.

लड़ाई का कारोबार

एक घाटी पाट दी गयी है
और बना दी गयी है एक खाई.

आने वाले महान समय की रंगीन कहावत
जंगल पनपेंगे फिर भी
किसान पैदा करेंगे फिर भी
मौजूद रहेंगे शहर फिर भी
आदमी लेंगे सांस फिर भी.

युद्ध जो आ रहा है

युद्ध जो आ रहा है
पहला युद्ध नहीं है.
इससे पहले भी युद्ध हुए थे.
पिछला युद्ध जब ख़त्म हुआ
तब कुछ विजेता बने और कुछ विजित.
विजितों के बीच आम आदमी भूखों मरा
विजेताओं के बीच भी मरा वह भूखा ही .

कामयाबी का सौंदर्य

महाशय ‘क’ ने रास्ते से गुज़रती हुई एक अभिनेत्री को देखकर कहा – ‘काफी खूबसूरत है यह.’ उनके साथी ने कहा- इसे हाल ही में कामयाबी – मिली है, क्योंकि वह खूबसूरत है.’ ‘क’ महाशय खीझे और बोले खूबसूरत है क्योंकि उसे कामयाबी हासिल हो चुकी है.’

महाशय ‘क’ का प्रेम

महाशय ‘क’ से पूछा गया, ‘जब आप किसी आदमी को प्यार करते हैं, तब क्या करते हैं?’
महाशय ‘क’ ने जवाब दिया ‘मैं उस आदमी का एक खाका बनाता हूँ और फिर इस फ़िक्र में रहता हूँ कि वह हू-ब-हू उसी के जैसा बने.’
‘कौन? वह खाका?’
‘नहीं’ महाशय ‘क’ ने जवाब दिया ‘वह आदमी.’
डबल बधाई

साहित्यकार गुन्थर वाइजनबोर्ग को एक साहित्य पुरस्कार मिला. यह ख़बर सुनते ही महाशय ‘ब’ ने उन्हें फोन किया और कहा- ‘बधाई देता हूं. कितनी रकम का पुरस्कार था भई यह?’
गुन्थर वाइजनबोर्ग ने रकम गिनाई. ‘दस हजार मार्क.’
‘तो फिर हार्दिक बधाई लें.‘ महाशय ‘ब’ बोले.

Tags: Hindi Literature, Literature, Literature and Art



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