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इलाहाबाद हाईकोर्ट में श्री बांके बिहारी मंदिर के चारों ओर कॉरिडोर बनाने के मामले में सेवायतों की ओर से कहा गया कि मंदिर प्रबंधन न तो धन देगा और न ही मंदिर के कामकाज में सरकार के किसी भी प्रकार के हस्तक्षेप को स्वीकार किया जाएगा। यदि सरकार वहां व्यवस्थाएं बनाना चाहती है तो वह अपने स्तर से बनाए। श्री बांके बिहारी मंदिर के सेवायतों को मंदिर प्रबंधन में सरकार का हस्तक्षेप स्वीकार्य नहीं है। इस पर हाईकोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि वह मंदिर के पैसे को छोड़कर अन्य कोई तरीका बताए कि किस प्रकार कॉरिडोर का निर्माण संभव हो सकेगा।
कोर्ट ने राज्य सरकार से पूछा है कि कॉरिडोर बनाने में कितना खर्च आएगा और इसका इंतजाम सरकार किस प्रकार से करेगी। कोर्ट ने सरकार से यह भी पूछा कि वाराणसी में काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनाने में कितना धन खर्च हुआ था। राज्य सरकार का पक्ष रख रहे अपर महाधिवक्ता मनीष गोयल का कहना था कि यदि एक ट्रस्ट बना दिया जाए तो उसमें सरकार भी अंशदान दे सकती है लेकिन मंदिर सेवायतों को ट्रस्ट का प्रस्ताव मंजूर नहीं था।
अपर महाधिवक्ता का कहना था कि जमीन के अधिग्रहण में लगभग 100 करोड़ रुपये खर्च होंगे और अन्य धनराशि भी लगेगी, जिसका इंतजाम मंदिर में आने वाले चढ़ावा और सरकार द्वारा मिलकर किया जा सकता है। इस पर कोर्ट का कहना था कि सरकार अपनी ओर से क्या करेगी, इस बारे में जानकारी दे। इस पर अपर महाधिवक्ता ने कहा कि बेहतर हलफनामा दाखिल करने के लिए उन्हें और समय चाहिए। इस पर कोर्ट ने अगली सुनवाई के लिए पांच अक्टूबर की तारीख लगाई है।
उल्लेखनीय है कि श्री बांके बिहारी मंदिर में श्रद्धालुओं की अपार भीड़ से होने वाली असुविधा को देखते हुए राज्य सरकार ने मंदिर के चारों ओर कॉरिडोर बनाने का प्रस्ताव दिया है। सरकार चाहती है कि मंदिर में आने वाले चढ़ावा की रकम से कॉरिडोर का निर्माण किया जाए लेकिन मंदिर के सेवायतों का कहना है कि मंदिर प्राइवेट संपत्ति है। सेवायत इसमें सरकार का किसी भी प्रकार का हस्तक्षेप नहीं चाहते हैं। इस पर कोर्ट ने दोनों पक्षों को इस मसले का समाधान बताने के लिए कहा है।
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