Home National बांस का बिस्तर, चादर की दीवार… मणिपुर के राहत कैंप में ढेरों दुश्वारियां झेल रहे लोग, बोले- राख हो गए हमारे घर

बांस का बिस्तर, चादर की दीवार… मणिपुर के राहत कैंप में ढेरों दुश्वारियां झेल रहे लोग, बोले- राख हो गए हमारे घर

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बांस का बिस्तर, चादर की दीवार… मणिपुर के राहत कैंप में ढेरों दुश्वारियां झेल रहे लोग, बोले- राख हो गए हमारे घर

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इंफाल. हिंसा प्रभावित मणिपुर के अस्थायी राहत कैंप में लोग बेहद दुश्वारियों का सामना कर रहे हैं और उन्हें बिस्तर, मच्छरदानी, बिजली जैसी बुनियादी सुविधाएं भी मयस्सर नहीं हैं. मणिपुर के बिष्णुपुर जिले में एक अस्थायी राहत केंद्र में सैकड़ों अन्य लोगों के साथ रह रहीं 42 वर्षीय अंगोम शांति जैसी महिलाओं को यहां उक्त बुनियादी सुविधाओं के अभाव के अलावा पुरुषों-महिलाओं के लिए अलग-अलग स्नानघर जैसी कठिनाइयों का भी सामना करना पड़ रहा है.

बच्चों और वयस्कों समेत करीब 800 लोग थंगजिंग मंदिर और मोइरांग लमखाई के पास स्थित राहत आश्रयों में दयनीय स्थिति में रह रहे हैं. इनका संचालन तीन संगठनों द्वारा किया जा रहा है. वे परिवार जो बड़े आंगन, अन्न भंडार पेड़ों से सुसज्जित घरों में रहते थे, अब पारंपरिक बांस की चटाइयों पर चादर बिछाकर फर्श पर सो रहे हैं और बीच में लटकाई गई चादर विस्थापित परिवारों के बीच स्थान का विभाजन करती हैं.

‘हमारे घर राख में तब्दील हो गए’
तीन बच्चों की मां शांति कहती हैं, ‘हमार भविष्य अंधकारमय है. हमारे पास लौटने के लिए कोई घर नहीं है. हमारे घर राख में तब्दील हो गए हैं. हमें नहीं पता कि हमारी क्या गलती थी. हममें से ज्यादातर लोग केवल उन्हीं कपड़ों के साथ भागे जो पहने हुए थे.’

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वह तोरबंग बांग्ला इलाके में रहती थीं जो ‘आदिवासी एकजुटता मार्च’ के दौरान 3 मई को भड़की सांप्रदायिक हिंसा से सबसे पहले प्रभावित हुआ था. शांति अब एक सामुदायिक हॉल में 175 अन्य लोगों के साथ रहती हैं, जहां भीषण गर्मी के बावजूद बिजली का अभाव है. इसी तरह से इसके पड़ोस में स्थित एक गेस्टहाउस में 365 लोग रहे हैं, जबकि 112 लोग पास एक ‘मंडप’ में रह रहे हैं. ये सभी गैर जनजातीय लोग हैं.

लाठियों और हथियारों से लैस लोगों ने किया हमला
3 मई की घटना के बाद पलटवार के कारण उपजी सांप्रदायिक हिंसा के बारे में बताते हुए तोरबंग गोविंदपुर की 72 वर्षीय बिरेन क्षेत्रीमायुम ने कहा, ‘करीब 1,000 जनजातीय लोग लाठियों से लैस थे और कुछ के हाथों में आधुनिक हथियार थे. उन्होंने बिना किसी उकसावे के हम पर हमला करना शुरू कर दिया. जहां तक उनकी नजर पड़ी, उन्होंने हमारे घरों, दुकानों और हर चीज में तोड़फोड़ की और आग लगा दी.’ उन्होंने कहा कि तोरबंग बांग्ला और तोरबंग गोविंदपुर पर हमले के बाद भीड़ कंगवई और फौगाकचौ की ओर बढ़ी और तोड़-फोड़ की.

राहत शिविरों का संचालन फिलहाल तीन संगठनों-बिष्णुपुर लीगल एड सर्विसेज, मताई सोसाइटी और श्री सत्य संगठन की ओर से किया जा रहा है. इन राहत शिविरों में रहने वाले ज्यादातर लोग पेशे से किसान हैं या दुकानदार हैं. इनमें से कई ने सुरक्षा प्रदान करने में सरकार की विफलता पर नाराजगी जताई है.

अधिकारियों ने कहा कि मणिपुर में जातीय हिंसा में मरने वालों की संख्या बढ़कर 54 हो गई है.

Tags: Manipur News, Relief Camp, Violence

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