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‘ठठरी को बंधो’ आपने यह कहते हुए चर्चित कथावाचक धीरेंद्र शास्त्री को भी सुना होगा। सवाल उठते रहे हैं कि आखिर इस शब्द का मतलब क्या है। बागेश्वर धाम वाले शास्त्री के अनुसार, ‘यह गाली नहीं बुंदेलखंड का भावनात्मक शब्द है।’ हालांकि, सवाल का जवाब यहीं खत्म नहीं होता है। हिंदी में इसके अपने मायने हैं।
शास्त्री कहते हैं, ‘पहली बात तो श्रीमान तुम्हें अर्थ ही पता नहीं है। ठठरी का मतलब मरना नहीं होता। ठठरी का मतलब होता है, जिसपर शव को रखा जाता है।’ दरअसल, ठठरी शब्द का मतलब अर्थी होता है। अर्थी के जरिए ही पार्थिव देह को अंतिम संस्कार के लिए ले जाया जाता है। इसका निर्माण बांस से होता है।
बुंदेलखंड और मालवा क्षेत्र के लिए यह शब्द नया नहीं है। ग्रामीण इलाकों में इसे आसानी से सुना जा सकता है। एक ओर जहां इसका इस्तेमाल नाराजगी या झल्लाहट के लिए किया जाता है। वहीं, ग्रामीण क्षेत्रों में जनता मजाक में भी इस शब्द के उपयोग से नहीं चूकती।
एक कथा के दौरान धीरेंद्र शास्त्री को कहते हुए सुना जा सकता है, ‘मां भी गुस्से में ठठरी बार देती, तो क्या वह लड़के को मारना चाहती है? जवाब दीजिए।’ उन्होंने कहा, ‘हम भी गुरु हैं। हम कब चाहेंगे कि हमारे बच्चों के साथ बुरा हो जाए। हम दावे से बोलते हैं कि हम ठठरी बारते हैं व्यास पीठ से, लेकिन बारते उनकी जो राम का नहीं होता है।’