सोनिया मिश्रा/ रुद्रप्रयाग.आंखों के फड़कने पर हम अक्सर शुभ और अशुभ संकेत खोजते हैं. मान्यताओं का यह सिलसिला कई बार हमें जीवन में कुछ बेहतर होने के प्रति उत्साहित या बुरा होने का संदेश देकर निराश करता है लेकिन अगर ऐसा लगातार हो रहा है, तो आपको सचेत हो जाना चाहिए. क्योंकि यह हमारी आँखों और शरीर से जुड़ी कई बीमारियों का संकेत हो सकता है. उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग में जिला अस्पताल के नेत्र विशेषज्ञ डॉ अमित बताते हैं कि लगातार आंख का फड़फड़ाना कई बीमारियों का संकेत देता है, जिसे देखते हुए पुराने लोग शुभ या अशुभ से जोड़कर देखते थे. वह आगे कहते हैं कि इसके तीन कारण मायोकेमिया, ब्लेफेरोस्पाज्म, हेमीफेशियल स्पाज्म होता है.
मायोकेमिया
उन्होंने कहा कि इस समस्या में आंखों का फड़कना नॉर्मल होता है, जो कभी-कभार होता है और खुद से कुछ देर में ठीक भी हो जाता है. यह समस्या ज्यादातर स्ट्रेस, आंखों की थकान, कैफीन के ज्यादा सेवन, नींद की कमी या फिर लंबे वक्त तक मोबाइल या कंप्यूटर के ज्यादा इस्तेमाल से होती है.
ब्लेफेरोस्पाज्म
डॉ अमित ने कहा कि यह समस्या आंखों की मसल्स सिकुड़ने की वजह से होती है, जो आंखों के लिए नुकसानदायक होता है. इस बीमारी में व्यक्ति को पलकें झपकाते हुए दर्द होता है और कई बार तो आंखों को खोलना भी मुश्किल हो जाता है. इसके साथ ही आंखों में सूजन बनी रहती है, चीज़ें धुंधला दिखाई देती हैं.
हेमीफेशियल स्पाज्म
उन्होंने आगे कहा कि इस प्रॉब्लम में चेहरे का आधा हिस्सा सिकुड़ जाता है, जिसका इसका असर आंख पर भी नजर आता है. पहले तो इसमें आंखें फड़कती हैं लेकिन बाद में गाल और मुंह की मसल्स भी फड़कने लगती हैं. यह आमतौर पर किसी तरह के जलन और चेहरे की नसों के सिकुड़ने की वजह से होता है. इस तरह का फड़कना लगातार बना रहता है.
नींद में कमी और थकान हो सकते हैं कारण
आँखों के डॉक्टरों का मानना है कि यह कोई बेहद गंभीर समस्या नहीं है और इसकी वजह से कोई बड़ी परेशानी नहीं होती. इस समस्या के कारणों में आंखों में ड्राईनेस, पलकों में संक्रमण या सूजन, लंबे समय तक स्क्रीन देखना, जिससे कंप्यूटर विजन सिंड्रोम भी होता है या नींद में कमी या अन्य कारणों से होने वाली थकान हो सकते हैं. इन मामलों में लुब्रिकेटिंग आई ड्रॉप्स और जेल के प्रयोग की सलाह दी जाती है. लेकिन अगर इसका संबंध फेशियल डायस्टोमास से होता है, तो इसमें ऑप्थेलमोलॉजी और न्यूरोलॉजी से जुड़ी जांच कराने की जरूरत पड़ती है, जिनमें न्यूरोइमेजिंग तकनीक का सहारा भी लिया जा सकता है. गौरतलब है कि फेशियल डायस्टोमास में सामान्य असेंशियल ब्लेफरोस्पास्म और बेनिफिशियल स्पास्म शामिल होते हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 5, 2024, 12:36 IST
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