Delhi IGI Airport News: यह कहानी होशियारपुर (पंजाब) के झिंगरकलां पिंड (गांव) से शुरू होती है. उस दिन तरणवीर और गगनदीप की बेचैनी उनके चेहरे पर साफ पढ़ी जा सकती थी. रह-रह कर दोनों अपने मोबाइल फोन की स्क्रीन स्वाइप करते और कुछ पल गौर से निहारने के बाद उसे फिर साइड में रख देते. कभी मोबाइल पर एक नंबर डायल करते, रिंग जा पाती, इससे पहले फोन काट देते. दोनों की हरकतें बता रही थीं कि उन्हें किसी खास कॉल का इंतजार था.
यह सिलसिला लगातार कई घंटे तक चला. अचानक तरणवीर के मोबाइल फोन की घंटी बजती है और स्क्रीन पर जो नंबर डिस्प्ले हो रहा था, उसे देखकर उसके चेहरे पर खुशी की लहर दौड़ जाती है. वह आंखों से गगनदीप को इशारा करता है और फोन उठाकर बड़ी अदब से बोलता है- जी वीरजी… सामने से कौन क्या कह रहा था, पता नहीं, पर जो भी कह रहा था, उससे गगनदीप के चेहरे की रौनक बढ़ती जा रही थी.
इस बीच, गगनदीप के मुंह से सिर्फ एक ही बात निकल रही थी, आहो… चंगा जी… फोन कटते ही गगनदीप ने एक बार फिर गगनदीप को इशारा किया और दोनों भाई खुशी से एक दूसरे के गले लग गए. दोनों भाइयों की खुशी देख दोनों की मां भी थोड़ा हैरान थी. मां ने सवाल किया… की होया पुत… सवाल खत्म होते ही दोनों भाई अपनी मां की तरफ मुड़े और दौड़कर उन्हें भी गले लगा लिया. फिर बोले- मां, आपके दोनों पुत्तर बिलायत जा रहे हैं.
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यह सुनकर मां आंखों में आंसू आ गए. आखिरकार आज उसके बेटों के साथ उसका भी सपना पूरा होता दिख रहा था. शाम होते-होते यह खबर घर से निकलकर, सारी रिश्तेदारी तक पहुंच चुकी थी. एक-एक कर सभी रिश्तेदारों का घर पर जमावड़ा लगना शुरू हो गया था. खैर, इस सबके बीच दोनों भाइयों ने बिलायत जाने की तैयारी शुरू कर दी थी. देखते ही देखते वह दिन भी आ गया. अब दोनों भाइयों को बिलायत के लिए रवाना होना था.
दोनों भाई अपने पूरे कुनबे के लिए दिल्ली के लिए निकल पड़े. दिल्ली के महिपालपुर इलाके में उन्हें एक शख्स मिला, जिसने दोनों भाइयों को उनके पासपोर्ट और रोम (इटली) का टिकट पकड़ा दिया. अगले दिन 21 अप्रैल को दोनों भाई इटली जाने के लिए आईजीआई एयरपोर्ट पहुंच गए. दोनों को छोड़ने के तमाम रिश्तेदार और परिवार भी एयरपोर्ट पहुंचा था. दोनों भाइयों ने सबसे विदा ली और एयरपोर्ट पर टर्मिनल के अंदर चले गए.
टर्मिनल से जाते बेटों से मां ने कहा, ‘फ्लाइट में बैठते ही फोन कर दीता. मैं एयरपोर्ट तभी जाऊंगी, तब तेरा फोन आएगा.’ दोनों ने सिर हिलाया और टर्मिनल के भीतर चले गए. अब दोनों भाईयों को टर्मिनल में गए लंबा वक्त बीत चुका था, लेकिन उनका फोन नहीं आया था. अब मां की बेचैनी काफी बढ़ने लगी थी. उसे जो एयरपोर्ट स्टाफ दिखता, उससे पूछता इटली की फ्लाइट चली गई क्या? लेकिन उसे कोई जवाब नहीं मिला.
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इसी बीच, मां को टर्मिनल के भीतर उसे उसके दोनों बेटे बाहर आते दिखाई दिए. इस बार उसके दोनों बेटे अकेले नहीं थे, बल्कि उनके साथ कई खाकी वर्दी वाले भी थे. इन खाकी वर्दी वालों ने उनके दोनों बेटों को पकड़ रखा था. यह नजारा देख मां का हलक सूखने को हो गई. तरणवीर ओर गगनदीप को आईजीआई एयरपोर्ट पुलिस स्टेशन ले जाया गया, जहां से पता चला कि दोनों का इटली वाला वीजा फर्जी था.
यह बात पता चलते ही मां लगभग गश खाकर गिरने को हो गई. उसे ऐसा लगा, जैसे सबकुछ खत्म हो गया है. आखिर उसने अपना सबकुछ गिरवी रखकर 31 लाख रुपए का कर्ज लिया था. इन्हीं 31 लाख के भरोसे दोनों इटली कमाने के लिए जा रहे थे. अब 31 लाख रुपए भी हाथ से निकल गए थे और दोनों अपने मंजिल पर भी नहीं पहुंच पाए थे.