Home National भारतीय इंसान से कितने दूर चंदा मामा? 2040 तक इसरो हो पाएगा कामयाब; रास्ते में कितनी बाधाएं

भारतीय इंसान से कितने दूर चंदा मामा? 2040 तक इसरो हो पाएगा कामयाब; रास्ते में कितनी बाधाएं

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भारतीय इंसान से कितने दूर चंदा मामा? 2040 तक इसरो हो पाएगा कामयाब; रास्ते में कितनी बाधाएं

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हाल ही में भारत का मिशन मून काफी सफल रहा है। चंद्रयान की सफलता के बाद तत्काल बाद ही इसरो का एक और एक्सपेरिमेंट कामयाब रहा था। इससे संकेत मिले थे कि भविष्य में चंद्रयान की धरती पर वापसी भी हो सकती है। वहीं, इसके कुछ ही हफ्तों के बाद पीएम मोदी ने इसरो को एक नया मिशन डाला था। यह मिशन होगा साल 2040 तक इंसान को चांद पर भेजना। हालांकि इस मिशन को लेकर तमाम तरह के सवाल भी सामने आ रहे हैं। इसमें सबसे बड़ा सवाल यह है कि क्या 2040 तक भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान केंद्र इतना सक्षम हो जाएगा कि इंसान को चांद पर भेज सके?

क्या हैं चुनौतियां

देखा जाए तो इसरो के लिए इंसान को चांद पर भेजने का लक्ष्य मुश्किल भले लग रहा हो, लेकिन नामुमकिन कतई नहीं। इस दिशा में सबसे बड़ी जरूरत है एक ह्यूमन रेटेड रॉकेट, जिसकी भारवहन क्षमता काफी ज्यादा हो। चंद्रयान-3 को लेकर गया एलवीएम-3 रॉकेट 10 हजार किलोग्राम का भार उठा सकता है। लेकिन इंसान को चांद पर ले जाने के लिए ऐसा रॉकेट चाहिए होगा जो एक लाख किलो से ज्यादा की क्षमता का भार उठा सके। इसके अलावा सेमी-क्रयोजेनिक और क्रायोजेनिक इंजनों की भी जरूरत होगी। यह नासा के सैटर्न-वी की क्षमता वाला होना चाहिए। दिलचस्प बात यह है कि इंसान को चांद पर भेजने की दिशा में भारत के अलावा चीन और स्पेस एक्स भी जुटे हैं। इसके अलावा रूसी स्पेस एजेंसी रोस्कोमॉस का भी कुछ ऐसा ही सपना है। फिलहाल भारत के पास इंसान को चांद तक ले जाने की क्षमता वाला रॉकेट नहीं है।

गगनयान होगा अहम

गौरतलब है कि भारत गगनयान मिशन की तैयारियों में जुटा हुआ है। गगनयान एक ह्यूमन स्पेसफ्लाइट है, जिसमें तीन भारतीय एस्ट्रोनॉट्स तीन दिन के लिए ऑर्बिट में 400 किमी की दूरी तक जाएंगे। इसके बाद इन अंतरिक्षयात्रियों को सुरक्षित ढंग से धरती पर भी वापस लाया जाएगा। चंद्रमा तक इंसान तक ले जाने की इसरो की योजना गगनयान की सफलता पर काफी हद तक निर्भर करता है। अगर कहा जाए तो गगनयान भारत के मिशन मून का टेस्टिंग ग्राउंड है। इंसानों को चांद पर ले जाने की दिशा में इससे कई अहम सबक मिल सकते हैं, जो आगे चलकर काफी मददगार होगा। हालांकि इसे सही और सटीक ढंग से लागू करने के लिए इसरो को समय और पैसे दोनों की भरपूर जरूरत होगी।

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