1947-1948 के युद्ध के दौरान श्रीनगर हवाई अड्डे पर लैंड करते भारतीय सैनिक।
भारत और पाकिस्तान के बीच पहली जंग, जिसे प्रथम भारत-पाकिस्तान युद्ध या 1947-48 का कश्मीर युद्ध के नाम से जाना जाता है, 22 अक्टूबर 1947 को शुरू हुई थी। यह युद्ध दोनों देशों के स्वतंत्रता प्राप्त करने के तुरंत बाद लड़ा गया और इसका मुख्य कारण जम्मू-कश्मीर की रियासत का विवाद था। 1947 में भारत और पाकिस्तान के बंटवारे के बाद ब्रिटिश भारत की रियासतों को यह अधिकार दिया गया कि वे भारत या पाकिस्तान में से किसी एक के साथ विलय करें या स्वतंत्र रहें। मुस्लिम बहुल रियासत जम्मू-कश्मीर के हिंदू राजा हरि सिंह ने स्वतंत्र रहने का फैसला किया था।
पाकिस्तान ने धोखे से किया कश्मीर पर हमला
हरि सिंह के फैसले को नजरअंदाज करते हुए पाकिस्तान ने इस रियासत पर दावा किया, क्योंकि यह भौगोलिक रूप से और जनसंख्या के आधार पर उसके करीब थी। दूसरी ओर, महाराजा हरि सिंह भारत के साथ संबंधों को प्राथमिकता दे रहे थे। पाकिस्तान ने जम्मू-कश्मीर पर कब्जा करने के लिए सैन्य रणनीति अपनाई। अक्टूबर 1947 में पाकिस्तानी सेना के समर्थन से पश्तून कबायलियों और उसके अनियमित सैनिकों ने कश्मीर पर हमला कर दिया। उन्होंने तेजी से श्रीनगर की ओर बढ़ना शुरू किया, जिससे महाराजा हरि सिंह की स्थिति कमजोर हो गई।
महाराजा ने भारत में किया कश्मीर का विलय
हालात बिगड़ते देख कश्मीर के महाराजा ने भारत से सैन्य सहायता मांगी और 26 अक्टूबर 1947 को जम्मू-कश्मीर के विलय पत्र पर हस्ताक्षर किए, जिसके तहत रियासत भारत का हिस्सा बन गई। इसके बाद भारतीय सेना ने कश्मीर में हस्तक्षेप किया, और जंग शुरू हो गई। यह लड़ाई मुख्य रूप से जम्मू-कश्मीर के क्षेत्र में लड़ी गई। भारतीय सेना ने श्रीनगर को बचाने के लिए तत्काल कार्रवाई की और 27 अक्टूबर को सैनिकों को हवाई मार्ग से वहां भेजा गया। शुरुआत में, भारतीय सेना को रसद और संसाधनों की कमी का सामना करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे उन्होंने स्थिति को नियंत्रित किया।
विभिन्न जनजातियों के पश्तून लड़ाके कश्मीर की ओर जाते हुए।
भारत की सेना ने दिखाई गजब की दिलेरी
जंग के दौरान दोनों पक्षों ने कई महत्वपूर्ण मोर्चों पर लड़ाई लड़ी, जिसमें बारामूला, उरी, और पुंछ जैसे इलाके शामिल थे। पाकिस्तानी समर्थित कबायलियों और सेना ने शुरुआत में तेजी दिखाई, लेकिन भारतीय सेना की रणनीति और स्थानीय समर्थन ने उन्हें पीछे धकेल दिया। 1948 के मध्य तक, भारतीय सेना ने कश्मीर घाटी के अधिकांश हिस्सों को अपने नियंत्रण में ले लिया था। हालांकि, युद्ध लंबा खिंच गया, और दोनों पक्षों को भारी नुकसान हुआ। इस दौरान, अंतरराष्ट्रीय समुदाय, विशेष रूप से संयुक्त राष्ट्र, ने हस्तक्षेप किया और युद्धविराम की मांग की।
युद्धविराम के बाद अस्तित्व में आई नियंत्रण रेखा
1 जनवरी 1949 को संयुक्त राष्ट्र की मध्यस्थता के बाद युद्धविराम लागू हुआ। इसके परिणामस्वरूप, जम्मू-कश्मीर का लगभग दो-तिहाई हिस्सा भारत के नियंत्रण में रहा, जबकि एक-तिहाई हिस्सा, जिसे अब आजाद कश्मीर और गिलगित-बाल्टिस्तान के नाम से जाना जाता है, पर पाकिस्तान का कब्जा हो गया। सीजफायर लाइन, जिसे बाद में नियंत्रण रेखा (Line of Control) के रूप में जाना गया, दोनों क्षेत्रों को अलग करने वाली रेखा बन गई।
जंग के बाद एक स्थायी मुद्दा बन गया कश्मीर
युद्ध का एक महत्वपूर्ण परिणाम यह था कि कश्मीर विवाद भारत और पाकिस्तान के बीच एक स्थायी मुद्दा बन गया। संयुक्त राष्ट्र ने जनमत संग्रह का प्रस्ताव रखा, जिसके तहत कश्मीर की जनता को यह तय करना था कि वे भारत या पाकिस्तान के साथ रहना चाहते हैं। हालांकि, यह जनमत संग्रह कभी आयोजित नहीं हुआ क्योंकि दोनों देश इसके लिए सहमत नहीं हो सके। प्रथम भारत-पाकिस्तान युद्ध ने दोनों देशों के बीच तनाव को और गहरा कर दिया। इसने कश्मीर को एक ऐसा मुद्दा बना दिया जो पूरी दुनिया में चर्चा का विषय बना।
भारत ने कश्मीर को अपना अभिन्न अंग माना
1947-48 की जंग ने भारत और पाकिस्तान की सैन्य और कूटनीतिक रणनीतियों को भी प्रभावित किया। भारत ने कश्मीर को अपना अभिन्न अंग माना, जबकि पाकिस्तान ने इसे एक विवादित क्षेत्र के रूप में देखा। इस जंग में दोनों पक्षों को जानमाल का भारी नुकसान हुआ। यह युद्ध न केवल सैन्य दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण था, बल्कि इसने दोनों देशों की राष्ट्रीय पहचान और विदेश नीति को भी आकार दिया। आज भी, कश्मीर मुद्दा भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक कांटे की तरह चुभता है, और इस युद्ध की विरासत दोनों देशों के बीच तनाव के रूप में मौजूद है।