Monday, July 8, 2024
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भारत का वो संगीतकार जो अनिद्रा के रोगियों को अपने संगीत से सुला देता था


हाइलाइट्स

इटली का तानाशाह मुसोलिनी अनिद्रा के घनघोर रोग से पीड़ित था, तब भारतीय संगीतकार की उसकी म्युजिक थेरेपी
पंडित ओंकारनाथ ठाकुर के संगीत और राग पर पकड़ का लोहा हर कोई मानता था
मुसोलिनी ने तो उन्हें रोम में बड़ा ओहदा देने की पेशकश की थी लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया

इटली के ताकतवर शासक और तानाशाह का डंका सारी दुनिया में बज रहा था. उसके लिए कुछ भी नामुमकिन नहीं था. लेकिन एक समय उसकी हालत ये हो गई कि उसे नींद आनी बंद हो गई. अगर आती भी थी तो उचटी-उचटी. वो काफी इलाज किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ, तब एक भारतीय संगीतज्ञ ने अपने संगीत से चमत्कार कर दिया.

दरअसल मुसोलिनी की कई प्रेमिकाओं में एक प्रेमिका बंगाली थी. जिसे संगीत का बहुत अच्छा ज्ञान था. उसने जब मुसोलिनी से कहा कि उसकी अनिद्रा का इलाज संगीत में है तो उसने इस बात को हंसी में उड़ा दिया. बात आई गई हो गई.

ओंकारनाथ को मुसोलिनी के आवास पर बुलाया गया
ये बात 30 के दशक की शुरुआत की है. 1933 में भारतीय संगीतज्ञ ओंकारनाथ ठाकुर यूरोप की यात्रा पर थे. जब वो रोम पहुंचे तो मुसोलिनी की बंगाली प्रेमिका उनसे मिलने आई. वो उनकी परिचित थी. उसने उन्हें मुसोलिनी के आवास पर आमंत्रित किया.

ओंकारनाथ ठाकुर विशुद्ध भारतीय शास्त्रीय संगीत गायक थे. राग में माहिर. ओंकार ने आमंत्रण स्वीकार किया. वो मुसोलिनी से मिलने पहुंचे.

उन्हें बताया जा चुका था कि मुसोलिनी इन दिनों अनिद्रा के रोग से ग्रस्त हैं. काफी इलाज कर चुके हैं लेकिन उन्हें अच्छी नींद नहीं आ रही है. उन्होंने मुसोलिनी से राग पेश करने की अनुमति मांगी.

15 मिनट में मुसोलिनी को गहरी नींद आ गई
ठाकुर ने विनम्र तौर पर मुसोलिनी से अनुरोध किया कि वो रात के डिनर में आज केवल शाकाहारी भोजन लें. मुसोलिनी ने वैसा ही किया. खाने के बाद उन्होंने अपने हिंडोलाम के साथ आलाप लेनी शुरू की. वो राग पूरिया का आलाप ले रहे थे. नोट्स पहले तो हल्के थे फिर वो तेज होते गए. एक अजीब सी कशिश थी राग में. हर कोई इससे बंधा हुआ था. 15 मिनट के भीतर ही मुसोलिनी सो गया.

ओंकारनाथ ठाकुर और मुसोलिनी

वाह क्या संगीत था
ठाकुर ने बाद में अपने संस्मरण में लिखा, मैने देखा मुसोलिनी की आंखें बंद हो चुकी हैं और गहरी नींद के आगोश में जा चुके हैं. चेहरा गुलाबी सा लग रहा था और आखें एकदम बंद थीं. कुछ घंटों बाद जब आंखें खुलीं, तो उन्होंने खुशी से कहा-वाह क्या संगीत था और कितनी गहरी नींद आई.

अगले दिन ठाकुर को दो खत मिले
हालांकि उस रात ठाकुर जरूर नहीं सो पाए, उन्हें यही लग रहा था कि पता नहीं मुसोलिनी की रात कैसी बीती होगी. वो वाकई सो पाया होगा.

अगले दिन उन्हें मुसोलिनी से दो खत मिले, एक में उन्हें धन्यवाद कहा गया था और दूसरा खत एक अपाइंटमेंट लेटर था, जिसमें उन्हें एक यूनिवर्सिटी में नए बनाए गए संगीत डिपार्टमेंट का डायरेक्टर बनाने की जानकारी दी गई थी. हालांकि ओंकार नाथ ने उसे मंजूर नहीं किया, क्योंकि उन्हें वापस देश लौटना था.

तब मुसोलिनी के आंसू निकलने लगे
बाद में ठाकुर उनके मेहमान बने. उन्हें एक से एक राग नहीं सुनाए बल्कि उनके असर का भी अनुभव कराया. एक बार जब वो मुसोलिनी को राग छायानत सुना रहे थे तो मुसोलिनी की आंखों से आंसू निकलने लगे. मुसोलिनी को कहना पड़ा, उन्हें अपने जीवन में इतना अच्छा कभी महसूस नहीं सुना, जितना इस पॉवरफुल भारतीय संगीत से हुआ.

मुसोलिनी भारतीय गायक इतना मुरीद हो गया कि उसने एक यूनिवर्सिटी में उन्हें डायरेक्टर की पोस्ट ऑफर की लेकिन उन्होंने विनम्रता से मना कर दिया

संगीत की जानी मानी वेबसाइट बिबिलियोलोर डॉट ऑर्ग में इसका वर्णन किया गया. बीकेवी शास्त्री ने इस पर लंबा लेख लिखा है. हालांकि मई 1933 में घटित ये घटना रिकार्ड नहीं की जा सकी.

गांधी भी थे प्रभावित 
कहा जाता है कि महात्मा गांधी भी उनके संगीत की ताकत का लोहा मानते थे . गांधी ने कभी कहा था कि ओंकारनाथ जी अपने एक गान से जितना कह डालते थे, उतना कहने के लिये उन्हें कई भाषण देने पड़ते थे. ओंकारनाथ की प्रमुख शिष्या रही डा एन राजम बताती हैं कि गुरुजी के कंठ से निकलने वाले स्वरों के विभिन्न रूपों यथा फुसफुसाहट, गुंजन, गर्जन तथा रुदन के साथ श्रोता भी एकाकर हो जाते थे.

पंडित ओंकार नाथ ठाकुर का जन्म गुजरात में भरूच नगर के पास हुआ था. वो अपने जमाने के विलक्षण गायक के तौर पर जाने गए. जब वो नेपाल के राजदरबार में गए तो राजा इतना प्रभावित हुआ कि उसने उन्हें अपने राजदरबार में स्थायी रूप से रहने के लिये आमंत्रित किया,लेकिन ओंकार ने इसे भी विनम्रता से मना कर दिया.

बाद में बीएचयू से जुड़े
बाद में जब पंडित मदन मोहन मालवीय ने काशी हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की तो उन्होंने पंडितजी से संगीत-विभाग की बागडोर संभालने का अनुरोध किया. पंडितजी सहर्ष तैयार हो गये. वर्ष 1950 में जब काशी हिन्दू विश्वविद्यालय में संगीत एवं कला संकाय की स्थापना हुई, तो पंडित ओंकार नाथ ठाकुर विभाग के पहले डीन बने. एक कलाकार और शिक्षक के ही नहीं अपितु एक प्रशासक के रूप में भी उन्होंने अपार ख्याति अर्जित की.

Tags: Better sleep, Classical Music, Music



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