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संगठन के लिए आएगी और मुश्किल
चीन के मामलों के जानकार ब्रहृम चेलानी ने इस पूरे मामले पर अपना रुख पेश किया। उन्होंने एक्स (ट्विटर) पर लिखा है कि सिर्फ पांच सदस्यों के साथ ब्रिक्स को एक आम पहचान और एजेंडे को आकार देने में काफी संघर्ष करना पड़ा। साथ ही वैश्विक मंच पर उसे एक समान ताकत बनने में भी काफी संघर्ष करना पड़ा है। अब जबकि छह नए सदस्यों के शामिल होने से यह काम और मुश्किल हो जाएगा। उनकी मानें तो नए सदस्यों की मंजूरी पर चीन का प्रभाव है। वह रूस के समर्थन से ब्रिक्स के विस्तार पर आक्रामक रूप से जोर देता आ रहा था।
पाकिस्तान के बहाने चीन की चाल
उन्होंने कहा चीन ने शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गनाइजेशन (एससीओ) में भारत को सिर्फ तभी एंट्री दी जब पाकिस्तान को सदस्य बनाया गया। वहीं, ब्रिक्स में भारत और चीन जैसे दो विरोधियों के अलावा, तीन नए प्रतिद्वंदी ईरान और सऊदी अरब, मिस्र और इथियोपिया के साथ ही साथ और ब्राजील और अर्जेंटीना भी संगठन में शामिल हैं। हालांकि अर्जेंटीना की एंट्री को ब्राजील का समर्थन मिला है। ऐसे भू-राजनीतिक संगठन में नए सदस्यों की सूची में सिर्फ यूएई ही एकमात्र अपवाद है। उसकी एंट्री के लिए भारत ने खासा जोर दिया था।
जिनपिंग बोले-विस्तार एतिहासिक
इस विस्तार से खुश शी जिनपिंग ने कहा कि यह विस्तार काफी ऐतिहासिक है। चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कहा है कि ब्रिक्स का विस्तार सहयोग की नई शुरुआत है। जबकि विशेषज्ञों की मानें तो चीन ने कुछ साल पहले पाकिस्तान की मदद से जो चाल चली थी, वह शायद कामयाब होती नजर नहीं आ रही है। रामाफोसा ने बताया है कि नई सदस्यता एक जनवरी, 2024 से लागू होगी। करीब 40 देशों ने ‘ग्लोबल साउथ’ के विकास को बढ़ावा देने के लिए बने इस गठबंधन में शामिल होने में रुचि व्यक्त की थी। वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग के जरिए सम्मेलन में भाग लेने वाले रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने भी विस्तार पर खुशी जताई है।
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