
[ad_1]
नई दिल्ली. दिल्ली उच्च न्यायालय ने अधिवक्ता और कार्यकर्ता अमित साहनी की तरफ से दायर उस याचिका को स्वीकार कर लिया है, जिसमें यह अपील की गई है कि अप्राकृतिक यौन संबंध और भीख मांगने के लिए नाबालिगों के अपहरण सहित जघन्य अपराध के लिए आजीवन कारावास तक की कैद की सजा का आदेश एक सत्र न्यायाधीश द्वारा दिया जाना चाहिए, ना कि एक मजिस्ट्रेट की तरफ से.
मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ ने शुक्रवार को कहा कि इस मुद्दे पर विस्तार से तर्क की आवश्यकता है और इसलिए इस मामले को एक नियमित सूची में शामिल किया गया है और इसे समय पर विस्तार से सुनवाई के लिए लिया जाएगा.
साहनी की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता सुनील दलाल ने याचिका पेश करते हुए कहा कि भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) में कई जघन्य अपराधों के लिए निर्धारित दंड एक मजिस्ट्रेट द्वारा नहीं दिया जा सकता है क्योंकि उसे केवल अधिकतम तीन साल तक की सजा देने का अधिकार है.
आपके शहर से (दिल्ली-एनसीआर)
दलील में कहा गया है कि दंड प्रक्रिया संहिता की अनुसूची-1, के तहत आईपीसी की धारा 326 (खतरनाक हथियारों या साधनों से स्वेच्छा से गंभीर चोट पहुंचाना), 327 (स्वेच्छा से संपत्ति हड़पने या अवैध कार्य के लिए किसी को बाध्य करने के मकसद से उसे चोट पहुंचाना), 363ए (भीख मंगाने के मकसद से नाबालिग का अपहरण या उसे अपंग करना), 377 (अप्राकृतिक यौन संबंध), 386 (किसी व्यक्ति को मौत का डर दिखाकर जबरन वसूली), 392 (डकैती), 409 (लोक सेवक द्वारा विश्वास का आपराधिक हनन) का ‘मजिस्ट्रेट द्वारा ट्रायल’ संविधान के अनुच्छेद 14 और 21 के अधिकार क्षेत्र से बाहर है.
इन अपराधों में 10 साल से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. याचिका में अदालत से संबंधित अधिकारियों से इस पर विचार करने के लिए कहा गया और प्रक्रियात्मक कानून में ‘अंतर्निहित कमी’ को सुधारने के लिए संबंधित मामलों का ट्रायल ‘प्रथम श्रेणी के न्यायिक मजिस्ट्रेट की अदालत’ के बजाय ‘सत्रों की अदालत’ में करने की मांग की गई है.
याचिका में कहा गया है कि अगर मजिस्ट्रेट को लगता है कि किसी विशेष मामले में तीन साल की सजा काफी नहीं है, तो ऐसे में वे सीआरपीसी की धारा-325 के तहत मामले को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट (सीजेएम)/मुख्य मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट (सीएमएम) को भेज सकते हैं. यहां भी सीजेएम या सीएमएम केवल सात साल तक की सजा दे सकते हैं और इन अपराधों के लिए दी जाने वाली कड़ी सजा देने का मकसद पूरा नहीं होता है.
ब्रेकिंग न्यूज़ हिंदी में सबसे पहले पढ़ें News18 हिंदी| आज की ताजा खबर, लाइव न्यूज अपडेट, पढ़ें सबसे विश्वसनीय हिंदी न्यूज़ वेबसाइट News18 हिंदी|
Tags: DELHI HIGH COURT
FIRST PUBLISHED : April 30, 2023, 21:43 IST
[ad_2]
Source link