Friday, July 5, 2024
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मल्लिकार्जुन खरगे ने ‘कुत्ते’ से की बूथ एजेंट की तुलना, बीजेपी बोली- इनकी दुर्गति होनी तय


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कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने शनिवार को नई दिल्ली में न्याय संकल्प कार्यकर्ता सम्मेलन को सम्बोधित किया। इस दौरान उन्होंने अपनी पार्टी के बूथ एजेंट की तुलना ‘कुत्ते’ से कर दी। खरगे ने कहा, ‘हमारे यहां एक कहावत है। जब आप बाजार में जाते हो और आपको कुत्ता या कोई जानवर लेना होता है तो आप उसके बारे में पूछताछ करते हो। अगर ईमानदार जानवर को भी लेना हो तो उसका कान पकड़कर ऊपर उठाते हैं। उसे ऊपर उठाने के बाद अगर वो भौंकता है तो ठीक है। अगर थोड़ी सी आवाज करता तो वह ठीक नहीं होता और उसे कोई लेता नहीं है।’

खरगे ने कहा कि इसीलिए आप भी सेलेक्शन करते वक्त जो भौंकता है, जो लड़ता है और जो आपके साथ रहता है तो उसे ले लो। उसे ही बूथ लेवल कमेटी का अध्यक्ष बनाओ। उन्होंने कहा, ‘बूथ में ऐसे व्यक्ति को बैठाओ जो सुबह 7 बजे जाए तो जब वहां पर पेटी बंद होती है, उसी वक्त उसे साइन करके बाहर आना चाहिए। नहीं तो जाना-आना ठीक नहीं है।’ इस दौरान उन्होंने केंद्र की भाजपा सरकार पर भी जमकर निशाना साधा। खरगे ने कहा, ‘पीएम मोदी ने सबका सत्यानाश कर दिया है। राहुल गांधी देश को बचाने के लिए लड़ रहे हैं। वह बीजेपी सरकार में हो रहे अत्याचारों के खिलाफ लड़ रहे हैं।’

बीजेपी ने साधा निशाना, बयान को बताया शर्मनाक

मल्लिकार्जुन खरगे ने कहा कि अगर आप इस लड़ाई में हार गए तो मोदी के गुलाम बन जाएंगे। पीएम मोदी देश के लोगों को गुलामी में डाल देंगे। वहीं, कांग्रेस अध्यक्ष खरगे के कुत्ते वाले बयान को लेकर भाजपा ने निशाना साधा है। बीजेपी आईटी सेल के प्रभारी अमित मालवीय ने एक्स पर पोस्ट करके कहा, ‘जिस पार्टी का अध्यक्ष अपने संगठन की सबसे मजबूत और महत्वपूर्ण कड़ी बूथ एजेंट को ‘कुत्ता’ बनाकर उसका टेस्ट लेना चाहता है तो उस पार्टी की दुर्गति होनी तय ही है। शर्मनाक।’

मनरेगा को खत्म करने में लगी है सरकार: कांग्रेस

कांग्रेस ने यह भी आरोप लगाया कि भाजपा सरकार महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) को खत्म करने में लगी है। पार्टी महासचिव जयराम रमेश ने दावा किया कि बीजेपी ने पारदर्शिता का बहाना बनाकर कांग्रेस सरकार में शुरू की गई आधार तकनीक को गरीबों के खिलाफ हथियार में बदल दिया है। रमेश ने एक्स पर पोस्ट किया, ‘मनरेगा 2004 के लोकसभा चुनाव के लिए हमारे घोषणापत्र के मुख्य वादों में से एक था। हमने एक साल के भीतर ही अपना यह वादा पूरा करते हुए 2005 में कानून पारित किया और 2006 के शुरुआत में इसे लागू किया। यह योजना ग्रामीण भारत के लिए परिवर्तनकारी साबित हुई है।’



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