Wednesday, November 6, 2024
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मॉस्किटो रेपलेंट ऑन, फिर भी रात-भर काटते रहते हैं मच्छर, वजह जानकर हो जाएंगे हैरान


सर्दी अभी पूरी तरह से गई भी नहीं है और मच्छरों का प्रकोप तेजी से बढ़ने लगा है. नतीजा ये हुआ है कि चारों तरफ इससे जुड़ी बीमारियां भी फैलना शुरू हो गई हैं. मच्छरों से बचने के लिए बाजार में कई तरह के मॉस्किटो रेपलेंट लिक्विड, कोइल या मेट के रूप में बिक रहे हैं और घरों में इस्‍तेमाल हो रहे हैं. आपने कभी ध्‍यान दिया है कि मच्‍छरों को भगाने के लिए रोजाना आपको घर में कॉइल जलानी पड़ती है या फिर मशीन ऑन करनी पड़ती है लेकिन मच्‍छर हैं कि न तो मरते हैं और न ही भागते हैं. ऐसे में सबसे बड़ा सवाल है कि क्‍या मच्‍छर मार दवाएं हकीकत में मच्छरों के खिलाफ उतनी प्रभावी हैं जैसा कि दावा किया जाता रहा है?

अलग-अलग मॉस्किटो रेपलेंट अलग-अलग ढंग से काम करते हैं. कुछ मच्छरों को भगाते हैं जबकि कुछ मार देते हैं. सबसे ज्यादा लिक्विड मॉस्किटो रेपलेंट का इस्तेमाल किया जाता है. मॉस्किटो रेपलेंट में एक मिश्रित लिक्विड होता है जो हल्का गर्म होते ही वाष्प में बदल जाता है. रीफिल के अंदर तीन तरह के कैमिकल का मिश्रण होता है. 1- इंसेक्टिसाइड- ये मच्छरों को भगा देता है. 2- स्टेबलाइजर/एंटीऑक्‍सीडेंट- यह इंसेक्टिसाइड को गर्मी के कारण ऑक्सीकृत होने से रोकता है. 3- परफ्यूम- लिक्वड से दुर्गंध न फैले इस कारण परफ्यूम का इस्तेमाल होता है.

ट्रांसफ्लूथ्रिन इस मिश्रण का महत्वपूर्ण हिस्सा होता है. यह मच्छर की त्वचा के करीब से होकर गुजरता है उसे पैरालाइज कर देता है जिससे मच्छर की गति धीमी हो जाती है और उसका नर्वस सिस्टम खराब हो जाता है. यहां गौर करने वाली बात यह है कि सारे मच्छरों के लिए यह मिश्रण जहरीला नहीं होता. मच्छरों में लगातार बदलाव आता रहता है और कई मच्छरों में ऐसे मिश्रणों के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है.

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कैमिकल रेपलेंट्स– ये डीब या डीट (DEET), पिकार्डियन या इकार्डियन, आईआर3535 जैसे कैमिकल के बने होते हैं. इसमें से अधिकतर सीधे त्वचा पर लगाए जा सकते हैं.

स्पेटियल रेपलेंट्स– ये सीधे त्वचा पर नहीं लगाए जाते हैं बल्कि वाष्पीकृत होकर काम करते हैं. उदाहरण के लिए कोइल, रेपेलेंट स्प्रे, वेपोराइजर्स और मेट.

हैरान करने वाली बात है कि इतनी एडवांस टैक्नॉलाजी के बावजूद मॉस्किटो रेपलेंट बेअसर क्यों होते जा रहे हैं. दवाइयों की जांच करने वाले संस्थान श्रीराम टेस्टिंग लेबोरेटरी के मुताबिक इसकी तीन प्रमुख वजह हो सकती हैं-

पहली- हर साल मच्छरों की अलग-अलग प्रजातियां फैलती हैं जैसे कि एडीज मॉस्किटो, एनोफैलिस मॉस्कीटो, क्यूलैक्स मॉस्कीटो, कुलिसेटा, मानसोनिया, सोरोफोरा, टॉक्सोरिनसिटिस, वेमिया आदि. एक ही तरह का रेपलेंट सभी पर प्रभावी नहीं होता है.

दूसरी– रैपेलेंट के अधिक इस्तेमाल से मच्छरों में प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है.

तीसरी- उत्पाद में एक्टिव इंग्रेडियेंट की कम मात्रा. कई बार कंपनियां खर्चे बचाने के लिए इन उत्पादों के मिश्रण में बदलाव कर देती हैं. ये हैरान करने वाली वजह है.

वहीं आल इंडिया कैमिस्ट फैडरेशन के कैलाश गुप्ता का मानना है कि मॉस्किटो रेपलेंट के प्रभावी न होने की वजह दरअसल प्रदूषण है साथ ही एसी के चलने की वजह से भी कई बार मॉस्किटो रेपलेंट ज्यादा प्रभावी नहीं होता. एसी रैपेलेंट का धुंआ अपनी ओर खींच लेता है. कैलाश ने मॉस्कीटो रेपलेंट बनाने वाली कंपनियों के खर्चे कम करने के चलते इंग्रेडिएंट में कमी करने के आरोप से इंकार किया.

Tags: Mosquitoes



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