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Dizziness May Stroke: कामकाजी युवाओं में स्ट्रोक के मामले तेजी से बढ़ने लगे हैं. ऑक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का कहना है कि पिछले 10 से 20 वर्षों में जहां बुजुर्गों में स्ट्रोक के नए मामलों की संख्या घटी है, वहीं 55 वर्ष से कम उम्र के लोगों में यह संख्या दोगुनी हो गई है. इस बढ़ोतरी के कारणों को समझने के लिए एक नया अध्ययन शुरू किया गया है. नेशनल यंग स्ट्रोक स्टडी के तहत स्ट्रोक के जो पहले से कारण चिन्हित है, उनपर तो गौर किया ही जाएगा, साथ ही नए तरह के लक्षणों के बारे में भी पड़ताल की जाएगी. ऐसा माना जाता है कि स्ट्रोक के जो पुराने लक्षण जैसे कि हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, कोलेस्ट्रॉल, धूम्रपान, शराब और मोटापा होते थे, अब उसकी जगह स्ट्रेस, मेंटल हेल्थ, लंबे समय तक काम करना और ओरल हाईजीन भी इसकी वजह बनने लगी है. आखिर युवाओं में स्ट्रोक का खतरा क्यों होने लगा है.
स्ट्रोक क्या है
सबसे पहले यह जानते हैं कि स्ट्रोक होता क्या है. स्ट्रोक का सीधा मतलब है कि जब हार्ट से दिमाग में खून का वहाव कम हो जाए या रुक जाए तो इससे इश्चेमिक स्ट्रोक कहते हैं. यह कई कारणों से हो सकता है. दिमाग की कोशिकाओं में बिना रुके खून का जाना बहुत जरूरी है क्योंकि जब खून जाएगा तभी खून से दिमाग ऑक्सीजन प्राप्त करेगा. अगर ऑक्सीजन नहीं मिलेगा तो दिमाग की कोशिकाएं मरने लगेगी.
स्ट्रोक के नए लक्षणों की पहचान
डेलीमेल की खबर में कहा गया है कि स्ट्रोक की जल्दी पहचान बहुत ज़रूरी होती है ताकि नुकसान और दीर्घकालिक प्रभाव को कम किया जा सके. लेकिन इसमें सभी उम्र के लोगों में लक्षणों को पहचानना जरूरी है क्योंकि आजकल कम उम्र में भी लोगों को स्ट्रोक का सामना करना पड़ रहा है. नेशनल क्लिनिकल लीड और स्ट्रोक मेडिसिन की मेडिकल डायरेक्टर प्रोफेसर डेबी लो कहती हैं कि लगभग 20 प्रतिशत स्ट्रोक मस्तिष्क के पिछले हिस्से को प्रभावित करते हैं. इसमें रक्त का प्रवाह सेरेबेलम और ब्रेनस्टेम तक कम हो जाता है. ये दोनों क्षेत्र सांस और दिल की धड़कन को नियंत्रित करता है. इसके साथ ही यह दृष्टि, याददाश्त और भाषा से जुड़े लोब होते हैं. ऐसे स्ट्रोक के लक्षण आमतौर पर चक्कर आना, बोलने में कठिनाई और दृष्टि में गड़बड़ी होते हैं. इन लक्षणों के दौरान अगर आप टेस्ट भी कराएं तो बीमारी पकड़ में नहीं आती. डेबी लो कहती हैं कि स्ट्रोक के लक्षणों में डॉक्टर चेहरे से इसकी पहचान करते हैं. इसमें चेहरे की कमजोरी, हाथ की कमजोरी और बोलने की समस्या से पता लगाते हैं लेकिन अधिकांश युवा मरीजों में इस तरह से पहचान करना मुश्किल होने लगा है. इसलिए बेहतर अनुभव के साथ इसकी पहचान जरूरी है.
चार घंटे के अंदर इलाज जरूरी
प्रोफेसर डेबी लो ने बताया कि यह ज़रूरी है कि आम लोगों के साथ-साथ हेल्थकेयर प्रोफेशनल्स को भी नए-नए लक्षणों की जानकारी हो.आजकल स्ट्रोक में जो लक्षण आ रहे हैं उनमें अचानक याददाश्त खो जाना या भ्रमित होना, संतुलन खो जाना, मतली या उल्टी, दौरे पड़ना, अचानक व्यवहार में बदलाव आना और अचानक बहुत तेज़ सिरदर्द होना शामिल हैं. अगर इश्चेमिक स्ट्रोक को समय रहते पकड़ लिया जाए, तो खून के थक्के को जल्द घुलने और रक्त प्रवाह को बहाल करने के लिए दवाइयां दी जा सकती है जिससे इलाज संभव है. लेकिन ये दवाइयां स्ट्रोक होने के चार घंटे के भीतर दी जानी चाहिए तभी वे असरदार होती हैं. अगर मस्तिष्क की कोशिकाएं मर जाती हैं, तो मरीजों में शारीरिक अक्षमता हो सकती है और उन्हें फिजियोथेरेपी और पुनर्वास की ज़रूरत पड़ती है. प्रोफेसर जेम्स कहते हैं, स्ट्रोक से हुए नुकसान से उबरने की मस्तिष्क की क्षमता युवाओं में अधिक होती है. लेकिन इसमें लंबा वक्त लगता है. इस तरह के मरीजों में अक्सर कई महीनों या वर्षों तक सहारे की ज़रूरत होती है जब वे स्ट्रोक के बाद अपनी ज़िंदगी को दोबारा संवारने की कोशिश करते हैं.
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