UP Nikay chunav: सुप्रीम कोर्ट ने निकाय चुनाव को लेकर योगी आदित्यनाथ सरकार की याचिका को मंजूर कर लिया है। इस मामले की सुनवाई के लिए चार जनवरी 2023 की तारीख मुकर्रर की गई है। इसी के साथ पिछले कई महीनों से वोटरों को रिझाने के लिए लाखों खर्च करने के बाद मंझधार में फंसे तमाम दावेदारों की नज़र अब सुप्रीम कोर्ट पर टिक गई है। सु्प्रीम कोर्ट इस मामले में चार जनवरी को सुनवाई करने वाला है। उधर, योगी सरकार ने ओबीसी आरक्षण के लिए आयोग का गठन कर ही दिया है। जाहिर है कि ये सारी कवायद निकाय चुनाव की सीटों पर आरक्षण का मसला सुलझाने के लिए हो रही है। मसला सुलझेगा भी लेकिन इसमें वक्त कितना लगेगा और तैयारी कर रहे दावेदारों में किसकी दावेदारी बचेगी, इस बारे में अभी कोई कुछ नहीं कह पा रहा है। ऐसे में दावेदारों का कहना है कि सीट और आरक्षण का मसला तो हल हो जाएगा लेकिन इसमें लगने वाले समय का पेंच ऐसा है जो या तो उनके खर्च की सीमा हद से ज्यादा बढ़ा देगा या फिर उन्हें खुद ही मैदान से बाहर चले जाने पर मजबूर कर देगा।
लग सकता है इतना समय
ओबीसी आरक्षण के लिए गठित पिछड़ा वर्ग आयोग ने अपना काम शुरू कर दिया है। आयोग के अध्यक्ष सेवानिवृत न्यायाधीश राम अवतार सिंह ने पिछले दिनों मीडिया से कहा कि ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के दिशा-निर्देशों का पूरी तरह पालन किया जाएगा। आयोग अपनी पहली रिपोर्ट तीन महीने में जमा कर देगी। इसके बाद दो तीन महीने अन्य आवश्यक प्रक्रिया को पूरा करने में लगेंगे। उन्होंने बताया कि राज्य सरकार ने आयोग का गठन छह महीने के लिए किया है। उन्होंने उम्मीद जताई कि आयोग तय समय में अपना काम पूरा करेगा। इसके लिए आयोग की टीम प्रदेश के सभी 75 जिलों में जाएगी। स्थानीय जिला प्रशासन से सहयोग लिया जाएगा। जनप्रतिनिधियों से भी सुझाव आमंत्रित किए जाएंगे। जाहिर है ओबीसी आरक्षण की प्रक्रिया लम्बी है और इसमें समय लगेगा। लिहाजा, चुनाव टलने की आशंका के चलते दावेदारों ने अपनी गतिविधियों को कम कर दिया है।
अरमानों पर संशय के बादल
इसके साथ ही पिछले महीने तक पूरे दमखम से चुनाव की तैयारी की जगह संशय ने ले ली है। चुनाव की रूपरेखा से लेकर सीटों के आरक्षण और चुनाव के समय को लेकर उनके मन में तरह-तरह के सवाल उठ रहे हैं। इन सवालों का जो उत्तर उन्हें सूझ रहा है उससे कभी तो आशा और कभी निराशा का भाव मन में घर कर जा रहा है। बता दें कि यूपी की 760 नगर निकायों में चुनाव होना है। ये वे दावेदार हैं जिन्होंने नगर निगमों का मेयर, नगर पालिका परिषद और नगर पंचायतों का अध्यक्ष और पार्षद बनने के लिए राजनीतिक दलों से टिकट की दावेदारी के साथ-साथ अपने प्रचार में भी पूरा दमखम दिखाना शुरू कर दिया था। शहर-कस्बों से लेकर गलियों-मोहल्लों तक उनके चुनावी बैनर-पोस्टर से पट गए थे। ओबीसी आरक्षण को लेकर पेंच फंसने तक कई दावेदार प्रचार पर लाखों रुपए फूंक चुके थे।