पवन सिंह कुंवर/हल्द्वानी. कासनी का पौधा हल्द्वानी के वन अनुसंधान केंद्र में लगाए गए. यहां से करीब 2 लाख कासनी के पौधों की बिक्री हो चुकी है. कुमाऊं के सबसे बड़े सुशीला तिवारी अस्पताल के डॉक्टर अब मरीजों दवा के रूप में कासनी के पौधे का उपयोग करने के लिए लिख रहे हैं. पेड़ पौधों की दुनिया का चमत्कारी पौधा कासनी, के बारे में आज हम आपको बताते हैं. किडनी, ब्लड शुगर लीवर और बवासीर जैसी बीमारियों में इस मेडिसन पौधे की पत्तियों का सेवन मरीजों के लिए रामबाण का काम कर रही है.
आर्युवेदिक गुणों से भरपूर इन पौधे की मांग न केवल देश भर में है बल्कि विदेशों तक के डॉक्टर इन रोगों से ग्रसित मरीजों को कासनी के सेवन की सलाह दे रहे हैं. हल्द्वानी वन एवं अनुसंधान केन्द्र की औषधीय पौधशाला में यह पौधा तैयार किया जाता है. हल्द्वानी स्थित वन अनुसंधान केन्द्र पर अन्य औषधि पौधों के साथ कासनी नामक औषधि पौधों को भी संरक्षण हेतु रोपित किया है.
क्या है कासनी वनस्पति
कासनी जिसका वानस्पतिक नाम चिकोरियम इन्टाईबस (Cichorium intybus) है. यह एस्टेरेशिया कुल का पौधा है. स्थानीय भाषा में इसे कासनी, काशनी, कासानी आदि नामों से जाना जाता है. अंग्रेजी में इस वनस्पति को चिकोरी कहते हैं. यह मूल रूप से यूरोप के देशों में पायी जाती है. भारत में यह पौधा उत्तराखण्ड, हिमांचल प्रदेश तथा जम्मू कश्मीर के निचले क्षेत्रों एवं पंजाब, हरियाणा तथा दक्षिण को आन्ध्र प्रदेश, तमिलनाडु एवं कर्नाटक में पायी जाती है.
रोगों पर शोध
कासनी का औषधि प्रयोग कोई नया नहीं है, आयुर्वेद, यूनानी, सिद्ध पद्धति से इस वनस्पति की औषधि बनायी जाती है. बहुत सी दवा कम्पनी इसके साल्ट को लीवर, बुखार, पेट रोगों की दवा में प्रयोग करते हैं, परन्तु कासनी का सीधे पत्ती चबाकर खाने का प्रयोग/शोध अपने आप में नया प्रयोग है. क्योंकि किसी वस्तु की दवा गोली, कैपसूल या सीरप आदि लेने पर सीधे पेट में जाता है, यदि पेट में एसिड या अन्य विकार होगा तो दवा काम नहीं करती है, जबकि कोई भी वस्तु को चबाने से उसका सीधा प्रभाव लार ग्रन्थियों से होता है.
वर्ष 2011 में वन अनुसंधान में लगाया कासनी का पौधा
वर्ष 2011 में मदन सिंह बिष्ट के कासनी का पौध लगाना तब तय किया जब आयुर्वेद चरक संहिता को पढ़कर कासनी की खूबियों को महसूस किया. हालांकि, उन्होंने करीब 10 लोगों पर कासनी खिलाकर उसका असर देखा और करीब दो साल के लंबे इंतजार के बाद जब उन्हें इसका बेहतर नतीजे दिखाई दिए तो नवंबर 2014 से उन्होंने इस पौध को मरीजों को देना शुरू किया. उस वक्त मदन सिंह बिष्ट को भी शायद इसकी अंदेशा था कि इतने कम वक्त में कासनी की देशभर में ही नहीं, सात समंदर पार से भी डिमांड आएगी. मदन सिंह बिष्ट ने 6 साल के समय में करीब 2 लाख से ज्यादा पौध दे चुके हैं.
.
FIRST PUBLISHED : September 14, 2023, 13:02 IST