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जहां एक तरफ राजस्थान के अधिकांश इलाकों में पानी की किल्लत बड़ी समस्या बनकर सामने आ रही है, वहीं एक ऐसा गांव है, जहां सालभर लोगों को पानी की कमी नहीं होती. इस गांव के लोग पूरे साल बारिश के पानी को ही पीते हैं. इस…और पढ़ें

बारिश का पानी भूगर्भ में जमा कर सालभर इस्तेमाल करते हैं ग्रामीण (इमेज- फाइल फोटो)
शेखावाटी क्षेत्र का प्रमुख जिला झुंझुनूं इन दिनों गंभीर भूजल संकट से जूझ रहा है. जिले के अधिकांश गांव डार्क जोन में तब्दील हो चुके हैं, जहां भूजल स्तर इतना नीचे चला गया है कि पेयजल और खेती के लिए पानी मिलना मुश्किल हो गया है. पिछले नौ वर्षों में भूजल स्तर लगभग 54 फीट नीचे खिसक चुका है. इस संकट का प्रमुख कारण अत्यधिक भूजल दोहन और काटली नदी का विलुप्त होना है. लेकिन चिड़ावा पंचायत समिति के जाखड़ा गांव ने इस संकट से निपटने के लिए एक अनुकरणीय मॉडल पेश किया है. यहां ग्रामीण बारिश की हर बूंद को टांकों में सहेजकर सालभर पेयजल और अन्य जरूरतें पूरी कर रहे हैं.
यह कहानी न केवल जल संरक्षण की प्रेरणा देती है, बल्कि शेखावाटी के लिए एक उम्मीद की किरण भी है. जाखड़ा गांव, जहां 225 परिवारों की आबादी रहती है, कभी पेयजल के लिए गंभीर संकट से जूझ रहा था. अत्यधिक भूजल दोहन के कारण यहां के कुएं और बोरवेल सूख गए थे. ग्रामीणों को पानी के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ता था. लेकिन, डालमिया सेवा संस्थान की पहल ने इस गांव की तस्वीर बदल दी. संस्थान ने हर घर में वर्षा जल संग्रहण के लिए टांके बनवाए. आज इस गांव के 170 घरों में टांके हैं, जिनमें बारिश का पानी सहेजा जाता है. ये टांके ग्रामीणों के लिए जीवन रेखा बन गए हैं, जो सालभर पेयजल और घरेलू जरूरतों को पूरा करते हैं. ग्रामीणों का कहना है कि यह टांका सिस्टम न केवल उनकी प्यास बुझाता है बल्कि खेती और पशुपालन के लिए भी सीमित पानी उपलब्ध कराता है.
पानी की थी भारी किल्लत
झुंझुनूं के भूजल संकट की जड़ में काटली नदी का सूखना और बोरवेल के जरिए अंधाधुंध भूजल दोहन है. काटली नदी, जो कभी जिले की जीवन रेखा थी, अब पूरी तरह विलुप्त हो चुकी है. नदी के सूखने से भूजल रिचार्ज नहीं हो पा रहा, जिसके कारण जिले का जलस्तर तेजी से गिर रहा है. केंद्रीय भूजल बोर्ड (CGWB) के अनुसार, जिले के कई ब्लॉक डार्क जोन में हैं, जहां भूजल की कमी रिचार्जिंग की दर से कहीं अधिक है. नौ साल पहले जहां 100-200 फीट की गहराई पर पानी मिल जाता था, वहां अब 300-1000 फीट तक बोरिंग करनी पड़ रही है. फिर भी कई गांवों में पानी नहीं मिलता.
कई है वजह
इस संकट को और गहरा करती है शेखावाटी की परंपरागत खेती. किसान मूंगफली, कपास और प्याज जैसी जल-गहन फसलों पर निर्भर हैं, जिनमें पानी की खपत अधिक होती है. रासायनिक खादों का अत्यधिक उपयोग और गर्मियों में गहरी जुताई न करने की प्रथा ने भी पानी की बर्बादी को बढ़ाया है. परंपरागत सिंचाई विधियों में आधुनिक ड्रिप इरिगेशन जैसे तरीकों की तुलना में तीन गुना अधिक पानी खर्च होता है. नतीजतन, खेती के लिए पानी की कमी ने किसानों को बारिश पर निर्भर कर दिया है. हाल ही में अधिक बारिश ने खरीफ फसलों जैसे मूंग, बाजरा और कपास को नुकसान पहुंचाया, जिससे किसानों की आर्थिक स्थिति और खराब हुई.
बना रोल मॉडल
जाखड़ा गांव का टांका मॉडल इस संकट का एक प्रभावी समाधान पेश करता है. डालमिया सेवा संस्थान की मदद से बने ये टांके वर्षा जल को संग्रहीत कर भूजल रिचार्ज में भी मदद करते हैं. यह मॉडल अटल भूजल योजना जैसे सरकारी प्रयासों से प्रेरित है, जो समुदाय-आधारित भूजल प्रबंधन को बढ़ावा देती है. सामाजिक कार्यकर्ता रमेश शर्मा कहते हैं, “जाखड़ा का उदाहरण दिखाता है कि सीमित संसाधनों में भी जल संरक्षण संभव है. सरकार और समाज को मिलकर ऐसे मॉडल पूरे शेखावाटी में लागू करने चाहिए.” हालांकि, चुनौतियां अभी भी बरकरार है. काटली नदी को पुनर्जनन की जरूरत है और भूजल दोहन पर सख्त नियंत्रण लागू करना होगा. विशेषज्ञों का सुझाव है कि ड्रिप इरिगेशन और वर्षा जल संग्रहण संरचनाओं जैसे परकोलेशन टैंकों को बढ़ावा देना चाहिए. इसके अलावा, किसानों को कम पानी वाली फसलों जैसे बाजरा और ज्वार की खेती के लिए प्रोत्साहित करना होगा.

न्यूज 18 में बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रही हूं. रीजनल सेक्शन के तहत राज्यों में हो रही उन घटनाओं से आपको रूबरू करवाना मकसद है, जिसे सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा है. ताकि कोई वायरल कंटेंट आपसे छूट ना जाए.
न्यूज 18 में बतौर सीनियर सब एडिटर काम कर रही हूं. रीजनल सेक्शन के तहत राज्यों में हो रही उन घटनाओं से आपको रूबरू करवाना मकसद है, जिसे सोशल मीडिया पर पसंद किया जा रहा है. ताकि कोई वायरल कंटेंट आपसे छूट ना जाए.
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