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यूपी राज्यसभा चुनाव भाजपा ने बेहद रोचक बना दिया है। दस सीटों पर हो रहे चुनाव में सपा ने तीन और भाजपा ने सात प्रत्याशियों को उतारा था। भाजपा ने सभी का सात प्रत्याशियों का पर्चा दाखिल कराने के बाद बुधवार को नामांकन के अंतिम दिन आठवें प्रत्याशी को उतार दिया है। इससे जहां मतदान की नौबत आ गई है, वहीं सपा को अपने तीसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए लोकसभा चुनाव से ठीक बड़ी चुनौती मिल गई है। वोटों का गणित कुछ ऐसा है कि बिना सपा में तोड़फोड़ भाजपा अपने आठवें प्रत्याशी को नहीं जिता सकती है। इसी तरह सपा को भी अपने तीसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए जद्दोजहद करनी पड़ेगी। सपा की नजरें जयंत के विधायकों पर लग गई है। भाजपा ने 2018 और 2016 के राज्यसभा चुनावों के दौरान भी यूपी में इस बार जैसा ही खेल किया था। दोनों बार उसे सफलता भी हाथ लगी थी।
यूपी में संख्या बल के आधार पर एक प्रत्याशी को जीत के लिए 37 वोटों की जरूरत होगी। 403 सदस्यीय विधानसभा में तीन विधायकों के निधन और एक को अयोग्य ठहराए जाने के कारण संख्या घटकर 399 है। भाजपा के पास 252 विधायक हैं। उसके सहयोगियों अनुप्रिया पटेल की पार्टी अपना दल सोनेलाल के 13, निषाद पार्टी के 6 और सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी के 6 विधायकों (जेल में बंद अब्बास अंसारी के साथ) कुल संख्या 277 हो जाती है।
पूर्व मंत्री रघुराज प्रताप की पार्टी के 2 विधायकों का भी समर्थन उनके ही साथ है। इससे भाजपा खेमे की संख्या 279 हो जाती है। जयंत के भी एनडीए में शामिल होने के ऐलान से उनकी पार्टी आरएलडी के नौ विधायकों का वोट भी भाजपा की तरफ गिना जा रहा है। ऐसे में भाजपा की संख्या 288 हो जाती है। जबकि आठ प्रत्याशियों के लिए उसे 296 वोट चाहिए। यानी उसके पास आठ वोट कम हैं। अब्बास को वोट देने की इजाजत नहीं मिलती तो नौ वोट कम हैं।
अब अगर विपक्षी समाजवादी पार्टी की संख्या बल की बात करें तो उसके वर्तमान में (जेल में बंद इरफान सोलंकी और रमाकांत यादव समेत) 108 विधायक हैं। उसे कांग्रेस के 2 विधायकों का समर्थन मिलने की संभावना है। ऐसे उसकी संख्या 110 हो जाती है। तीन प्रत्याशियों को जिताने के लिए सपा को 111 वोट चाहिए। यानी एक विधायक कम है। अगर इरफान सोलंकी और रमाकांत यादव को वोट देने का मौका नहीं मिलता है तो दो वोट और कम हो जाएंगे।
अपना दल कमेरावादी की नेता और सपा विधायक पल्लवी पटेल ने भी पीडीए की अनदेखी का आरोप लगाकर सपा के प्रत्याशियों को वोट नहीं देने का ऐलान किया है। ऐसे में सपा को चार विधायकों की जरूरत होगी। बसपा का भी एक विधायक है लेकिन उसका अभी तक रुख तय नहीं है।
वोटों की गणित के हिसाब से भाजपा को आठवें प्रत्याशी की जीत के लिए नौ और सपा को तीसरे प्रत्याशी को जिताने के लिए चार वोटों की जरूरत होगी। सपा की नजरें रालोद के चार विधायकों पर है। जबकि भाजपा दूसरी वरीयता के वोटों पर नजरें टिकाए हुए है।
इससे पहले भाजपा ने ऐसा ही दांव 2018 में खेला था। तब राज्यसभा चुनाव में भी अंतिम समय में अपने 9वें प्रत्याशी डा. अनिल अग्रवाल को उतार दिया था। अनिल अग्रवाल दूसरी वरीयता के ज्यादा वोट मिलने पर जीते थे। उनके प्रतिद्वंद्वी बसपा के भीमराव अंबेडकर को हालांकि पहली वरीयता के 37 वोट मिले थे लेकिन दूसरी वरीयता के मत न मिले के कारण वह हार गए थे।
2018 में तत्कालीन भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह ने नौवें उम्मीदवार की जीत सुनिश्चित करने के लिए बड़ी चतुराई से दूसरी वरीयता के वोटों रणनीति बनाई थी। यही नहीं, 2016 में भी कुछ ऐसा ही किया था। उन्होंने तत्कालीन कांग्रेस उम्मीदवार कपिल सिब्बल के खिलाफ एक रोमांचक मुकाबला खड़ा करते हुए निर्दल प्रत्याशी प्रीति महापात्रा का समर्थन कर दिया था। इस बार राज्यसभा चुनाव के लिए मतगणना के दौरान ही शाह यूपी आ रहे हैं। उनके सहकारी बैठक में भाग लेने के लिए लखनऊ आने की उम्मीद है। ऐसे में माना जा रहा है कि फिर से पूरी रणनीति वह बना चुके हैं।