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आईआईटी बीएचयू का गणितीय विज्ञान यानी मैथमेटिकल साइंस विभाग हर साल संस्थान को टॉप सैलरी पैकेज वाले विद्यार्थी देता है। इस वर्ष भी प्री प्लेसमेंट में 1.68 करोड़ रुपये का पैकेज पाने वाला छात्र इसी विभाग का है। विभाग के प्रोफेसर संजय कुमार पांडेय बताते हैं कि 1985 में विभाग का दर्जा पाने के बाद यहां गणित और कंप्यूटिंग की शिक्षा ने रफ्तार पकड़ी। 2010 में पांच बैच के छात्र ने प्लेसमेंट में सबसे अधिक पैकेज हासिल किया। इसके बाद बीच का एक वर्ष छोड़कर हर वर्ष आईआईटी का सबसे बड़ा पैकेज लाने का श्रेय इसी विभाग के छात्रों का है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2022 में भी 1.20 करोड़ रुपये सालाना का पैकेज इसी विभाग के छात्र ने हासिल किया था। उन्होंने बताया कि गणितीय विज्ञान के विद्यार्थियों की डेटा एनालिसिस सहित कंप्यूटिंग आदि क्षेत्रों में सबसे ज्यादा मांग है।
भारत ने 3 हजार साल पहले विश्व को सिखायी थी गिनती
बीएचयू के वैदिक विज्ञान केंद्र के समन्वयक प्रो. उपेंद्र कुमार त्रिपाठी बताते हैं कि गणित के उद्भव का क्रम यजुर्वेद सहित अन्य वेदों के संहिता भाग में मिलता है। इकाई, दहाई, सैकड़ा से खरब तक का ज्ञान यहां मौजूद है। उन्होंने बताया कि गणित की विकास यात्रा हमारे वेदों के अध्ययन में सिलसिलेवार दिखाई देती है। ईसा से 800 वर्ष पूर्व रचे गए कल्पवेदांग ग्रंथ के चार सूत्रों में एक शुल्वसूत्र में रेखागणित और बीजगणित का प्रचुर उपयोग है। शुल्वसूत्र यज्ञीय वेदियों के निर्माण की जानकारी देता है। इनकी स्थापना के तरीकों सहित संख्या के लिए गणित का प्रयोग हुआ है। इसी सूत्र में विषम संख्याओं का भी उपयोग है।
प्रो. त्रिपाठी बताते हैं कि इसके बाद बीजगणित के रचनाकार आचार्य लगध ने इन्हीं सूत्रों का प्रयोग किया। बाद में उनकी बेटी के नाम पर ‘लीलावती’ नामक बीजगणित ग्रंथ की भी रचना की गई। इनके बाद आए ज्यामितीय के रचयिता बौधायन, आचार्य वराहमिहिर, आर्यभट्ट और भास्कराचार्य आदि ने गणित के सूत्रों को और विस्तृत किया। पुरी गोवर्धनपीठ के 143वें शंकराचार्य स्वामी कृष्णतीर्थ ने 16 सूत्रों से वैदिक गणित की रचना की। उन्होंने यह भी उद्धृत किया है कि किन वेदों और संहिताओं से उन्होंने यह सूत्र विकसित किए हैं। प्रो. त्रिपाठी ने बताया कि वैदिक विज्ञान केंद्र में वैदिक गणित के एकवर्षीय डिप्लोमा पाठ्यक्रम में इन सूत्रों का शिक्षण किया जा रहा है।