Monday, July 8, 2024
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रूस की मदद से पुर्तगालियों को खदेड़ा, आजाद गोवा के लिए अमेरिका-ब्रिटेन तक से भिड़ा भारत


Goa Liberation Day: 19 दिसंबर 1961 की तारीख भारतीय इतिहास के लिए अहम है। इस दिन गोवा को पुर्तगालियों से आजादी मिली थी। पुर्तगाली शासन के चार शताब्दियों से अधिक समय तक रहकर देश से बाहर भागने का किस्सा दिलचस्प है। भारत को अंग्रेजों से आजादी भले ही 15 अगस्त 1947 को मिली लेकिन, गोवा को आजाद कराने में 14 साल और लग गए। इसके लिए भारतीय जवानों ने ऑपरेशन गोवा चलाया था। जिन पुर्तगालियों ने  451 साल तक गोवा पर राज किया, भारतीय वीरों को उसे आजाद कराने में महज दो दिन लगे। लेकिन, यह इतना भी आसान नहीं था। पुर्तगाल ने भारत के खिलाफ यूएन में चुनौती पेश की थी, जिसका अमेरिका, चीन और ब्रिटेन तक ने समर्थन किया लेकिन, तब भारत के लिए सोवियत रूस ऐसा दोस्त बनकर आया जिसने जीत दिलाकर ही दम लिया। 

17 से 19 दिसंबर 1961 तक दो दिन के भीतर भारतीय जवानों ने गोवा को पुतर्गालियों के शासन से मुक्त कराया। गोवा की मुक्ति के बाद कई घटनाएं भी हुईं, जिन्होंने भारत और पुर्तगाल के बीच संबंधों को तनावपूर्ण कर दिया था।  भारत को अंग्रेजों से आजादी मिलने के 14 साल बाद गोवा मिल पाया था। 19 दिसंबर को गोवा की मुक्ति की 62वीं वर्षगांठ है। 

भारत की सैन्य कार्रवाई और गोवावासियों को गुलामी से आजाद करने के बावजूद पुर्तगाल ने अपनी जिद नहीं छोड़ी और सैन्य मोर्चे में करारी शिकस्त खाने के बाद यूएन का रुख किया। पुर्तगाल ने गोवा में भारत की संप्रभुता को मान्यता देने से इनकार करते हुए इसे संयुक्त राष्ट्र में चुनौती दी। तब संयुक्त राष्ट्र में पश्चिमी शक्तियों का बोलबाला था। भारत को अमेरिका और ब्रिटेन जैसे ताकतवर देशों के विरोध का सामना करना पड़ा लेकिन, इस बीच भारत को सोवियत संघ के रूप में एक दोस्त मिला, जिसने भारत की मुश्किल राह को आसान बनाया।

1940 के दशक में जब भारत अपनी स्वतंत्रता के करीब पहुंचा तो गोवा की आजादी के लिए संघर्ष तेज हो गया था। हालांकि, गोवा पुर्तगालियों का गढ़ बना रहा। जिसके बाद पुर्तगालियों की कमर तोड़ने के लिए 1955 में भारत ने गोवा में आर्थिक नाकेबंदी लगा दी। तनाव तब और बढ़ गया जब पुर्तगाली सेना ने मछली पकड़ने वाले भारतीय जहाजों पर गोलीबारी की। इस घटना में कई लोग घायल हुए। पुर्तगालियों के इस आक्रामक रुख ने भारत को गोवा में सैन्य कार्रवाई के लिए प्रेरित किया। दो दिन चले युद्ध के बाद पुर्तगाली गवर्नर जनरल को आत्मसमर्पण करना पड़ा और गोवा का भारत में एकीकरण हुआ।

भारत के खिलाफ संयुक्त राष्ट्र पहुंचा पुर्तगाल 

गोवा हाथ से जाने के बाद तिलमिलाए पुर्तगाल ने संयुक्त राष्ट्र का रुख किया। अब पुर्तगाल और भारत के बीच कूटनीतिक युद्ध की स्थिति बन गई। संयुक्त राज्य अमेरिका, यूनाइटेड किंगडम और फ्रांस ने पुर्तगाल के उस प्रस्ताव का समर्थन किया जिसमें भारत से अपनी सेना वापस बुलाने की मांग की गई। पुर्तगाल के प्रस्ताव को चीन, इक्वाडोर, चिली और ब्राज़ील का भी समर्थन मिला। हालांकि, सोवियत संघ, लाइबेरिया, संयुक्त अरब गणराज्य (यूएआर) और श्रीलंका जैसे देशों से भारत को समर्थन मिला। सोवियत रूस ने वीटो का यूज किया और पुर्तगाल के प्रस्ताव को गिरा दिया। भारत का समर्थन करने वाले देशों ने पश्चिम के दोहरे मानकों की आलोचना की।

संयुक्त राष्ट्र में भारत को जीत कैसे मिली

संयुक्त राष्ट्र में सोवियत रूस ने पश्चिमी रुख की कड़ी निंदा की और क्यूबा पर अमेरिका के असफल आक्रमण जैसी हाल की घटनाओं का उल्लेख करते हुए पश्चिमी देशों की निंदा की। सोवियत संघ ने तर्क दिया कि भूगोल, इतिहास, संस्कृति, भाषा और परंपराओं के आधार पर गोवा का भारत से संबंध निर्विवाद है। संयुक्त अरब गणराज्य, श्रीलंका और लाइबेरिया के प्रतिनिधियों के बयानों ने भी पुर्तगाल के तर्कों को और ध्वस्त कर दिया।

गोवा की मुक्ति महज एक सैन्य अभियान नहीं थी। यह वैश्विक मंच पर किया गया एक कूटनीतिक तख्तापलट था। आज, सिर्फ गोवा की आजादी का जश्न नहीं, भारत और रूस के बीच दोस्ती की भी कहानी है।



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