Home Life Style लैंगिक रूप से उदासीन और LGBTQ+ के अनुकूल शौचालय बनाने की दिशा में पहल

लैंगिक रूप से उदासीन और LGBTQ+ के अनुकूल शौचालय बनाने की दिशा में पहल

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लैंगिक रूप से उदासीन और LGBTQ+ के अनुकूल शौचालय बनाने की दिशा में पहल

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चूंकि प्राइड मंथ ने दुनिया को सतरंगी झंडों और उत्सवों की झालरों से संजा दिया है, न केवल व्यापक सामाजिक पहलुओं को बल्कि LGBTQ+ समुदाय द्वारा सामना की जाने वाली व्यावहारिक चुनौतियों पर भी बात करना अनिवार्य है. ऐसी एक चुनौती जिसे अक्सर नज़रअन्दाज़ कर दिया जाता है सार्वजनिक शौचालयों तक पहुँच है. भारत के उच्चतम न्यायालय ने हाल ही में एक समावेशन के मामले में हमारे लिए एक नया बेंचमार्क सेट किया है जो वैसे ही गर्मज़ोशी से छटा बिखेरता है जैसे LGBTQ+ समुदाय को दर्शाने वाला इन्द्रधनुष: स्वयं न्यायालय के शानदार गलियारों में ही नौ लैंगिक रूप से उदासीन स्नानघर बनाये गये हैं, जो बदलाव की बयार की सूचना दे रहे हैं.

भारत में, जहाँ पारम्परिक सामाजिक ढाँचा धीरे-धीरे समावेशन की तरफ़ जा रहा है, ऐसे सार्वजनिक स्थल बनाने की बहुत अधिक आवश्यकता है जो सभी के लिए हों, चाहे उनकी लैंगिक पहचान कुछ भी हो. वास्तुशिल्प की प्रतिभा, तकनीकी उपायों और सांस्कृतिक संवेदनशीलता के माध्यम से, भारत आसानी से ऐसे शौचालय के स्थान तैयार कर सकता है जिसमें हममें से प्रत्येक के लिए समावेशन और गरिमा हो.

समझदारी के पुल का निर्माण
लेकिन आइये एक क़दम पीछे चलते हैं. मौजूदा शौचालयों में परलैंगिक (ट्रांसजेंडर) और ग़ैर-बाइनरी लोगों को समस्या क्यों होती है?

सबसे पहले, हमारे मौजूदा शौचालय लिंग की द्विआधारी समझ के हिसाब से बनाये गये हैं. परलैंगिक व्यक्ति वह होता है जो अपनी पहचान अपने जन्म द्वारा निर्धारित लैंगिकता से अलग लैंगिकता से करता है. दूसरी तरफ़ ग़ैर-बाइनरी व्यक्ति कठोरता से पुरुष या स्त्री के रूप में नहीं पहचाने जाते हैं. भारत में, ऐसे व्यक्तियों को प्रायः तृतीय लिंग का व्यक्ति माना जाता है. परलैंगिक और ग़ैर-बाइनरी दोनों ही प्रायः डिस्फ़ोरिया से ग्रसित होते हैं – अर्थात् उनके शरीर या सामाजिक प्रतीति और उनकी वास्तविक लैंगिक पहचान के बीच अलगाव. उदाहरण के लिए, एक परलैंगिक महिला को तब डिस्फ़ोरिया का अनुभव हो सकता है जब उसे “वह (पुरुष)” के तौर पर सन्दर्भित किया जाता है, भले ही उसकी शारीरिक बनावट पुरुष लैंगिकता की पहचान दर्शाती हो.

हममें से उनके लिए जिन्हें यह सुविधा प्राप्त है कि उनकी लैंगिक पहचान हमारी जैविक लैंगिकता से मेल खाती है, इन अनुभवों के महत्व को समझना महत्वपूर्ण है. यह कई रूपों में गहन तदनुभूति की माँग करता है क्योंकि हमारा विशेषाधिकार हमें स्वयं कभी-भी ऐसी परिस्थितियों का अनुभव करने से बचा लेता है. हम इन व्यक्तियों द्वारा अनुभव की जाने वाली परेशानियों के सबसे निकट तब आ सकते हैं, जब हमें दूसरे लिंग के लिए आरक्षित स्नानघर का प्रयोग करने के लिए बाध्य किया जाये.

परलैंगिक और ग़ैर-बाइनरी व्यक्तियों को ऐसे वाशरूम प्रयोग करने के लिए बाध्य करना जो उनकी लैंगिक पहचान से मेल नहीं खाते डायस्फोरिया को बढ़ा सकते हैं, जिससे गम्भीर भावनात्मक निराशा, अवसाद और चिन्ता हो सकती है. हालांकि, एक समाज के तौर पर, हम इस संघर्ष को कम करने के लिए क़दम उठा सकते हैं. शोध ने दर्शाया है कि ऐसी सुविधाएँ प्रदान करना जो उनकी लैंगिक पहचान से मेल खाती हों, परलैंगिक लोगों में आत्महत्या की दर को कम कर देता है. इस आवश्यकता को सम्बोधित करने का एक तरीक़ा लैंगिक रूप से उदासीन शौचालय, या कम-से-कम, सार्वजनिक स्थानों पर परलैंगिक-समावेशी सुविधाओं का निर्माण करना है.

दिल्ली में, सरकार ने अपने सभी विभागों, कार्यालयों, जिला अधिकरणों, नगर निगमों, राज्य-संचालित कम्पनियों, और दिल्ली पुलिस के लिए परलैंगिक लोगों के लिए अलग और समावेशी वाशरूम अनिवार्य करके समावेशन दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम उठाया है. यह आदेश न केवल परलैंगिक शौचालयों की स्थापना की बात करता है बल्कि साथ ही यह भी कहता है कि परलैंगिक व्यक्तियों के पास अपने स्व-निर्धारित लिंग के अनुसार लिंग-आधारित शौचालय का प्रयोग का विकल्प बना रहेगा. हालांकि, समुदाय के भीतर से कुछ आवाज़ें अलग दृष्टिकोण की माँग कर रही हैं. वे परलैंगिक शौचालयों पर लैंगिक रूप से उदासीन शौचालय के महत्व पर ज़ोर देते हैं.

विस्तार में जाने पर तरह-तरह की बातें हो सकती हैं, लेकिन यह एक महत्वपूर्ण विभेद है. ट्रांसफोबिया के माहौल में, परलैंगिक शौचालयों को नफ़रती हमले के लिए तुरन्त निशाना बनाया जा सकता है. इन स्नानघरों में आऩे-जाने वाले लोगों को ‘पहचाना’ जा सकता है और नफ़रती समूहों द्वारा निशाना बनाया जा सकता है, और परलैंगिक व्यक्तियों के लिए शौचालय बनाने का उद्देश्य, अर्थात् सुरक्षा और समावेशन के लिए जगह बनाना तुरन्त अपने सिर के बल खड़ा हो सकता है.

लैंगिक रूप से उदासीन शौचालय और परलैंगिक शौचालय समावेशन को लागू करने में और व्यक्तियों की अलग-अलग आवश्यकताओं को पूरा करने में अलग-अलग लेकिन महत्वपूर्ण उद्देश्यों की सेवा करते हैं. लैंगिक रूप से उदासीन स्नानघर किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्रयोग करने के लिए बनाये जाते हैं, उनकी लैंगिक पहचान अथवा अभिव्यक्ति जो भी हो. इनमें न केवल वे आते हैं जो स्वयं को ग़ैर-बाइनरी अथवा ज़ेंडरक्वीअर के तौर पर चिन्हित करते हैं बल्कि सभी को ज़्यादा लचीला और समावेशी माहौल प्रदान करते हैं, जिसमें अलग लिंग के बच्चों वाले परिवार या अलग लिंग के देखभाल करने वालों के साथ वाले व्यक्ति भी हैं.

लैंगिक रूप से उदासीन शौचालयों को सशक्तिकरण की जगहों के रूप में पुनः परिभाषित करना
लैंगिक रूप से उदासीन संरचनाओं में, एकल उपयोग वाले शौचालय साधारणपन और निजता प्रदान करते हैं. ये संरचनाएँ निजी आवासीय स्नानघरों जैसी होती हैं जिसमें वाशबेसिन और वाटर क्लोसेट के लिए अलग जगह होती है. साझा माहौन में यह सीधा दृष्टिकोण प्रभावी साबित हुआ है.

कई लोगों द्वारा प्रयोग किये जाने लैंगिक रूप से उदासीन शौचालयों को जनमानस की परेशानियों को सम्बोधित करने के लिए अधिक जटिल संरचना सुधारों की आवश्यकता होती है. विविध आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए, डिज़ाइन बनाने वाले अलग-अलग मॉडल अपना सकते हैं. पुरुषों के कक्ष के मॉडल में दोनों परम्परागत यूरीनल और टॉयलेट स्टाल होते हैं जो अलग-अलग उपयोगकर्ताओं को विकल्प देते हैं. महिलाओं के कक्ष का मॉडल केवल परम्परागत टॉयलेट पर केन्द्रित होता है, यूरीनल हटा दिया जाता है. परिवार शौचालय मॉडल में कई लैंगिक रूप से समावेशी शौचालय कक्ष होते हैं जिसके साथ हाथ धोने के लिए साझी जगह होती है.

एक सामुदायिक वाश बेसिन क्षेत्र तैयार करना एकजुटता को प्रेरित करता है साथ ही व्यक्तिगत आराम को भी सुनिश्चित करने वाला है. निजता और सुरक्षा में वृद्थि करने के क्रम में, नवोन्मेषी डिज़ाइन तत्वों को लागू किया जा सकता है. खुली-योजनाओं वाली अवधारणाओं से हलचल और दृश्य सामुदायिक स्थान तैयार होते हैं, जिससे सुरक्षा का बोध निर्मित होता है. पूरी लम्बाई के क्युबिकल विभाजन और शीलता को बनाये ऱखने वाली सुविधाओं को यूरीनल के इर्द-गिर्द निजता सम्बन्धी चिन्ता को सम्बोधित करने और उपयोगकर्ताओं को अधिक राहत महसूस कराने के लिए लगाया जा सकता है.

इन लैंगिक रूप से उदासीन संरचनाओं और मॉडल को ध्यान में रखकर, डिज़ाइन करने वाले ऐसे समावेशी शौचालय के स्थान बना सकते हैं जो व्यक्तियों की विविध आवश्यकताओं को पूरा कर सकें, साथ ही सभी के लिए भावनात्मक जुड़ाव और समानता की भावना को पोषित कर सके.

सुरक्षा, समावेशन और उपयोगकर्ताओं की सन्तुष्टि : अनुभवों का सशक्तिकरण
इन स्थानों पर सुरक्षा, समावेशन और उपयोगकर्ताओं की सन्तुष्टि को सुनिश्चित करने का बहुत महत्व है. तकनीकी उपाय जैसे स्मार्ट लॉक इन क्युबिकल विभाजन को सुरक्षित कर सकता है, जबकि पैनिक बटन सुरक्षा कर्मियों को सजग कर सकती है. इसके अलावा, एक ऐप्लिकेशन आधारित फ़ीडबैक प्रणाली को जोड़ देना उपयोगकर्ताओं को समस्याओं की रिपोर्ट करने और सुधार सम्बन्धी सुझाव देने में सक्षम बनाता है. यह तकनीक सतत सुधारों के लिए महत्वपूर्ण डेटा प्रदान करके उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा और सन्तुष्टि को सुनिश्चित करती है.

समावेशी सार्वजनिक शौचालय स्थलों को सभी के लिए मुफ़्त सैनिटरी उत्पादों के साथ हर क्युबिकल में पहुँच योग्य डिस्पेंसर प्रदान करने चाहिए, चाहे वह किसी भी लिंग के लिए हों. यह समझना चाहिए कि न केवल महिलाओं को इन उत्पादों की आवश्यकता होती है बल्कि यह समावेशन की दिशा में एक महत्वपूर्ण क़दम है.

शौचालय का प्रबन्धन करने वाले कर्मचारियों के लिए नियम संवेदनशील बनाने और प्रशिक्षण के शिविर महत्वपूर्ण हैं. उन्हें पूछताछ करने पर सम्मानपूर्वक और कुशलता से व्यवहार करना सिखाने से समावेशी माहौल तैयार करने में बहुत अधिक मदद मिलती है.

बदलाव की प्रेरणा : एक साथ समावेशन की जीत दर्ज़ करते हुए
समावेशी शौचालय स्थलों के लक्ष्य के लिए जुनूनी सहयोगियों से सामूहिक प्रयास की आवश्यकता है. ऐसा ही एक उदाहरण वह गम्भीर साझेदारी है जो स्वच्छता के लिए अपनी प्रतिबद्धता के लिए प्रसिद्ध ब्रांड Harpic और सामाजिक बदलाव को प्रेरित करने के लिए समर्पित मंच News18 के बीच है. एक साथ मिलकर वे ‘मिशन स्वच्छता और पानी’ के साथ उल्लेखनीय यात्रा पर निकले हैं – जो स्वच्छता की सीमाओं का विस्तार करने वाली बदलाव की मशाल है. यह असाधारण मिशन ऐसे स्थानों के रूप में शौचालयों के गम्भीर महत्व को मान्यता देता है जो न केवल स्वच्छता को बनाकर रखते हैं बल्कि LGBTQ+ समुदाय समेत हाशिये पर पड़े समुदायों सुरक्षा और स्वीकार्यता के लिए मशाल के रूप में काम करते हैं.

शिक्षा के परिवर्तन लाने वाली शक्ति में अटल विश्वास से संचालित Harpic और News18 ने ऐसे प्रेरित करने वाले अभियान शुरु किये हैं जो स्वच्छता, जल संरक्षण और सफ़ाई में समावेशन को बढ़ावा देते हैं. इन शक्तिशाली पहलक़दमियों के माध्यम सें जागरूकता फैलती है और समाज बड़े पैमाने पर जागरूक होता है, शिक्षित होता है और सभी के लिए स्वीकार्यता हेतु प्रेरित होता है. सक्रिय रूप से LGBTQ+ समुदाय को शामिल करते हुए और उनकी वक़ालत करते हुए, वे इस संदेश का प्रसार करते हैं कि हर व्यक्ति को स्वच्छ और स्वीकार्य स्थान मिलना चाहिए, जहाँ उनकी गरिमा बनायी रखी जाती है और उनकी उपस्थिति का जश्न मनाया जाता है.

फ़िर भी, लैंगिक रूप से उदासीन शौचालयों तक की यह यात्रा बाधाओं से रहित नहीं है. सांस्कृतिक दृष्टिकोण, धार्मिक विश्वास, सुरक्षा सम्बन्धी चिन्ताएँ, निजता और स्वच्छता इस में बड़ी बाधक हैं. विशेष तौर पर महिलाओं को इन उभयलिंगी स्नानघरों में मासिक चक्र सम्बन्धी आवश्यकताओं के लिए प्रयोग करने में असहज महसूस हो सकता है. वास्तुकारों और योजना बनाने वालों को इन चुनौतियों को तदनुभूति और न्यायोचित ढंग से सम्बोधित करना होगा, और ऐसी उचित जगहें बनानी होंगी जो सभी की आवश्यकताओं को पूरा करते हों.

इस तरह का एक शानदार उदाहरण WorkAC के वास्तुकारों द्वारा किया गया कार्य है – जो संयुक्त राज्य के Rhode Island School of Design Student Center में एक क्वीअर छात्र संगठन के साथ मिलकर किया गया है. उनकी डिज़ाइन में एक सामुदायिक वाश बेसिन के चारों तरफ़ छः वाटर क्लोसेट लगाये गये हैं जो सामुदायिक मेलजोल और निजता, दोनों के ही क्षण प्रदान करते हैं. और यह काम भी करता है.

इसे डिज़ाइन का एक शानदार उदाहरण यह बनाता है कि इसे अलग-थलग रहकर नहीं बनाया गया था. इस जगह कि डिजाइन को बनाने वालों ने उन समूहों की ज़रूरतों को समझने के लिए समय लिया जिन्हें इसे प्रयोग करना था, और उन्हें डिज़ाइन की इस यात्रा में हर क़दम पर शामिल किया. इसका परिणाम एक ऐसी जगह के रूप में आये जो व्यावहारिक रूप से भी काम करती है, न कि केवल कागज़ पर.

निष्कर्ष
सही मायने में समावेशी शौचालयों को डिज़ाइन करने के लिए अन्तिम उपयोगकर्ताओं को योजना निर्माण की प्रक्रिया में शामिल करने की आवश्यकता होती है. परिप्रेक्ष्यों की विविधता को अपनाकर, वास्तुकार सामाजिक बदलाव के सेवक बन जाते हैं जो समावेशन का ऐसा ताना-बाना बुनते हैं जिसमें समाज का हर कोना शामिल होता है. अपनी समृद्ध सांस्कृतिक विरासत और विविधताओं के साथ भारत आज सामाजिक बदलाव के एक चौराहे पर खड़ा है. लैंगिक रूप से उदासीन और LGBTQ+ के अनुकूल शौचालय के स्थान डिज़ाइन करना गरिमा, सम्मान और समानता की यात्रा है. यह जानने का समय आ गया है कि क्या हम मिलकर बदलाव कर सकते हैं और स्वीकार्यता के लिए रास्ता तैयार कर सकते हैं. हमारे द्वारा बनायी गयी जगहें एक समाज के रूप में हमारे मूल्यों को दर्शाती हैं और यह समय आ गया है कि हम विविधता को इसके सभी पहलुओं और रंगों के साथ अपनायें.

आइये नवोन्मेष, सांस्कृतिक संवेदनशीलता और अन्ति उपयोगकर्ताओं की आवाज़ों को अपनानकर भारत को बदलाव में अग्रिम मोर्च पर ले जाने के इस मौक़े को पकड़ें. वास्तुकारों, सरकारी संस्थानों, एनजीओ व Harpic जैसे कॉर्पोरेशन की दृढ़ सहायता के साथ हम एक ऐसा भविष्य तैयार कर सकते हैं जहाँ हर नागरिक की ज़रूरतों को न्याय के साथ पूरा किया जायेगा और जहाँ समावेशन को समाज के हर ताने-बाने के साथ गूँथ दिया जायेगा.

वार्तालाप से यहाँ जुड़ें, और इस बारे में और जानकारी प्राप्त करें कि सभी के लिए स्वच्छ और स्वस्थ भारत तैयार करने में आप कैसे सहायता कर सकते हैं.

-पार्टनर पोस्ट

Tags: Health, Mission Paani, Mission Swachhta Aur Paani, News18 Mission Paani

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