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लोकसभा चुनाव की व्यस्तता के बीच 21-22 मार्च को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की भूटान यात्रा को बेहद अहम माना जा रहा है। इसे भूटान की नई सरकार के साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाने की कोशिश के तौर पर देखा जा रहा है। यह यात्रा चीन के लिए भी एक संदेश होगी, जो भारत के पड़ोसी देशों में लगातार अपना वर्चस्व बढ़ाने की जुगत में है।
चीन से तनातनी के दौर में भूटान भारत के लिए अहम स्थान रखता है। चीन और भारत के बीच भूटान का एक हिस्सा आता है इसलिए यह भारत के लिए बफर स्टेट का काम करता है। हाल के वर्षों में वहां चीन ने दखल बढ़ाने की कोशिश भी की है। डोकलम प्रकरण इसका सबसे बड़ा उदाहरण है। पिछली सरकार के कार्यकाल में चीन और भूटान के बीच एक सीमा समझौता भी हुआ था। भारत इन गतिविधियों पर बारीकी से नजर रखे हुए है।
दरअसल, भूटान में जनवरी में हुए चुनाव में पीडीपी (पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी) विजयी हुई है और शेरिंग टोबगे प्रधानमंत्री बने हैं। यह महत्वपूर्ण है कि प्रधानमंत्री बनने के बाद उन्होंने सबसे पहले भारत की यात्रा करने का निर्णय लिया। वे 18 मार्च तक भारत यात्रा पर हैं। गुरुवार को जब उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को भूटान यात्रा का निमंत्रण दिया तो उन्होंने झट से इसे स्वीकार कर लिया।
चीन को संदेश
माना जा रहा है कि इस यात्रा के जरिये जहा मोदी भूटान के साथ संबंधों को प्रगाढ़ बनाएंगे वही चीन को भी इससे स्पष्ट संदेश देने की कोशिश होगी कि एशिया में भारत मजबूती के साथ अपने पडोसी देशों के साथ खड़ा है। हालांकि अभी उनके कार्यक्रम का विस्तृत ब्यौरा नहीं आया है, लेकिन इस दौरान कई महत्वपूर्ण समझौतों पर हस्ताक्षर होने की भी संभावना है। बता दें कि 2014 में प्रधानमंत्री बनने के बाद मोदी ने सबसे पहले भूटान की यात्रा की थी। इसके बाद 2019 में भी वे भूटान यात्रा पर गए थे।