Sunday, December 22, 2024
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वह रे दिल्ली! मेरे अरमानों का तूने कर दिया कत्ल… बच्ची ने ऐसे तोड़ दिया दम


नई दिल्ली. बेहतर स्वास्थ्य व्यवस्था देने का वायदा करने वाली दिल्ली के अस्पतालों का हाल दिनोंदिन और खराब होता जा रहा है. एम्स, आरएमएल और सफदरजंग जैसे अस्पतालों में तो पहले से ही समय पर इलाज मिलना लोगों को मुश्किल हो रहा था. अब दिल्ली सरकार के अस्पतालों में भी इलाज मिलना मुश्किल हो गया है. दिल्ली से सटे इलाकों के लोगों लोगों को लगता है कि राजधानी के अस्पतालों में जाने से बेहतर इलाज मिल जाएगा, लेकिन यहां आने पर लोगों को निराशा हाथ लग रही है. लोगों को लगता है कि एम्स, सफदरजंग और आरएमल में अगर बेड नहीं मिलता है तो दिल्ली के अन्य अस्पतालों में जाकर इलाज करा लेंगे. लेकिन, ऐसे लोगों को अब एलएनजेपी, जीबी पंत, चाचा नेहरू, लेडी हार्डिंग और कलावती जैसे अस्पतालों में जाने के बाद भी निराशा हाथ लग रही है.

दिल्ली सरकार के सबसे बड़े अस्पताल लोक नायक, जीबी पंत, जीटीबी सहित 39 अस्पतालों में सुविधाओं का घोर अभाव शुरू हो गया है. राजधानी होने के कारण आस-पास के राज्यों के लोग बेहतर इलाज के लिए तुरंत दिल्ली आ जाते हैं. लेकिन, दिल्ली आने के बाद उन्हें बेड नहीं मिल पाता है. सीटी स्कैन और एमआरआई छोड़ दें, अल्ट्रासाउंड के लिए भी 2-3 साल बाद यानी 2025 का डेट मिल रहा है. खासकर नवजात बच्चों के लिए दिल्ली के अस्पतालों में सुविधाओं का घोर अभाव है.

देश की राजधानी होने के कारण आस-पास के राज्यों के लोग बेहतर इलाज के लिए तुरंत दिल्ली आ जाते हैं

दिल्ली के अस्पतालों का ये है हाल
मथुरा की रहने वाली पूनम न्यूज 18 हिंदी के साथ बातचीत में कहती हैं, ‘मेरी बहन ने कुछ दिन पहले ही एक बच्ची को जन्म दिया. प्रीमैच्‍योर बेबी होने की वजह से कई तरह की दिक्कतें शुरू हो गईं. मथुरा के वात्सल्य सिटी क्लीनिक में कई दिनों तक इलाज हुआ, लेकिन बच्ची की स्थिति लगातार बिगड़ती ही जा रही थी. बच्ची की बिगड़ती स्थिति को देख कर घरवालों ने दिल्ली आने का फैसला किया.’

बच्ची ने तड़प-तड़प कर तोड़ दिया दम
पूनम आगे कहती हैं, ’11 मार्च को हमलोग बच्ची को लेकर दिल्ली आ गए. मथुरा में डॉक्टरों ने कहा कि बच्ची को सांस लेने में दिक्कत हो रही है और ब्रेन में भी रक्त का थक्का जम गया है. हमलोगों ने बच्ची पर मथुरा में काफी पैसा खर्च कर दिया था और बच्ची को तुरंत इलाज की जरूरत थी. एम्स में तुरंत इलाज मिलना मुश्किल था इसलिए हमलोगों ने सोचा कि एम्स या सफदरजंग जाने के बजाए बच्चों के अस्पताल में जाए जाए. बच्ची को लेकर सबसे पहले हमलोग चाचा नेहरू अस्पताल पहुंचे. वहां घंटों इंतजार करने के बाद बोल दिया गया कि बेड खाली नहीं है.

पूनम आगे कहती हैं, ‘फिर हमलोगों ने बच्ची को लेकर कलावती अस्पताल पहुंचे. यहां भी बोल दिया गया कि बेड खाली नहीं है. इसके बाद हमलोग लेडी हार्डिंग अस्पताल पहुंचे. यहां भी बोल दिया गया कि बेड उपलब्ध नहीं है. इसके बाद हमलोग आरएमएल गए वहां घंटों इंतजार करने के बाद बेड नहीं मिला. इसके बाद हमलोगों ने एलएनजेपी अस्पताल का रुख किया तो वहां भी बोला गया कि तुंरत इलाज मुश्किल है. अस्पतालों के भागमदौड़ से बच्ची की स्थिति लगातार बिगड़ती जा रही थी. थक हार कर बच्ची को मथुरा लेकर लौट गए और बुधवार सुबह बच्ची ने दम तोड़ दिया.’

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एम्स जैसे अस्पतालों में पहले से ही मरीजों का ज्यादा लोड है. (फाइल फोटो)

बच्ची को नहीं मिला अस्पतालों में इलाज
बता दें कि यह एक बच्ची की कहानी नहीं है. दिल्ली में हर दिन कई बच्चियों के साथ इस तरह की घटनाएं हो रही हैं. अस्पतालों में जांच के लिए मरीजों को लंबी डेट दिया जा रहा है. अस्पतालों में एक-एक बेड पर चार-चार मरीजों का इलाज किया जा रहा है. यह राजधानी का स्वास्थ्य व्यवस्था का हाल है.

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हाल ही में दिल्ली के उपराज्यपाल विनय कुमार सक्सेना और मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल के बीच सरकारी अस्पतालों की खराब स्थिति को लेकर वाद-विवाद हुआ था. एलजी ने केजरीवाल से अस्‍पतालों की स्थिति को लेकर रिपोर्ट मांगी थी. दूसरी तरफ, दिल्ली हाईकोर्ट ने भी हाल में राजधानी की लचर स्वास्थ्य व्यवस्था को लेकर दिल्ली सरकार को फटकार लगाई थी. अदालत ने दिल्ली सरकार के उस रिपोर्ट पर संज्ञान लिया था जिसमें बताया गया था कि दिल्ली के 39 सरकारी अस्पतालों के लिए मात्र 6 सीटी स्कैन मशीनें हैं.

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