Tuesday, March 11, 2025
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विपक्ष के जुटान के बाद भी UP को लेकर क्यों खुश है भाजपा, इन 11 करोड़ लोगों से है उम्मीद


लोकसभा चुनाव में करीब एक साल का ही वक्त बचा है और उससे पहले विपक्ष गोलबंदी में जुटा है। बिहार, बंगाल, महाराष्ट्र जैसे राज्यों में एकजुटता के लिए विपक्ष जुटा है, लेकिन 80 सीटों वाले यूपी को लेकर अब तक तस्वीर साफ नहीं है। वहीं भाजपा इस राज्य में 2014 और 2019 की सफलता को दोहराने की बातें कर रही है और उत्साहित है। कुछ आंकड़े भी हैं, जो भाजपा के उत्साह को गलत नहीं ठहराते। भाजपा ने उत्तर प्रदेश में 2014 में 71 लोकसभा सीटें जीत ली थीं और 2019 में 62 पर विजय हासिल की। 2019 में तो सपा और बसपा में गठबंधन था, तब भी भाजपा ने अपना दल के साथ मिलकर 51.18 फीसदी वोट हासिल किए थे।

यहीं पर विपक्षी एकता की कोशिश को लेकर सवाल उठता है, जिसमें बसपा को बुलाया ही नहीं गया। वही बसपा जिसने 2019 के आम चुनाव में 19 फीसदी से ज्यादा वोट पाए थे, जबकि सपा को 18 फीसदी मत ही मिले थे। आरएलडी भी इनके ही साथ थी और तीनों ने मिलकर 39 फीसदी मत पाए थे। तीनों दल मिलकर भी जब भाजपा से पीछे थे तो यदि बसपा अलग रहेगी तो फिर विपक्ष का क्या हाल होगा, इसे लेकर चिंता जताई जा रही है। वह भी ऐसे दौर में जब भाजपा ने 2022 में लगातार दूसरी बार पूर्ण बहुमत से यूपी में सरकार बनाई है। 

पसमांदा की फिक्र और UCC का जिक्र कर PM का बड़ा संकेत

मायावती ने इस बारे में ट्वीट कर कहा था कि बिना यूपी पर विचार किए यह कैसी विपक्षी एकता हो रही है? यही नहीं अब दूसरी मीटिंग शिमला में होने जा रही है, जो कांग्रेस शासित राज्य है, लेकिन यूपी से काफी दूर है। इस बीच मायावती ने ऐलान कर दिया है कि वह लोकसभा चुनाव में अकेले ही उतरेंगी। साफ है कि बसपा उतरी और कुछ अहम सीटों पर दलित एवं मुस्लिम कैंडिडेट बड़ी संख्या में दिए तो फिर सपा का समीकरण खराब हो सकता है। भले ही उसके साथ कांग्रेस या फिर आरएलडी भी रहें, तब भी उसे नुकसान उठाना होगा।

2019 में मिलकर भी हारे, अलग होकर लड़े तो क्या होगा?

सपा और बसपा अलग होकर चुनाव लड़ें तो कितना नुकसान होगा, इसे समझने के लिए 2014 के आंकड़ों को समझना होगा। सपा, बसपा और आरएलडी को 2014 में कुल मिलाकर 42.98% वोट मिले थे, जबकि भाजपा अकेले 42.63 फीसदी वोट लेकर 71 सीटें पा गई थी। यदि इस बार भी सपा और बसपा जैसे दल अकेले लड़ें तो तस्वीर क्या होगी, इसे समझा जा सकता है। इस बार तो भाजपा लाभार्थी वोटबैंक पर और ज्यादा भरोसा कर रही है। उसे लगता है कि वेलफेयर स्कीमों का लाभ पाने वाले वे वोटर जाति और संप्रदाय से ऊपर उठकर भी उसे वोट देंगे। 2022 के विधानसभा चुनाव में जीत के लिए भी इस वोट को अहम माना गया था। 

11 करोड़ लाभार्थियों से भाजपा को क्या है उम्मीद

भाजपा को लगता है कि यूपी में पीएम आवास योजना, शौचालय, हेल्थ कार्ड, उज्ज्वला स्कीम, टैबलेट और स्मार्टफोन्स के मुफ्त वितरण से उसे फायदा मिलेगा। पार्टी के एक नेता ने कहा कि यूपी में अलग-अलग स्कीमों से 11 करोड़ से ज्यादा लोगों को फायदा पहुंचा है। इन लोगों में मुस्लिम, जाटव और यादव भी बड़ी संख्या में शामिल हैं। इनका वोट भाजपा को कम मिलता है, लेकिन कुछ आंकड़ा भी साथ आया तो उसे अपनी सफलता को दोहराने की उम्मीद है। यही नहीं पसमांदा वोट भी यदि कुछ मिला तो भाजपा की उम्मीदें थोड़ा और परवान चढ़ सकती हैं। 



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