Friday, July 5, 2024
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व्यक्ति की अंतरदृष्टि में समानता और प्रकृति को आत्मसात करने का पर्व है ‘छठ’


प्रो. आर.एन. त्रिपाठी
भारत इकलौता देश है, जहां उत्सव धर्मिता पूरे साल सभी समाज में किसी न किसी रूप में चलती रहती है. इसमें भी कुछ ऐसे पर्व हैं, जिसे समाज का हर वर्ग समान उत्साह के साथ मनाता है. ‘छठ’ का महापर्व, इन्हीं में से एक है. भारत के प्रत्येक पर्व का काल चौबीस घण्टे में सूर्योदय और सूर्यास्त जैसी वैज्ञानिक समय बाध्यता पर निर्भर है. ‘छठ महापर्व’ भी सूर्य की गति अनुसार इसी परम्परा पर चलता है.

अगर हम छठ के प्रक्रिया-गत पूजन का अध्ययन करें तो देखेंगें कि पूजन के लिए नदी का जल सबके लिए समान है, सभी आराधकों के आराध्य एक ही हैं- सूर्य. गीत भी लगभग एक समान और पारंपरिक स्थानीयता के आधार परहैं. पूजा स्थान समूहगत होता है, साक्षात नदी का किनारा…जो सबका एक ही है. प्रत्येक व्रती की पूजन सामग्री भी एक होती है. चावल, शकरकंद, गन्ना और केला ये सबके लिए सर्व सुलभ हैं.

प्रसाद वितरण में भी समानता है. प्रत्येक व्यक्ति का उपभोग ‘इशावास्योपनिषद्’ के अनुसार एक अंश के रूप में ही भोक्ता बनकर प्रसाद लेना है, बाकी दूसरों में बांट देना है. जिसे गांधी के न्यासिता के सिद्धांत का प्रत्यक्ष उदाहरण भी माना जा सकता है. सूर्य भी अपनी प्राकृत भाव से बिना भेदभाव सबके लिए एक साथ उदय-अस्त होते हैं.

छठ का क्या है महत्व, क्या है संदेश?
हमारे सभी पर्व सौर्य-ऊर्जा पर केंद्रित हैं. छठ की बात करें तो यह पूर्ण वैज्ञानिक प्रकृति पर्व है, क्योंकि हम जानते हैं कि संपूर्ण जीवन का मुख्य स्रोत सूर्य है. इसलिए इस पर्व में सूर्य की ही पूजा की जाती है. उदयीमान यानी उगते और अस्ताचलगामी यानी डूबते सूर्य की पूजा की जाती है. ऐसी मान्यता है कि यह मानव जीवन, जो प्रकृति द्वारा दिया गया है एक दिन प्रकृति की गोद में ही समा जाएगा. इसलिए सर्व समाज और समावेशी विचारधारा के साथ हमें, लोगों के साथ सम व्यवहार करना चाहिए.

आराध्य सूर्य का समानता वादी दृष्टिकोण यह बताता है कि वह अपना प्रकाश पेड़, पत्तों, जड़ व चेतन सबको देता रहता है. जितना प्रकाश नदियों, पर्वतों को देता है, उतना ही प्रकाश हम मनुष्यों को भी देता है. वह सम भाव से ही प्रकृति के सारे-जीव जंतुओं को भी अपना प्रकाश देता है. संदेश यह है कि वही समाज सुखी और समृद्ध होता है, जिसके परस्पर वितरण में, और जिसके अधिकार में कोई भेदभाव नहीं होता है. यह त्योहार इस बात के लिए प्रसिद्ध है कि किस प्रकार समाज में सहज आत्मीयता व समानता बनी रहे. ठीक उसी तरह, जैसी सूर्य में है.

प्रकृति से जो लिया, सब अर्पण
छठ पूर्णरूपेण प्राकृतिक पर्व है, जहां प्रकृति की पूजा की जाती है. प्रकृति प्रदत्त उत्पादों से पूजा होती है और प्रकृति को ही समर्पित भी की जाती है. इस पर्व में प्रकृति के समस्त उपादान विशेष करके “छिति जल पावक गगन समीर” की पूजा होती है. कहा जाता है कि संपूर्ण जीव-जगत रचना का महत्वपूर्ण एकमात्र छोटी इकाई हम मनुष्य हैं. इसलिए हम प्रकृति मात्र एक आंशिक भोक्ता हैं. इसलिए कभी भी सम्पूर्ण प्रकृति पर विजय प्राप्त करने की कोशिश न करें. एक आंशिक भोक्ता के ही रूप में प्राकृतिक संसाधनों का उचित दोहन करें, वह भी मात्र सहभागी और समावेशी धारणीय विकास की भावना को दृष्टिगत रखकर.

यही ऐसा पर्व है जो समाज के प्रत्येक वर्ग और प्रत्येक जाति के रोजगार अर्थात उनके आर्थिक विकास के पक्ष पर भी ध्यान देता है. जिसमें बांस से लेकर फल, फूल, टोकरी, रस्सी मिष्ठान के व्यवसाय से लेकर विभिन्न प्रकार के कृषि और कुटीर उद्योगों से संबंधित व्यवसायों, अर्थात समाज के निचले और कार्यशील तबके को रोजगार मिलता है. इसलिए इस पर्व को सर्व समावेशी पर्व भी कहा जाता है.

शारीरिक, मानसिक और वैचारिक पवित्रता देने वाला पर्व
छठ पर्व चार दिनों तक चलता है, जो शारीरिक, मानसिक और वैचारिक पवित्रता प्रदान करता है. हमारी समस्त अंतर शक्तियों को जागृत कर देता है और हमारे अंतस में समत्व की भावना को प्रकट करने की पवित्र भावना पैदा करता है. आजकल स्वच्छता, एक अच्छे समाज का पर्याय बन गयी है. अगर आपको इसका निदर्शन देखना हो छठ की पूजा में देखा जा सकता है, जहां स्वच्छता, सहकारिता और प्रकृति सज्जा के समस्त उपादान एक साथ उपस्थित रहते हैं.

हमारे भारतीय पर्व सांस्कृतिक अमरता के पर्व होते हैं, इसलिए इस पर्व पर हम अपनी भारतीयता अर्थात ‘उदारचरिता नाम तू वसुधैव कुटुंबकम’ की सैद्धांतिक पहल को बनाये रखते हैं. छठ का प्रसाद किसी जाति-धर्म और संप्रदाय के आधार पर समाज नहीं बांटता, बल्कि उसे सभी लोग सम्पन्नता और विपन्नता का ध्यान दिए स्वीकार करते हैं. आइये प्रकृति के पावन पर्व पर हम सूर्य की समत्व दृष्टि को आत्मसात करें. लोक संस्कृति का पालन करते हुए लोक के प्रति अपने दायित्व को जागृत करें. यह पर्व आत्म चेतना को चेताता है कि सहचर बनकर सहर्ष भाव से सर्व समावेशी, सर्वजन हितकारी समाज का निर्माण करें. यही पर्व की पूर्णता होगी और परम् पुण्य होगा.

– डॉ. आर. एन. त्रिपाठी काशी हिंदू विश्वविद्यालय (BHU) के समाजशास्त्र विभाग में प्रोफेसर और उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग (UPPSC) के सदस्य हैं. 

(डिस्क्लेमर: ये लेखक के निजी विचार हैं. लेख में दी गई किसी भी जानकारी की सत्यता/सटीकता के प्रति लेखक स्वयं जवाबदेह है. इसके लिए News18Hindi उत्तरदायी नहीं है.)

Tags: Bihar Chhath Puja, Chhath, Chhath Mahaparv, Chhath Puja



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