हाइलाइट्स
शनिदेव लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही अच्छा या बुरा फल देते हैं.
पिप्पलाद मुनि को ब्रह्मा जी ने शनि पीड़ा से मुक्ति देने का वरदान दिया था.
शनि देव को न्याय का देवता कहा जाता है. वे लोगों को उनके कर्मों के अनुसार ही अच्छा या बुरा फल देते हैं. इस वजह से लोगों को शनि की साढ़ेसाती और ढैय्या में कई तरह की पीड़ा झेलनी पड़ती है. शनिदेव से मनुष्य ही नहीं, देवता भी डरते हैं क्योंकि वे भी शनि की दृष्टि से बच नहीं सकते हैं. लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि शनिदेव को सिर्फ एक मुनि से ‘डर’ लगता है क्योंकि उस मुनि का वचन भंग करने से शनिदेव भस्म हो सकते हैं. शिवपुराण में शनिदेव और उस मुनि की कथा के बारे में बताया गया है.
पिप्पलाद मुनि से ‘डरते’ थे शनिदेव
शिव पुराण के अनुसार, भगवान शिव के अंश के रूप में पिप्पलाद मुनि का जन्म माता सुवर्चा के गर्भ से हुआ था. वे महामुनि दधिचि के पुत्र थे. उन्होंने सभी लोगों को शनि की पीड़ा से मुक्ति के लिए एक वरदान दिया था. उन्होंने कहा था कि जन्म से लेकर 16 वर्ष की आयु तक वाले मनुष्यों और उसमें भी विशेषकर शिव भक्तों को शनि की पीड़ा नहीं हो सकती है. यदि शनि ने उनके इस वचन का अनादर किया तो वह नि:संदेह ही भस्म हो जाएगा.
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पिप्पलाद मुनि ने शनि को आसमान से पहाड़ पर गिराया था
जब पिप्पलाद मुनि का जन्म हुआ था तो उनके पिता दधिचि ने देह त्याग करके अपनी अस्थियां इंद्र को दे दी थीं. माता सुवर्चा उनके जन्म के बाद पति के लोक चली गई थीं. पिप्पलाद मुनि ने पीपल के पेड़ के नीचे कठोर तप किया था और पीपल के फल को खाकर जीवन व्यतीत किया था. एक दिन नारद जी उनको दर्शन दिया तो उन्होंने अपने कष्टपूर्ण जीवन का कारण पूछा.
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नारद जी ने बताया कि यह शनि देव के कारण हुआ है. उनकी वजह से ही तुम्हें माता और पिता का सुख नहीं मिला. बाल्यकाल कठिनाई से बीता. उनकी बात को सुनकर पिप्पलाद मुनि क्रोधित हो गए. उन्होंने अपने तपोबल से शनि को आसमान से पर्वत पर गिरा दिया, इससे शनि देव का पैर टूट गया.
पिप्पलाद मुनि को मिला शनि पीड़ा से मुक्ति देने का वरदान
इस घटना को देखकर ब्रह्म देव पिप्पलाद मुनि के पास प्रकट हुए. उन्होंने पिप्पलाद मुनि को वरदान दिया कि जो भी व्यक्ति शनिवार को पिप्पलाद मुनि की पूजा करेगा और उनके मंत्र का जाप करेगा, वह 7 जन्म तक शनि की पीड़ा से मुक्त रहेगा. इतना ही नहीं, उसे पुत्र की प्राप्ति होगी.
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Tags: Dharma Aastha, Lord Shiva, Shanidev
FIRST PUBLISHED : January 18, 2024, 11:28 IST