[ad_1]
हाइलाइट्स
शनि की पीड़ा से बचने के लिए सबसे आसान उपाय है पिप्लाद मुनि द्वारा रचित शनि स्तोत्रं.
शनि महाराज को नीले फूल, सरसों का तेल, नीले या काले वस्त्र, काला तिल आदि अर्पित करें.
शनिवार के दिन कर्मफलदाता शनि देव की पूजा की जाती है. जब व्यक्ति के जीवन में शनि की दशा यानी साढ़ेसाती या ढैय्या शुरू होती है तो उसे उसके किए गए कर्मों का फल प्राप्त होता है. उनको शनि पीड़ा से गुजरना पड़ता है. शनि की वक्र दृष्टि से कोई नहीं बच पाया. शनि की दृष्टि पीड़ा से बचने के लिए कई उपाय है. केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र बताते हैं कि शनि की पीड़ा से बचने के लिए सबसे आसान उपाय है पिप्लाद मुनि द्वारा रचित शनि स्तोत्रं. पिप्पलाद मुनि से शनि देव भय खाते हैं. एक बार उन्होंने अपने तप से शनि देव को आसमान से धरती पर गिरा दिया था. तब ब्रह्मा जी ने उनको वरदान दिया कि शनि पीड़ा से बचने के लिए पिप्पलाद मुनि की पूजा, उनके मंत्र का जाप करने से व्यक्ति शनि पीड़ा से मुक्त हो जाएगा. शनि देव की पीड़ा से मुक्ति पाने के लिए आप पिप्लाद मुनि रचित शनि स्तोत्रं का पाठ करें.
पिप्लाद शनि स्तोत्रं पाठ की विधि
शनिवार के दिन आप किसी शनि मंदिर में जाएं और शनि महाराज को नीले फूल, सरसों का तेल, नीले या काले वस्त्र, फल, शमी के फूल, काला तिल आदि अर्पित करें. उसके बाद पिप्लाद मुनि का स्मरण करें और उनसे शनि पीड़ा से मुक्ति के लिए प्रार्थना करें. उसके बाद पिप्लाद शनि स्तोत्रं का पाठ प्रारंभ करें. आप चाहें तो पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर भी पिप्लाद शनि स्तोत्रं का पाठ कर सकते हैं. यदि आपके पास समय हो तो इसके साथ राजा दशरथ कृत शनि स्तोत्र भी पढ़ सकते हैं.
ये भी पढ़ें: पौष पुत्रदा एकादशी पर विष्णु पूजा के समय पढ़ें यह कथा, देखें मुहूर्त और पारण समय
पिप्लाद शनि स्तोत्रं
य: पुरा नष्टराज्याय, नलाय प्रददौ किल।
स्वप्ने तस्मै निजं राज्यं, स मे सौरि: प्रसीद तु।।
केशनीलांजन प्रख्यं, मनश्चेष्टा प्रसारिणम्।
छाया मार्तण्ड सम्भूतं, नमस्यामि शनैश्चरम्।।
नमोsर्कपुत्राय शनैश्चराय, नीहार वर्णांजनमेचकाय।
श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च, फलप्रदो मे भवे सूर्य पुत्रं।।
ये भी पढ़ें: भूलकर भी भगवान विष्णु को न चढ़ाएं ये 7 फूल, बनता काम बिगड़ जाएगा, गुरुवार और एकादशी व्रत होगा निष्फल!
नमोsस्तु प्रेतराजाय, कृष्णदेहाय वै नम:।
शनैश्चराय ते तद्व शुद्धबुद्धि प्रदायिने।।
य एभिर्नामाभि: स्तौति, तस्य तुष्टो ददात्य सौ ।
तदीयं तु भयं तस्यस्वप्नेपि न भविष्यति ।।5।।
कोणस्थ: पिंगलो बभ्रू:, कृष्णो रोद्रोsन्तको यम:।
सौरि: शनैश्चरो मन्द:, प्रीयतां मे ग्रहोत्तम:।।
नमस्तु कोणसंस्थाय पिंगलाय नमोsस्तुते।
नमस्ते बभ्रूरूपाय कृष्णाय च नमोsस्तुते।।
नमस्ते रौद्र देहाय, नमस्ते बालकाय च।
नमस्ते यज्ञ संज्ञाय, नमस्ते सौरये विभो।।
नमस्ते मन्दसंज्ञाय, शनैश्चर नमोsस्तुते।
प्रसादं कुरु देवेश, दीनस्य प्रणतस्य च।।
.
Tags: Astrology, Dharma Aastha, Shanidev
FIRST PUBLISHED : January 20, 2024, 09:09 IST
[ad_2]
Source link