पड़ोसी देश पाकिस्तान में सोमवार को शहबाज शरीफ ने दूसरी बार प्रधानमंत्री पद की शपथ ली है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शहबाज शरीफ को पाकिस्तान के प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने पर बधाई दी है। शहबाज शरीफ की यह ताजपोशी आम चुनावों में खंडित जनादेश के बाद हुई है। उनकी पार्टी पाकिस्तान मुस्लिम लीग-नवाज ने बिलावल भुट्टो की पार्टी पीपीपी के साथ चुनाव बाद गठजोड़ किया है। अप्रैल 2022 में भी इन लोगों की गठबंधन सरकार बनी थी, जो अगस्त 2023 तक चली थी।
कहा जा रहा है कि शहबाज शरीफ को आगे कर नवाज शरीफ ही पाकिस्तान की सरकार चलाएंगे। शरीफ बंधुओं के हाथों पाकिस्तान की कमान ऐसे वक्त में आई है, जब पाकिस्तान खुद आर्थिक संकट झेल रहा है और दूसरी तरफ भारत के साथ रिश्ते तनावपूर्ण दौर से गुजर रहे हैं। ऐसे में इस बात की चर्चा जोरों पर है कि शहबाज और नवाज की सरकार भारत के लिए ‘शरीफ’ साबित होगी या पहले की ही तरह भारत के खिलाफ जहर उगलते रहेंगे।
क्या कहते हैं एक्सपर्ट?
भारत-पाकिस्तान संबंधों पर नजर रखने वाले विशेषज्ञों का मानना है कि कश्मीर मुद्दे पर भारत के साथ मतभेदों के चलते दोनों देशों के संबंधों में तत्काल सुधार होने की कोई संभावना नजर नहीं आ रही है। दक्षिण एशिया के दोनों पड़ोसी देश परमाणु आयुध से लैस हैं। ब्रिटेन के शासन से 1947 में आजादी मिलने के बाद से भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक कम से कम तीन बड़ी लड़ाइयां हुई हैं।
भारत द्वारा 2019 में संविधान के अनुच्छेद 370 को निरस्त करने, जम्मू और कश्मीर का विशेष दर्जा हटाये जाने और राज्य को दो केंद्र शासित प्रदेशों में विभाजित करने के बाद दोनों देशों के संबंध में खटास बनी हुई है। पाकिस्तान ने इस कदम को संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद के प्रस्तावों का उल्लंघन करार दिया और भारत के साथ व्यापार सहित सभी संबंध तोड़ लिए।
2019 के बाद से मतभेद और गहराए
लाहौर यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेजमेंट साइंसेज में राजनीति विज्ञान के प्रोफेसर रसूल बक्स रईस ने बताया कि 2019 के बाद से दोनों देशों के बीच मतभेद बढ़ गया है, और यह तय करना आसान नहीं है कि दोनों पक्ष कैसे सुलह की ओर बढ़ सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘मुझे रुख में तत्काल कोई बदलाव या फिर से बातचीत शुरू होने की संभावना नहीं दिख रही है, क्योंकि भारत में भी आम चुनाव होने जा रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पाकिस्तान के बारे में अपना विमर्श बदलना नहीं चाहेंगे।’’
शहबाज ने कश्मीर की तुलना फिलीस्तीन से की?
पाकिस्तान में चुनावों के बाद नई सरकार के गठन से यह उम्मीद जगी है कि प्रधानमंत्री शहबाज गतिरोध को खत्म करने और भारत के साथ खराब संबंधों को सुधारने के लिए सकारात्मक कदम उठा सकते हैं। पाकिस्तान के नवनिर्वाचित प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने रविवार को अपने पहले संबोधन में कश्मीर मुद्दा उठाया था। हालांकि, उन्होंने पड़ोसियों सहित सभी प्रमुख देशों के साथ संबंध सुधारने का भी संकल्प जताया।
शहबाज ने कहा, ‘‘हम पड़ोसियों के साथ समानता के आधार पर संबंध रखेंगे।’’ हालांकि, उन्होंने कश्मीर का मुद्दा उठाया और इसकी तुलना फिलस्तीन से की। उन्होंने कहा, ‘‘आइए हम सब एक-साथ आएं… और नेशनल असेंबली को कश्मीरियों तथा फिलस्तीनियों की आजादी के लिए एक प्रस्ताव पारित करना चाहिए।’’
पाकिस्तान का आग्रह भारत ने ठुकराया
पाकिस्तान इस बात पर जोर देता रहा है कि संबंधों में सुधार लाने का दायित्व भारत पर है और वह उससे बातचीत शुरू करने की पूर्व शर्त के तौर पर कश्मीर से जुड़े उसके ‘‘एकतरफा’’ कदमों को वापस लेने का आग्रह कर रहा है। भारत ने इस सुझाव को खारिज कर दिया और पाकिस्तान को स्पष्ट कर दिया है कि जम्मू-कश्मीर और लद्दाख केंद्र शासित प्रदेश उसके अभिन्न और अविभाज्य हिस्से हैं।
प्रोफेसर रईस ने कहा, ‘‘पाकिस्तान बातचीत शुरू होने से पहले शर्तें रखने की स्थिति में नहीं है, क्योंकि समय के साथ भारत मजबूत हो गया है और पाकिस्तान कमजोर हुआ है।’’
पहले सरकार स्थिर करने की चुनौती
सरगोधा विश्वविद्यालय में राजनीति और अंतरराष्ट्रीय संबंध विभाग के सहायक प्रोफेसर डॉ. अशफाक अहमद ने कहा कि शुरुआत में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज का पूरा ध्यान गठबंधन सरकार को स्थिर करने पर होगा, और उनके लिए विशेषकर भारत के साथ संबंधों पर ध्यान केंद्रित करना संभव नहीं होगा। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन बाद में, शायद छह महीने के बाद, अगर सरकार देश में व्यापार और पानी की कमी जैसे कुछ प्रमुख मुद्दों का समाधान करना चाहती है तो उसे भारत के साथ संबंधों पर आगे बढ़ना होगा।’’
अहमद ने यह भी कहा कि पाकिस्तान सरकार बातचीत फिर से शुरू करने के लिए तैयार होने का जब भी संकेत देगी, उस वक्त भारत की प्रतिक्रिया देखना दिलचस्प होगा। रईस ने कहा कि बातचीत व्यापार और अन्य संबंधित मुद्दों पर शुरू हो सकती है और विश्वास बनाने के लिए दोनों पक्ष कश्मीर मुद्दे पर बात कर सकते हैं। उन्होंने कहा, ‘‘लेकिन यह समझना जरूरी है कि पाकिस्तान, भारत के साथ तभी वार्ता करेगा जब उसे लगेगा कि यह उसके पक्ष में है और उसे कुछ फायदा मिलेगा। अन्यथा, वह बातचीत करने के लिए इच्छुक नहीं होगा।’’
पाकिस्तान पर हर मामले में ऊपर है भारत
अहमद ने कहा कि कश्मीर मुद्दे से निपटना और अधिक कठिन हो सकता है क्योंकि भारत तेजी से अपनी हथियार प्रणालियों का आधुनिकीकरण कर रहा है और 2030 तक वह पाकिस्तान पर कई मायनों में 20 साबित होगा। उन्होंने कहा कि इसकी वजह यह है कि भारत उस समय तक राफेल लड़ाकू विमानों के साथ एस-400 प्रणाली और अमेरिका से हासिल अत्याधुनिक ड्रोन की पूरी तरह से तैनाती व परिचालन की स्थिति में होगा। रईस ने कहा, ‘‘पाकिस्तान के नजरिए से, भारत के प्रति बदलाव तब आएगा जब पाकिस्तानी सेना की सोच में बदलाव आएगा, जिसका देश की विदेश और रक्षा नीतियों पर काफी प्रभाव है।’’
कैसा रहा है पाकिस्तान का ट्रैक रिकॉर्ड?
भारत के प्रमुख रक्षा थिंक टैंक, मनोहर पर्रिकर इंस्टीट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज एंड एनालिसिस की एसोसिएट फेलो डॉ. प्रियंका सिंह के मुताबिक, भारत के प्रति शहबाज शरीफ की नीति भारत बनाम पीएमएल-एन के व्यापक रुख को प्रतिबिंबित करेगी। उन्होंने कहा कि नवाज शरीफ (शहबाज शरीफ के बड़े भाई और पूर्व प्रधान मंत्री) के शासनकाल में भारत-पाकिस्तान संबंधों में एक ही समय में अच्छे और बुरे दोनों तरह के अनुभव रहे हैं।
उन्होंने कहा कि नवाज़ उस लाहौर प्रस्ताव से जुड़े हैं, जिसके तहत 1999 में भारत और पाकिस्तान के बीच शांति की परिकल्पना की गई थी। बावजूद इसके संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतरराष्ट्रीय मंचों पर भारत के खिलाफ बुरी और अप्रिय टिप्पणी करने का शरीफ बंधुओं का ट्रैक रिकॉर्ड रहा है। इसलिए, भारत के साथ संबंधों में सफलता हासिल करने के लिए शहबाज शरीफ से बहुत अधिक उम्मीद करना अंततः निराश कर सकता है। भले ही चुनावी घोषणा पत्र में शरीफ बंधुओं ने भारत से रिश्ते सुधारने के संकेत दिए हों।