टाइम के साथ नहाने के तरीकों में भी बदलाव आया है. वहीं इस मॉर्डन टाइम में लोग अलग-अलग तरीके से नहाना पसंद करते हैं. वहीं अब लोग बाल्टी से कम और शावर से ज्यादा नहाना पसंद करते हैं, लेकिन भारतीय परंपरा में बाल्टी से नहाना पसंद करते हैं.
विज्ञान के मुताबिक
विज्ञान के मुताबिक बाल्टी से नहाना ज्यादा फायदेमंद माना जाता है. यह पानी बचाने, शरीर की ऊर्जा को संतुलित रखने, खून के बहाव को ठीक करने और मन को शांति देने में मदद करता है. शावर से नहाना आसान होता है, लेकिन इसमें ज्यादा पानी खर्च होता है और यह शरीर की ऊर्जा का संतुलन बिगाड़ सकता है. आमतौर पर शावर से नहाने में 25-30 लीटर पानी खर्च होता है, जबकि बाल्टी से नहाने में सिर्फ 10-15 लीटर पानी लगता है. इसलिए यह पानी बचाने का अच्छा तरीका है.
रोगों से लड़ने की ताकत
विज्ञान कहता है कि जब शरीर पर धीरे-धीरे पानी डाला जाता है तो यह खून के बहाव को ठीक करता है. ठंडे पानी से नहाने से शरीर की रोगों से लड़ने की ताकत (इम्यूनिटी) बढ़ती है और खून का संचार बेहतर होता है. यह त्वचा को भी नमी देता है और उसे हाइड्रेटेड रखता है. इसके विपरीत, शावर से तेज पानी गिरने के कारण शरीर पर इसका प्रभाव अलग होता है.
शास्त्रों के मुताबिक
शास्त्रों के मुताबिक नहाने की शुरुआत सिर पर पानी डालकर करनी चाहिए. ऐसा करने से शरीर की ऊर्जा संतुलित रहती है और मन को शांति मिलती है. बाल्टी से नहाने में हम सिर से शुरुआत कर सकते हैं, लेकिन शावर में ज्यादातर लोग पैरों से नहाना शुरू करते हैं, जिससे शरीर की ऊर्जा का संतुलन बिगड़ सकता है.
मानसिक शुद्धता का प्रतीक
नहाना सिर्फ शरीर को साफ करने की प्रक्रिया नहीं, बल्कि यह मानसिक शुद्धता का प्रतीक भी है. बाल्टी से नहाने में व्यक्ति ध्यान लगाकर स्नान करता है, जिससे मन शांत होता है. जबकि शावर में पानी लगातार गिरता रहता है, जिससे नहाने की प्रक्रिया जल्दी-जल्दी होती है और ध्यान नहीं लग पाता. मानसिक शांति के लिए भी बाल्टी स्नान अधिक लाभदायक है.
Disclaimer: यहां दी गई जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित हैं. News Nation इसकी पुष्टि नहीं करता है.