हाइलाइट्स
सूर्यास्त के बाद जिन घरों के मुख्य द्वार बंद रहते हैं, माता लक्ष्मी वहां से वापस लौट जाती हैं.
माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए आप अपने घर के मुख्य द्वार के बाहर घी का दीपक जला सकते हैं.
शुक्रवार का दिन धन और वैभव की देवी माता लक्ष्मी की पूजा और व्रत के लिए है. शुक्रवार को प्रदोष काल में माता लक्ष्मी की पूजा करने और उनके लिए व्रत रखने का विधान है. उस दिन माता लक्ष्मी के स्वागत के लिए आप अपने घर के मुख्य द्वार के बाहर घी का दीपक जला सकते हैं. मुख्य द्वार को अच्छे से सजा सकते हैं और रोशनी से उसे जगमग कर सकते हैं. कहा जाता है कि सूर्यास्त के बाद जिन घरों के मुख्य द्वार बंद रहते हैं और वहां रोशनी या दीपक नहीं होता है तो माता लक्ष्मी उसके द्वार से वापस लौट जाती हैं. उस घर में माता लक्ष्मी का आगमन नहीं होता है. सूर्यास्त के बाद से प्रदोष काल लग जाता है. उस समय में शुक्रवार को माता लक्ष्मी की पूजा करनी चाहिए. उसके बाद एक उपाय करके अपने धन और वैभव में बढ़ोत्तरी कर सकते हैं.
केंद्रीय संस्कृत विश्वविद्यालय पुरी के ज्योतिषाचार्य डॉ. गणेश मिश्र का कहना है कि यदि आपको माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त करनी है तो शुक्रवार को प्रदोष काल में श्री सूक्त का पाठ करना चाहिए. इस पाठ को करने से पूर्व आप माता लक्ष्मी की विधि विधान से पूजा कर लें. माता लक्ष्मी को कमल या लाल गुलाब का फूल, कमलगट्टा, पीली कौड़ियां, अक्षत्, सिंदूर, नारियल, धूप, दीप, नैवेद्य आदि अर्पित करें. पूजा में शंख का उपयोग करें. माता लक्ष्मी को बताशे, दूध से बनी सफेद मिठाई, खीर आदि का भोग लगाएं. उसके बाद ही श्री सूक्त पाठ करें.
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धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, जो भी व्यक्ति नियमपूर्वक श्री सूक्त का पाठ करता है, उसे माता लक्ष्मी का आशीर्वाद प्राप्त होता है. उसके पास धन और दौलत की कमी नहीं रहती है. उसकी तिजोरी भरी रहती है. श्री सूक्त संस्कृत में लिखा है, पढ़ने में समय लग सकता है. श्री सूक्त पाठ करते समय शुद्ध उच्चारण पर ध्यान देना चाहिए.
धन प्राप्ति के लिए श्री सूक्त पाठ
ओम हिरण्यवर्णां हरिणीं, सुवर्ण-रजत-स्त्रजाम्,
चन्द्रां हिरण्यमयीं लक्ष्मीं, जातवेदो म आवह.
तां म आवह जात वेदो, लक्ष्मीमनप-गामिनीम्,
यस्यां हिरण्यं विन्देयं, गामश्वं पुरूषानहम्.
अश्वपूर्वां रथ-मध्यां, हस्ति-नाद-प्रमोदिनीम्,
श्रियं देवीमुपह्वये, श्रीर्मा देवी जुषताम्.
कांसोऽस्मि तां हिरण्य-प्राकारामार्द्रा ज्वलन्तीं तृप्तां तर्पयन्तीं,
पद्मे स्थितां पद्म-वर्णां तामिहोपह्वये श्रियम्.
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चन्द्रां प्रभासां यशसा ज्वलन्तीं श्रियं लोके देव-जुष्टामुदाराम्,
तां पद्म-नेमिं शरणमहं प्रपद्ये अलक्ष्मीर्मे नश्यतां त्वां वृणोमि.
आदित्य वर्णे तपसोऽधिजातो वनस्पतिस्तव वृक्षोऽक्ष बिल्वः,
तस्य फलानि तपसा नुदन्तु मायान्तरायाश्च बाह्या अलक्ष्मीः.
उपैतु मां दैव सखः, कीर्तिश्च मणिना सह,
प्रादुर्भूतोऽस्मि राष्ट्रेऽस्मिन्, कीर्तिं वृद्धिं ददातु मे.
क्षुत्-पिपासाऽमला ज्येष्ठा, अलक्ष्मीर्नाशयाम्यहम्,
अभूतिमसमृद्धिं च, सर्वान् निर्णुद मे गृहात्.
गन्ध-द्वारां दुराधर्षां, नित्य-पुष्टां करीषिणीम्,
ईश्वरीं सर्व-भूतानां, तामिहोपह्वये श्रियम्.
मनसः काममाकूतिं, वाचः सत्यमशीमहि,
पशूनां रूपमन्नस्य, मयि श्रीः श्रयतां यशः.
कर्दमेन प्रजा-भूता, मयि सम्भ्रम-कर्दम,
श्रियं वासय मे कुले, मातरं पद्म-मालिनीम.
आपः सृजन्तु स्निग्धानि, चिक्लीत वस मे गृहे,
निच देवी मातरं श्रियं वासय मे कुले.
आर्द्रां पुष्करिणीं पुष्टिं, सुवर्णां हेम-मालिनीम्,
सूर्यां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह.
आर्द्रां यः करिणीं यष्टिं, पिंगलां पद्म-मालिनीम्,
चन्द्रां हिरण्मयीं लक्ष्मीं, जातवेदो ममावह.
तां म आवह जात-वेदो लक्ष्मीमनप-गामिनीम्,
यस्यां हिरण्यं प्रभूतं गावो दास्योऽश्वान् विन्देयं पुरूषानहम्.
यः शुचिः प्रयतो भूत्वा, जुहुयादाज्यमन्वहम्,
श्रियः पंच-दशर्चं च, श्री-कामः सततं जपेत्.
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Tags: Astrology, Dharma Aastha
FIRST PUBLISHED : March 1, 2024, 12:57 IST