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शौचालय समावेशन के लिए तकनीक: पहुँच योग्य डिज़ाइन और स्वच्छता के उपायों में पहल

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शौचालय समावेशन के लिए तकनीक: पहुँच योग्य डिज़ाइन और स्वच्छता के उपायों में पहल

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सामाजिक और कार्यस्थलों की जगहों पर, एक सुप्रसिद्ध उक्ति कहती है, “मेज पर जगह पाना विविधता है, आवाज़ पहुँचाने का अवसर पाना समावेशन है, और उस आवाज़ का सुना जाना सम्बद्धता है.“ यह शक्तिशाली भावाभिव्यक्ति तब भी उतनी ही प्रासंगिक होती है जब सार्वजनिक सुविधाओं की बात होती है. यहाँ “मेज” उन बुनियादी सुविधाओं प्रदर्शित करती है जिन पर हम निर्भर होते हैं, “आवाज़” सभी तक पहुँच को दर्शाती है और “सुना जाना” सभी व्यक्तियों की आवश्यकताओं और चिन्ताओं को महत्वपूर्ण ढंग से मान्यता देना है. एक ऐसे देश में जहाँ लोग विविध सामाजिक-आर्थिक और भौतिक परिस्थितियों वाले लोग एक साथ रहते हैं, यह सुनिश्चित करना कि सभी की आवश्यकताओं की पूर्ति हो रही है, बहुत महत्व रखता है.

सफाई हमारी सबसे बुनियादी ज़रूरतों में से एक है. शौचालय मानव गरिमा, स्वास्थ्य और कुशलता का आधार होते हैं. जैसा कि संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस उचित ही कहते हैं, शौचालय जीवन की रक्षा करते हैं. फ़िर भी, सभी की पहुँच सुरक्षित और समावेशी शौचालयों तक नहीं होती जो उनकी विविध आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं को पूरा करते हैं. भारत में, स्वच्छ भारत मिशन की सफलता ने सुनिश्चित किया कि हर भारतीय की शौचालय तक पहुँच हो. हालांकि यह एक महत्वपूर्ण समस्या को नज़रअन्दाज कर देता है: भारतीय शौचालय केवल दो लिंगों को मान्यता देते हैं: पुरुष और महिला. बहुत से तो दिव्यांगों को भी मान्यता नहीं देते हैं.

शौचालय समावेशन, शौचालयों के उद्देश्यपरक संरचा और प्रबन्धन पर ज़ोर देता है ताकि लोगों के विविध समूहों को उनके लिंग, आयु और अक्षमता पर ध्यान दिये बग़ैर इसमें शामिल किया जा सके. साथ ही यह सांस्कृतिक रूप से उचित, पर्यावरण के अनुकूल और स्वच्छ शौचालय की बात करता है. शौचालय समावेशन कई बुनियादी कारणों से महत्वपूर्ण होता है:
1. मानव अधिकारों और गरिमा को बनाये रखना: प्रत्येक व्यक्ति को बिना किसी भेदभाव या उत्पीड़न के सुरक्षित और गरिमापूर्ण स्वच्छता सेवाओं तक पहुँच का अधिकार है. शौचालय समावेशन यह सुनिश्चित करता है कि लोग हिंसा, या बाहिष्कार के भय के बिना शौचालय का प्रयोग कर सकें.
2. स्वास्थ्य और कुशलता में सुधार: अपर्याप्त सफाई से डायरिया, कालरा, टाइफ़ाइड और कीट संक्रमण होते हैं जो मृत्यु अथवा अपंगता तक का कारण बन सकते हैं. शौचालय समावेशन संक्रमण के प्रसार को रोकता है और अनिवार्य स्वच्छता के तौर-तरीक़ों जैसे हाथ धोना या मासिक चक्र के दौरान स्वच्छता को बनाये रखने को प्रोत्साहित करता है.
3. शिक्षा और उत्पादकता को बढ़ावा: अपर्याप्त शौचालय सुविधाएँ विद्यालयों में उपस्थिति पर विपरीत प्रभाव डालती हैं और शिक्षा के परिणामों को बाधित कर सकती हैं, विशेष तौर पर लड़कियों के लिए जो मासिक चक्र या सुरक्षा सम्बन्धी चिन्ताओं के कारण कक्षाएँ छोड़ती हैं या पढ़ाई छोड़ देती हैं. शौचालय समावेशन छात्रों को विद्यालय में बने रहने और बेहतर अकादमिक प्रदर्शन प्राप्त करने में सक्षम बनाती है. इसी प्रकार, अपर्याप्त शौचालय कर्मचारियों के स्वास्थ्य और उत्पादकता पर प्रभाव डाल सकता है, विशेष तौर से उन पर जो अनौपचारिक क्षेत्र या सार्वजनिक स्थानों पर कार्य करते हैं. शौचालय समावेशन से कर्मचारी सुविधापूर्वक और आसानी से स्वच्छता की सुविधाओं तक पहुँच हासिल कर पाते हैं.
4. पर्यावरण सम्बन्धी टिकाऊपन में सहायता: ख़राब स्वच्छता जल और मिट्टी को प्रदूषित कर देती है, जिससे जल संकट और जलवायु परिवर्तन होता है. शौचलाय समावेशन जल-कौशल्य और अवशिष्ट प्रबन्धन तकनीकों को अपनाने की वकालत करती है जो संसाधनों का संरक्षण और पर्यावरण की सुरक्षा करते हैं.

ऐसे लोगों के लिए परलैंगिक, इंटरसेक्स या ग़ैर-बाइनरी हैं, समावेशी शौचालयों का अतिरिक्त महत्व है. इसके तीन प्रत्यक्ष लाभ हैं:
● चिन्ता और तनाव में कमी: परलैंगिक, ग़ैर-बाइनरी या इंटरसेक्स छात्र अन्ततः ‘सही’ शौचालय का प्रयोग कर पाते हैं. पुरुष शौचालय ग़लत शौचालय हो जाता है. महिला शौचालय भी ग़लत शौचालय हो जाता है. लैंगिक रूप से उदासीन शौचालय ऐसी जगहें प्रदान करते हैं जहाँ उनका स्वागत होता है और उनकी उपस्थिति पर सवाल नहीं खड़े किये जाते हैं. अब इस बात की चिन्ता नहीं होती है कि वे ग़लत स्नानघऱ में जा रहे हैं, अब इस बात की और चिन्ता नहीं होती है कि वे वहाँ किससे मिलेंगे, या उनकी प्रतिक्रिया क्या होगी, या उन पर मौखिक या शारीरिक हमला होने वाला है.
● अपनेपन के भाव को प्रोत्साहित करना: जब LGBTQ+ छात्र अपनापन महसूस करते हैं, तो वे विद्यालय में अधिक शामिल होते हैं और अपने सहपाठियों और अध्यापकों से अधिक सहयोग प्राप्त करते हैं. यह बेहतर अकादमिक परिणामों और विद्यालय में सम्पूर्णता में अधिक सकारात्मक अऩुभव की तरफ़ ले जा सकता है.
● उत्पीड़न और भेदभाव से बचाव: समावेशी रेस्टरूम LGBTQ+ छात्रों के विरुद्ध उत्पीड़न और भेदभाव को रोकने में सहायक हो सकते हैं. जब छात्र जानते हैं कि वे सुरक्षित और सम्मानित हैं, तो वे उत्पीड़न और भेदभाव के लिए कम लक्षित होते हैं.

समावेशी शौचालयों के लिए पहुँच योग्य डिजाइन
तो फ़िर ये समावेशी शौचालय होता क्या है? समावेशी शौचालय ऐसी शौचालय की जगहें होती हैं जिन्हें विविध प्रकार के मानव शरीरों और पहचानों के शामिल करने के लिए बनाया जाता है. उन्हें लैंगिक रूप से उदासीन, सभी लिंगों के लिए, या यूनीसेक्स शौचालय के रूप के नाम से भी जाना जाता है. समावेशी शौचालयों के कई रूप हो सकते हैं, लेकिन उनमें कुछ साझा विशेषताएँ होती हैं:

● वे उपयोगकर्ताओं को उनके जन्म से निर्धारित होने वाले लिंग, लैंगिक पहचान या लैंगिक अभिव्यक्ति के आधार पर अलग नहीं करते हैं.
● उनमें स्पष्ट और सम्मानजनक प्रतीक होते हैं जो दर्शाते हैं कि वे सभी के लिए खुले हैं.
● उनमें पर्याप्त निजता और सुरक्षा के प्रबन्ध होते हैं, जैसे ताले, पर्दे या विभाजन.
● उनमें दिव्यांग लोगों के लिए पहुँच योग्य सुविधाएँ होती हैं जैसे पकड़ने के लिए छड़ें, रैम्प, कम ऊँचाई के सिंक.

कुछ संरचनाएँ भारत में, और दुनिया में भी कई जगहों पर बहुत अच्छा काम करती हैं:
एकल व्यक्ति वाले शौचालय
ये शौचालय किसी भी व्यक्ति के द्वारा प्रयोग किये जा सकते हैं, उसकी लैंगिक पहचान या अभिव्यक्ति चाहे जो हो. वे आम तौर पर ताला बन्द करने योग्य और अपने आप में पूर्ण होते हैं, अर्थात् उनकी अपनी सिंक, सीसा और कचरे का डिब्बा होता है. एकल व्यक्ति वाले शौचालय उन उपयोगकर्ताओं को अधिक निजता और सुरक्षा प्रदान करते हैं जिन्हें लैंगिक रूप से पृथक शौचालयों में भेदभाव या हिंसा का सामना करना पड़ सकता है. वे उन अक्षम व्यक्तियों को, जिन्हें किसी अलग लिंग वाले केयरगिवर से सहायता लेनी होती है, साथ ही अलग लिंग वाले बच्चों के माता-पिता या अभिभावकों को भी लाभ देते हैं.

लैंगिक रूप से उदासीन शौचालय
ये शौचालय किसी भी के लिए खुले होते हैं, चाहे उनकी लैंगिक पहचान अथवा अभिव्यक्ति जो भी हो. वे प्रायः एक पंक्ति अथवा समूह में बनाये जाते हैं, जिसमें प्रत्येक शौचालय का अपना दरवाज़ा और विभाजन होता है. लैंगिक रूप से उदासीन शौचालय उन उपयोगकर्ताओं को अधिक चुनाव और लचीलापन प्रदान करते हैं जो अपनी पहचान पुरुष और महिला के द्विआधारी लैंगिक पहचान के आधार पर नहीं करते हैं, या जो शौचालय जाते समये अपनी लैंगिक पहचान को उजागर नहीं करना चाहते. साथ ही वे प्रतीक्षा का समय और भीड़भाड़ भी कम कर देते हैं जो लैंगिक-रूप से पृथक शौचालयों में हो सकती है, विशेष तौर से महिलाओं और लड़कियों के लिए जिन्हें अक्सर पुरुषों और ल़ड़कों से अधिक लम्बी कतारों का सामना करना पड़ता है.

मिश्रित-लिंगों वाले शौचालय
ये ऐसे शौचालय होते हैं जिनमें लैंगिक रूप से पृथक और लैंगिक रूप से उदासीन शौचालय, दोनों के तत्व होते हैं. उनमें आमतौर पर एक साझा प्रवेशद्वारा और साझा सिंक क्षेत्र होता है, लेकिन पुरुष और महिला उपयोगकर्ताओं के लिए अलग हिस्से और कुछ लैंगिक रूप से उदासीन क्युबिकल भी होते हैं. मिश्रित लिंगों वाले शौचालय उन उपयोगकर्ताओं के लिए अधिक विकल्प और विविधता प्रदान करते हैं जिनकी शौचालय का प्रयोग करते समय प्राथमिकताएँ और आवश्यकताएँ अलग हो सकती हैं.

समावेशी शौचालयों के लिए तकनीकी समाधान
तकनीक पहुँच, संरचना और शौचालयों की सफ़ाई में वृद्धि करने के नवोन्मेषी उपायों के माध्यम से शौचालय समावेशन की प्राप्ति में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है. इन उपायों के कुछ उदाहरण निम्न हैं:

स्मार्ट शौचालय
ये शौचालय निगरानी के लिए तथा शौचालय की प्रक्रियाओं और उपयोगकर्ता के अऩुभवों को बढ़ाने के लिए सेंसर, आर्टिफ़िशियल इंटेलीजेंस और इंटरनेट कनेक्टिविटी का प्रयोग करते हैं. स्मार्ट शौचालयों का प्रयोग उपयोगकर्ता की प्राथमिकता, जैसे ऊँचाई, तापमान, पानी का दबाव और प्रकाश का पता लगाने और उसके हिसाब से संयोजन करने के लिए इस्तेमाल किया जा सकता है. इसके अलावा, वे पेशाब व पखाने के नमूनों की जाँच करके, बीमारी या कमियों के लक्षणों का पता लगाकर उपयोगकर्ता के स्वास्थ्य पर फ़ीडबैक दे सकते हैं.

सेंसर-आधारित हाइजीन प्रणाली
ये प्रणाली उपयोगकर्ता की प्राथमिकता का पता लगाने और फ़्लश करने, सफ़ाई करने और इंफ़ेक्शन से मुक्त करने जैसी स्वच्छता सुविधाओं को सक्रिय करने के लिए सेंसर का प्रयोग करती है. उदाहरण के लिए, सेंसर-आधारित हाइजीन प्रणाली हर प्रयोग के बाद शौचालय को अपने आप साफ़ कर सकती है, शौचालय की सीट या सतह को इंफ़ेक्शन से मुक्त कर सकती है, या कीटाणुओं को हटाने के लिए यूवी प्रकाश का प्रयोग कर सकती है. इसके अलावा, ये प्रणालियाँ रखरखाव करने वाले कर्मचारियों को मरम्मत या पुनरापूर्ति की ज़रूरत होने पर चेतावनी दे सकती हैं.

पहुँच सम्बन्धी सहायता
ये उपकरण या सुविधाएँ अक्षम या चलने-फ़िरने में असमर्थ उपयोगकर्ताओं को शौचालयों तक सुरक्षित और आराम से पहुँचने और प्रयोग करने में सहायक होते हैं. इसके उदाहरणों में रैम्प, ग्रैब बार, हैंडरेल, सीटलिफ्ट, ध्वनि आधारित कमांड या ब्रेल चिन्ह शामिल हैं जो शारीरिक या मानसिक अक्षमता वाले व्यक्तियों की सहायता करते हैं.

तकनीक के पूरक के रूप में सामाजिक और व्यावहारिक हस्तक्षेप
हालांकि ये तकनीकी पहल आराम, सुरक्षा और स्वच्छता में वृद्धि करके सभी उपयोगकर्ताओं के लिए समावेशन को बढ़ावा दे सकती हैं, यह ध्यान देना महत्वपूर्ण हैं कि तकनीक अपने-आप में शौचालय समावेशन को सुनिश्चित नहीं कर सकती है. इसके साथ ऐसे सामाजिक और व्यावहारिक हस्तक्षेप होने चाहिए जो विविध उपयोगकर्ता समूहों द्वारा सामना की जाने वाली चुनौतियों को सम्बोधित करें. इस तरह के हस्तक्षेप महत्वपूर्ण हैं:

जागरूकता अभियान
ये गतिविधियाँ उपयोगकर्ताओं और हितधारकों को शौचालय समावेशन के महत्व और लाभों तथा उपलब्ध तकनीकी उपयों के बारे में शिक्षित करती हैं. जन मीडिया, सोशल मीडिया, सामुदायिक कार्यक्रम और स्कूल के कार्यक्रमों का प्रयोग शौचालय समावेशन सम्बन्धी सूचनाओं और संदेशों के प्रसार के लिए किया जा सकता है.

भागीदारी और परामर्श
उपयोगकर्ताओं और हितधारकों को शौचालय समावेशन पहल की डिज़ाइन करने, लागू करने और मूल्यांकन करने में शामिल करना महत्वपूर्ण होता है. सर्वे, फ़ोकस ग्रुप, वर्कशॉप और फ़ीडबैक कार्यप्रणाली का प्रयोग उपयोगकर्ताओं और हितधारकों से शौचालय समावेशन सम्बन्धी उनकी आवश्यकताओं, प्राथमिकताओं और चुनौतियों सम्बन्धित इनपुट और राय जुटाने के लिए किया जा सकता है.

विशेष तौर से जब बात LGBTQ+ समुदाय की होती है, उनके द्वारा जिये गये अनुभव को अवश्य ध्यान में रखना चाहिए. हममें से वे लोग जो अपने को सिजेंडर के रूप में चिन्हित करते हैं, उस तरह के भय और चिन्ता को कभी सही मायने में नहीं समझ सकते जो ज़्यादातर परलैंगिक, इंटरसेक्स और ग़ैर-बाइनरी लोग लिंग आधारित शौचालयों में जाते समय महसूस करते हैं. यदि हम सही मायने में ऐसी जगहें बनाना चाहते हैं जहाँ इन व्यक्तियों को सुरक्षित महसूस हो और इनका स्वागत किया जाये, तो हमें राह में हर क़दम पर इन्हें शामिल करने की ज़रूरत है.

प्रोत्साहन और नियम
ऐसे क़दम जो शौचालय समावेशन समाधानों को अपनाने और प्रयोग करने को बढ़ावा देते या लागू करते हैं, महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं. सब्सिडी, पुरस्कार, मान्याताएँ और अर्थदण्ड उपयोगकर्ताओं और हितधारकों को ऐसे उपायों को अपयनाने या प्रयोग करने के लिए बाध्य कर सकते हैं.

एक अनुकरणीय पहल जिसने शौचालय समावेशन के लिए सफलतापूर्वक तकनीक और सामाजिक हस्तक्षेप दोनों को मिलाया, वह है शौचालय 2.0 अभियान जिसे विश्व शौचालय दिवस 2022 को आवास और शहरी मामलों के मन्त्रालय द्वारा लॉन्च किया गया. इस अभियान का उद्देश्य नागरिकों और शहरी स्थानीय निकायों को शामिल करने वाले सामूहिक गतिविधियों के माध्यम से सार्वजनिक और सामुदायिक शौचालयों में बदलाव लाना है. इस अभियान के पाँच थीम क्षेत्र हैं: शौचालय के लिए लोग, शौचालय के लिए साझीदार, शौचालयों की संरचना बनाना, शौचालयों की तकनीक और शौचालयों के लिए डेटा.

दूसरी सफ़ल पहल जिसने शौचालय समावेशन के लिए तकनीक और सामाजिक हस्तक्षेप का सहारा लिया, वह मिशन स्वच्छता और पानी है जो Harpic और News18 की पहल है. इस मिशन का उद्देश्य जल के प्रयोग के बारे में लोगों को शिक्षित करने और टिकाऊ और सुरक्षित सफ़ाई व्यवहार के लिए ‘जन आन्दोलन’ खड़ा करना है. यह पूरे देश भर से ऐसी प्रेरक कहानियाँ दिखाता है जहाँ व्यक्तियों और समुदायों ने अपनी स्वच्छता और जन सम्बन्धी परिस्थितियों को सुधारने के लिए क़दम उठाये. यह पहल विशेषज्ञों, नीतिनिर्माताओं, प्रसिद्ध व्यक्तियों और नागरिकों के लिए सव्च्छता और जल-सम्बन्धी समस्याओं और समाधान पर चर्चा करने वाले मंच के रूप में भी काम करती है.

मिशन स्वच्छता और पानी अपने आप को केवल स्वच्छता तक सीमित नहीं रखता है. यह एक आन्दोलन है जो शौचालयों को गम्भीर महत्व को मान्यता देता है, जो न केवल क्रियात्मक स्थानों के रूप में देखता है बल्कि हाशिये पर खड़े लोगों की सुरक्षा और स्वीकार्यता की मशाल के रूप में देखता है. यह असाधारण मिशन इस दृढ़ विश्वास पर टिका है कि स्वच्छ और समावेशी शौचालय ऐसे समाज को बनाने के लिए बहुत ज़रूरी हैं जो हम सभी को बिना किसी शर्त के अपनाता और मजबूत करता है. एक अटल समर्पण के साथ, Harpic और News18 सक्रिय रूप से LGBTQ+ समुदाय को शामिल करते हैं और उनकी वक़ालत करते हैं, और इस संदेश का प्रसार करते हैं कि हर व्यक्ति को स्वच्छ और स्वीकार्य स्थान मिलना चाहिए, जहाँ उनकी गरिमा बनायी रखी जाती है और उनकी उपस्थिति का जश्न मनाया जाता है.

निष्कर्ष
शौचालय समावेशन की समस्या को हल करने के लिए, हम कई स्तरों पर कार्य करते हैं: उनकी संरचना बनाने से लेकर ढाँचा तैयार करने से लेकर LGBTQ+ समुदाय के प्रति मानसिक बाधाओं और पूर्वाग्रहों को तोड़ने के लिए स्वीकृति के लिए प्रेरत करने तक. हम ऐसी संरचनाओं के बारे में जानते हैं जो काम कर रही हैं, हमारे पास ऐसे शौचालयों को बनाने और रखरखाव करने की तकनीक है, और हम LGBTQ+ समुदाय के लिए क़ानूनी और नीतिगत सुरक्षा के मामलों में छलांगें लगा रहे हैं.

हम एक समाजा के तौर पर भी बहुत बड़ी छलांगें लगा रहे हैं. 2014 में, हमने हिजड़ा समुदाय को तृतीय लिंग के रूप में मान्यता दी. 2018 में, हमने समलैंगिकता को अपराधमुक्त घोषित किया. और आज, हम अपने कार्यस्थलों, विद्यालयों, कॉलेजों और हमारे सार्वजनिक स्थानों पर विविधता को पोषित करने के मामले में बड़े डग भऱ रहे हैं. शौचालय छोटे, लेकिन इस बड़ी तस्वीर के बहुत महत्वपूर्ण हिस्से हैं.

हम सभी को शौचालय जाना होता है. ऐसे शौचालय जिनमें हम सभी जा सकें, अच्छे होते हैं. आज हमारे पास अवसर है, कि हम ऐसी तकनीक और संरचनाओं का प्रयोग कर सकें जो हमारे पास उपलब्ध हैं ताकि हम शौचालय समावेशन की एक ऐसी संस्कृति का निर्माण कर सकें जो मानवाधिकारों का सम्मान करती है, स्वास्थ्य और कुशलता को प्रोत्साहित करती है, शिक्षा और उत्पादकता को बढ़ावा देती है, तथा पर्यावरण की स्थिरता का समर्थन करती है. आइये इसे अपनाते हैं.

यह जानने के लिए एक अधिक न्यायपूर्ण, एक अधिक समतामूलक, अधिक स्वच्छ और अधिक स्वस्थ भारत बनाने में आप अपनी भूमिका कैसे अदा कर सकते हैं, हमसे यहाँ जुड़ें.

Tags: Mission Paani, Mission Swachhta Aur Paani, News18 Mission Paani

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