
हाइलाइट्स
भक्त अपनी रुचि से श्रीकृष्ण का स्वरूप तय कर लेते हैं.
किसी को लड्डू गोपाल से प्रेम तो कोई योगेश्वर रूप में पूज रहा
स्वामी अड़गड़ानंद की ‘यथार्थ गीता’ अलग भवभूमि पर ले जाती है
Krishna Janmashtami 2023: हिंदू देवताओं की परंपरा में श्रीकृष्ण ऐसे देवता हैं, जिन्हें बहुत सारे रूपों में रचा-सजाया और पूजा जाता है. कोई लड्डू गोपाल, तो कोई राधे रानी के प्रिय के तौर पर मानता – पूजता है. गीता के उपदेश का अनुशीलन करने वाले उन्हें जगदगुरु के तौर पर देखते और मानते हैं. सूरदास ने श्रीकृष्ण को ऐसा रचा कि कवियों की पांति में चांद से चमक गए. सूर के अलावा अष्टछाप के बाकी सात कवियों की व्याख्या भी अद्भुत है. कबीर ने ‘गोविंद’ कह, उन्हें गाया है. राजरानी मीरा तो पद रचते-रचते खुद ही कृष्ण की पटरानी बन गईं. श्रीकृष्ण के विग्रह में समाहित हो जाने वाले चैतन्यमहाप्रभु ने हरे कृष्णा का ऐसा गान किया कि आज तक उसकी गूंज भौगोलिक सीमाएं तोड़ दुनिया भर में सुनाई देती है. यहां तक कि इस्लाम के अनुनाई सैय्यद इब्राहिम, रसखान बन कर कृष्ण की भक्ति में खुद डूबे और पढ़ने वालों को सराबोर कर दिया. युद्ध में तलावार चलाने वाले अब्दुल रहीम खानेखाना की कृष्ण भक्ति लाजवाब है. कृष्ण पर काजी नजरुल इस्लाम की रचनाएं भी मोहक हैं. कृष्ण काव्यधारा कुछ ऐसी प्रवाहशील है कि आज भी बहुत सारे रचनाकार अपनी अपनी रुचि और दृष्टि से श्रीकृष्ण को रच और गा रहे हैं.
गीता का अविरल आख्यान
इन तामाम रचनाओं में सबसे पुरानी और अनुपम होने का दर्जा श्रीमद्भगवद् गीता को है. इसे ही गीता के नाम से जाना जाता है. इस पर एकेडेमिक हलकों में भी खूब सारा शोध और विचार-विमर्श हुआ है. भारत के अलावा दुनिया के और हिस्सों में भी हिंदू धर्म की चर्चा होने पर गीता का न सिर्फ जिक्र किया जाता है, बल्कि बाकायादा एकेडेमिक शोध भी होते रहे हैं. ‘महाभारत’ या ‘जय’ नाम के ग्रंथ से ली गई इस रचना को व्यावहारिकता के निकट मान कर दर्शन के स्तर पर भी खूब मंथन हुए हैं. अलग-अलग विद्वानों ने अलग-अलग भाषाओं में संस्कृत मूल की इस रचना का अनुवाद और उसकी टीका रची है. कृष्ण के अपने स्वरूप की ही तरह गीता में भी रसिकों, विद्वानों और साधकों को अपने-अपने अर्थ मिले हैं.
जिस विद्वान को जो कुछ तत्व गीता में मिला उसने उसी को अपनी टीका का आधार बनाया. अष्टावक्र से लेकर आचार्य रजनीश तक सभी ने गीता पर अपनी तार्किक और सटीक लगने वाली व्याख्याएं की हैं. बालगंगाधर तिलक और महात्मा गांधी को गीता की टीकाएं अपने-अपने तरीके से तार्किक लगती हैं. इस्कॉन की ‘यथारूप गीता’ में ग्रंथ के श्लोकों को हिंदी में समझने भर की व्याख्या की गई है. इस्कॉन संगठन के आकार के मुताबिक ही इसका भी खूब प्रचार प्रसार हुआ.
यथार्थ गीता
श्रीमद्भगवद् गीता की अपने तौर की एक अनूठी व्याख्या स्वामी अड़गड़ानंद ने ‘यथार्थ गीता’ के नाम की है. उन्होंने अंगरेजी समेत भारत की तकरीबन सभी भाषाओं में प्रकाशित इस पुस्तक में गीता के श्लोकों को अलग ही नजरिए से देखा है. उनके मुताबिक गीता का उद्देश्य कर्मकांड नहीं है. न ही श्रीकृष्ण ने आग जला कर उसमें घी-धूप के यज्ञ का उपदेश किया है. स्वामी अड़गड़ानंद इस पर भी प्रश्न खड़ा करते हैं कि महाभारत में जितनी अक्षोहणी सेना के युद्ध लड़ने का वर्णन किया गया है, उतनी संख्या में लोगों के धरती के किसी हिस्से में एक साथ खड़ा होना भी मुश्किल है. यथार्थ गीता में अड़गड़नंद लिखते हैं –
इदं शरीरं कौन्तेय क्षेत्रमित्यभिधीयते
अर्थात “कौन्तेय (अर्जुन) यह शरीर ही एक क्षेत्र है, जिसमें बोया हुआ भला और बुरा बीज संस्कार-रूप से सदैव उगता है. दस इंद्रियां, मन, बुद्धि, चित्त, अहंकार, पांचों विकार और तीनों गुणों के विकार इस क्षेत्र के विस्तार हैं.”
तो फिर कृष्ण कौन हैं
गीता के 11वें अध्याय के 41वें श्लोक में अर्जुन कहते हैं –
सखेति मत्वा प्रसभं यदुक्तं, हे कृष्ण हे यादव हे सखेति।
अजानता महिमानं तवेदं, मया प्रमादात्यप्रणयेन वापी।।
अर्थात, आपके इस प्रभाव को न जानते हुए मेरे द्वारा आपको सखा, मित्र मान कर प्रेम अथवा प्रमाद भी हे कृष्ण, हे यादव, हे सखा के रूप में संबोधित किया गया. आगे चल कर 42वें, 43वें और 44वें श्लोक में अपने इन संबोधनों के लिए अर्जुन श्रीकृष्ण से क्षमा मांगने लगते हैं. अर्जुन कहते हैं “आप मेरे अपराधों को वैसे ही क्षमा कर दें जैसे पिता पुत्र के, मित्र, मित्र के या प्रिय अपने प्रेमी के अपराधों को क्षमा कर देता है.”
यहां पर अड़गड़ानंद ने अपनी टिप्पणी की है कि कृष्ण और अर्जुन मित्र तो थे ही, श्रीकृष्ण यदुकुल में पैदा हुए थे, उनका नाम कृष्ण ही था, फिर अर्जुन क्षमा किस बात के लिए मांगते हैं? इसी को आगे बढ़ाते हुए वे कहते हैं कि ज्ञान होने पर अर्जुन जान गए कि श्रीकृष्ण ओSकार है. इसके लिए अड़गडानंद लिखते हैं कि पूरी गीता में खुद कृष्ण ने पांच बार ओSम जपने पर बल दिया है. गीता के आठवें अध्याय के 13वें श्लोक में श्रीकृष्ण बता चुके हैं-
ओमित्येकाक्षरं ब्रह्म व्यावहारन्मामनुस्मरन्।
यः प्रयाति त्यजन्देहं स याति परमां गतिम्।।
अर्थात, जो ओम् इति –ओम इतना ही जो अक्षय ब्रह्म का परिचायक है, उसका जप और मेरा स्मरण करता हुआ शरीर त्याग कर जाता है वह परमगति को प्राप्त होता है.
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Tags: Hindi Literature, Janmashtami, Literature, Lord krishna
FIRST PUBLISHED : September 06, 2023, 16:23 IST