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संगीत के सात के सुरों में छिपा है सेहत का राज! जानें क्या होता है असर

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संगीत के सात के सुरों में छिपा है सेहत का राज! जानें क्या होता है असर

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हाइलाइट्स

सुरों के नियमित संधान से चक्र जाग्रत होकर शरीर को हर्ष, उल्लास, शान्ति और आनन्द के भावों से भर देते हैं.
सम्पूर्ण सृष्टि नाद का विस्तार है और सृष्टि के कण-कण में नाद समाया हुआ है. पृथ्वी का नाद अत्यंत मधुरिम है.
पाश्चात्य पॉप संगीत नाभि के नीचे के चक्रों के भावों को भड़काता है जिसे काम-क्रोध और उत्तेजना बढ़ती है.

(डॉ. चन्द्रप्रकाश शर्मा/ Dr Chandra Prakash Sharma)

संगीत के सात सुर मानव शरीर में स्थित सात चक्रों को प्रभावित करने की सामर्थ्य रखते हैं. शरीर के सात चक्र ऊर्जा के सप्त केंद्र हैं जिनका शरीर संचालन, नियमन, स्वस्थ रहने के साथ दिव्य ऊर्जा संचरण में विशेष महत्व है. शरीर के ये केन्द्र सामान्यतः सुसुप्त अवस्था में रहते है. इनको जाग्रत और सक्रिय करने में सात सुर महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं क्योंकि हर सुर का सम्बन्ध एक चक्र से है.

‘स’ सुर का सम्बन्ध मूलाधार चक्र, ‘रे’ का स्वाधिष्ठान, ‘ग’ का मणिपुर, ‘म’ का अनाहत, ‘प’ का विशुद्धि, ‘ध’ का आज्ञा तथा ‘नि’ स्वर का सहत्रार चक्र से है. सुरों के नियमित संधान से चक्र जाग्रत होकर शरीर को ओजस्विता, दिव्यता से परिपूर्ण कर हर्ष, उल्लास, शान्ति और आनन्द के भावों से भर देते हैं.

संगीत में सुर, लय, ताल का समावेश होता है. वैज्ञानिक खोजों का निष्कर्ष है कि जब सुर, लय, ताल के साथ गाया-बजाया जाता है तो एक विशेष आवृत्ति की ध्वनि तरंगों की उत्पत्ति होती है जो मानव मस्तिष्क की रासायनिक विद्युत संरचना को प्रभावित करती हैं जिससे मस्तिष्क में शान्ति, खुशी और आनन्द देने वाले रसायन ‘एडोरफिन’ का स्राव होने लगता है जिससे व्यक्ति की मनोदशा में सुधार होता है. पाश्चात्य पॉप संगीत नाभि के नीचे के चक्रों के भावों को भड़काता है जिसे काम-क्रोध और उत्तेजना बढ़ती है. परिणामस्वरूप व्यक्ति का व्यक्तित्व विखंडित होने लगता है जबकि भारतीय संगीत नाभि के ऊपरी चक्रों के भावों को विकसित करता है जो मानव के आन्तरिक व्यक्तित्व के विकास में सहायक है. भारतीय संगीत व्यक्ति की शारीरिक, मानसिक व्याधियों से मुक्ति के साथ-साथ उसके सर्वांगीण विकास का सशक्त माध्यम है.

संगीत का स्तोत्र है नाद
सम्पूर्ण सृष्टि नाद का विस्तार है और सृष्टि के कण-कण में नाद समाया हुआ है.अंतरिक्ष यात्रियों का यह कथन पूर्णतः सत्य है कि पृथ्वी का नाद अत्यंत मधुरिम है. नाद के तीन प्रकार हैं- प्राकृतिक नाद, मानवीकृत नाद और अनहद नाद. प्रकृति में यत्र, तत्र, सर्वत्र नाद गुंजायमान है यथा-भौरों की गुंजार, झींगरों की झंकार, कोयल की कुह-कुह, मेंढकों की टर्र-टर्र, हाथियों की चिंघाड़ के साथ नदियों की कल-कल, झरनों की झर-झर, समुद्र की गर्जन, वर्षा की रिमझिम, घटाओं की गड़गड़ाहट, बिजली की कड़कड़ाहट, हृदय की धड़कन और सांसों के कम्पन में नाद या संगीत समाया हुआ है.

प्राकृतिक संगीत से ही मानवीकृत संगीत का अभ्युदय हुआ है. संगीत में सात स्वर हैं- सा, रे, गा, मा, पा, धा, नि. इनसे मिलकर ही समस्त राग और रागनियां बनी हैं. इनमें स (शद्दज) को मोर का स्वर, रे (ऋषभ) को पपीहे, ग (गन्धर्व) को बकरे, म (मध्यम) को क्रोंच, प (पंचम) को कोयल, ध (धैवत) को घोड़ा, नि (निषाद) को हाथी का स्वर माना जाता है. पशु-पक्षी एक स्वर में गा सकते हैं जबकि मानव सभी स्वरों में गा सकता है. अनहद नाद स्वत: प्रस्फुटित नाद है जो बिना बताये हमारे लिए ध्यान की अवस्था में सुनायी पड़ता है.

संगीत और सप्त चक्र
ऋषि-मुनि और योगीजन ध्यान अवस्था में उसका श्रवण करते हैं जिसके बारे में संत जन कहते हैं कि “बिना बजाये निशिदिन बाजे, घंटा, शंख, नगाड़ी रे। बहरा सुनि-सुनि मस्त होत है, तन की खबर बिसारी रे।” दानव से मानव और मानव से महामानव बनने की यात्रा में संगीत का विशेष महत्व है. इसलिए खुशी के अवसरों, उत्सव-पर्वों, धार्मिक कार्यक्रमों में हम संगीत को महत्व देते हैं. देवालयों या घरों में पूजन-अर्चन के समय हम घंटा, घड़ियाल, मृदंग, बांसुरी, वीणा आदि बजाते हैं. हमारे महापुरुषों ने संगीत की तीनों धाराएं- गायन, वादन, नृत्य को अपने जीवन में अपनाकर मानव मात्र को स्पष्ट संदेश दिया कि संगीत द्वारा सप्त चक्रों को जागृत करने के साथ ही सृजन और शोध के अथाह सागर दांयें मस्तिष्क को क्रियाशील कर असीमित प्रतिभाओं का धनी बन सकता है.

श्रीकृष्ण स्वयं बांसुरी बजाते थे और उन्होंने गायन, वादन, नृत्य के महासंगम महारासलीला का आयोजन किया. भगवान शंकर भी डमरु बजाकर नृत्य किया करते थे. श्रीकृष्ण भक्त मीरा एकतारे को बजाकर गाती और नाचती थीं. श्रीहरि विष्णु का शंख तथा महिषासुर मर्दिनी मां का घंटा वाद्ययंत्र हैं. संगीत सुर, लय, ताल की साधना ही नहीं है बल्कि एक यौगिक क्रिया है जिससे शरीर, मन, प्राण तीनों में चैतन्यता और दिव्यता का संचरण होता है और मानव में महामानव बनने की प्रक्रिया का श्री गणेश होता है.

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Tags: Health, Hindi Literature, Hindi Writer, Music

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