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समावेशिता में निवेश- LGBTQ+ अनुकूल टूरिज़्म और हॉस्पिटैलिटी के आर्थिक लाभ

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समावेशिता में निवेश- LGBTQ+ अनुकूल टूरिज़्म और हॉस्पिटैलिटी के आर्थिक लाभ

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टूरिज़्म और हॉस्पिटैलिटी इंडस्ट्री भारत की अर्थव्यवस्था की आधारशिला है, जहां ग्राहकों की प्राथमिकताओं और मूल्यों में विकास देखा जा रहा है. वित्त वर्ष 20 (FY20) में भारत में पर्यटन क्षेत्र में 39 मिलियन नौकरियां पैदा हुईं, जो देश में कुल रोजगार का 8.0% था. 2019 में GDP में ट्रैवल और टूरिज़्म के कुल योगदान के मामले में भारत 185 देशों में 10वें स्थान पर था. यह संख्या 194.30 बिलियन अमेरिकी डॉलर थी और 2028 तक 512 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुंचने की उम्मीद है.

यह 5 ट्रिलियन अमेरिकी डॉलर की अर्थव्यवस्था का 10% है जिसे हम हासिल करने की उम्मीद कर रहे हैं.

दुनिया के विभिन्न देशों के पर्यटकों के साथ समावेशी वातावरण बनाना एक रणनीतिक निवेश बन गया है. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि कोई देश कितना सुंदर, दर्शनीय या रोमांचक है, अगर उसे ‘असुरक्षित’ माना जाता है, तो आप वहां छुट्टी की योजना नहीं बना सकते. LGBTQ+ यात्रियों को अलग-अलग जगहों की यात्रा के समय विभिन्न चुनौतियों और बाधाओं का सामना करना पड़ता है. जिसमें कानूनी प्रतिबंध, सामाजिक कलंक, भेदभाव, उत्पीड़न और हिंसा शामिल हैं.

वो कोई छोटा समूह नहीं हैं. LGBTQ+ यात्री वैश्विक पर्यटन बाज़ार के अनुमानित 10% का प्रतिनिधित्व करते हैं, जिनकी अनुमानित वैश्विक खर्च की शक्ति $3.9 ट्रिलियन है.

LGBTQ+ यात्रियों को आकर्षित करने और बनाए रखने का एक तरीका है समावेशी टूरिज़्म और हॉस्पिटैलिटी के बुनियादी ढांचे में निवेश करना, जिसमें भौतिक और ऐसी सुविधाएं व सेवाएं शामिल हैं, जो पर्यटकों को किसी गंतव्य तक पहुंचने और उसका आनंद लेने में मदद करती है. इसमें परिवहन, आवास, आकर्षण, मनोरंजन, सूचना, संचार और… शौचालय शामिल हैं.

समावेशी शौचालयों की ज़रूरत
जब किसी ट्रांसजेंडर, इंटरसेक्स या गैर-बाइनरी व्यक्ति को लिंग के आधार पर विभाजित शौचालय में जाना पड़ता है, तो यह उनके लिए मुश्किल भरा होता है. ऐसे व्यक्ति जो अपनी पहचान ‘पुरुष’ या ‘महिला’ के रूप में नहीं करते हैं, उन्हें किसी भी शौचालय का उपयोग करने के लिए कहना किसी को ‘गलत’ शौचालय में जाने के लिए कहने जैसा ही है. यहां कुछ वास्तविक जोखिम हैं. ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के बाथरूम में हिंसा का शिकार होने की संभावना अधिक होती है. नेशनल सेंटर फॉर ट्रांसजेंडर इक्वेलिटी ने एक सर्वेक्षण किया जिसमें 27,715 लोगों को शामिल किया गया था, इसके नतीजे बताते हैं कि लगभग 12% ट्रांसजेंडर लोगों को सार्वजनिक शौचालयों में मौखिक रूप से परेशान किया गया, 1% पर शारीरिक हमला किया गया और 1% पर यौन हमला किया गया.

अधिकांश लोग जिनकी पहचान ट्रांसजेंडर, गैर-बाइनरी और इंटरसेक्स के रूप में होती है, उनके लिए लिंग के आधार पर विभाजित शौचालय तनावपूर्ण स्थल हो सकते हैं. उन्हें पता नहीं होता कि कब कोई शौचालय में उनकी उपस्थिति को चुनौती देगा और उन्हें दूसरा शौचालय इस्तेमाल करने के लिए कहेगा. वे नहीं जानते कि क्या उन्हें बाहर किया जाएगा, अपमानित किया जाएगा, परिसर से निकाल दिया जाएगा या मौखिक व शारीरिक हमला भी किया जाएगा.

पुरुषों या महिलाओं की तुलना में ट्रांसजेंडर, गैर-बाइनरी और इंटरसेक्स लोग अब ‘गलत’ शौचालय का उपयोग नहीं करना चाहते हैं. आसपास महिला शौचालय होने पर कोई भी महिला पुरुष शौचालय में नहीं जाती. लेकिन लिंग समावेशी शौचालय अगर नहीं हैं, तो हम ट्रांसजेंडर, गैर-बाइनरी और इंटरसेक्स लोगों से कहां जाने की उम्मीद करते हैं?

LGBTQ+ यात्रियों के लिए समावेशी टूरिज़्म और हॉस्पिटैलिटी का मतलब है, उन्हें एक सुरक्षित, आरामदायक और सम्मानजनक माहौल देना, जहां वे बिना किसी डर या आलोचना के, जैसे हैं वैसे रह सकें. इसका मतलब है उन्हें ऐसे उत्पाद और सेवाएं प्रदान करना जो उनकी रुचियों और अपेक्षाओं को पूरा करते हों. हम LGBTQ+ अनुकूल होटल, बार और रेस्टोरेंट बना सकते हैं, LGBTQ+ फ्रेंडली इवेंट और टूर की मेजबानी कर सकते हैं, लेकिन हम अगर समुदाय के अपने दोस्तों को खतरनाक शौचालयों में जाने के लिए कहते हैं, तो इन प्रयासों का कोई मतलब नहीं रह जाता. समावेशी शौचालयों के बिना, यह काम नहीं करेगा.

LGBTQ+ अनुकूल बुनियादी ढांचा बनाना
LGBTQ+ यात्रियों को भारत में सुरक्षित महसूस कराने और उनका स्वागत करने के लिए, नीचे दी गई कुछ बातों का ध्यान रखना ज़रूरी है.

कानूनी ढांचा
भारत में हमने LGBTQ+ समुदाय के अधिकारों को पहचानने और कानून मान्यता देने की दिशा में अहम प्रगति की है. 2014 में, भारत के सुप्रीम कोर्ट ने ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को तीसरे लिंग के रूप में मान्यता दी, जिसके बाद आगे की नीतियों की नींव रखी गई. इस मान्यता ने शौचालयों सहित सार्वजनिक स्थलों पर लैंगिक समावेशिता के बारे में बातचीत को बढ़ावा दिया. 2018 में, 17 साल की वकालत और मुकद्मेबाजी के बाद, सुप्रीम कोर्ट ने भी भारत के संविधान में शामिल अनुच्छेद 377 को खत्म करके समलैंगिकता को अपराध की श्रेणी से हटा दिया, यह औपनिवेशिक युग का कानून था.

सुप्रीम कोर्ट इस समय समलैंगिक जोड़ों को कानूनी मान्यता देने की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रहा है. यदि पक्ष में फैसला दिया जाता है, तो भारत विवाह समानता की अनुमति देने वाला एशिया का पहला देश (और दूसरा स्थान) बना जाएगा.

सांस्कृतिक दृष्टिकोण बदलना
अंतर्राष्ट्रीय सामग्री का बड़ी मात्रा में उपयोग करने के अलावा, अब भारतीय फिल्में और टीवी प्रोडक्शन LGBTQ+ किरदारों, विषयों और कहानियों का प्रतिनिधित्व करने लगे हैं. ऐसा हाल में ही नहीं हुआ है- दीपा मेहता की फिल्म फायर ने 1996 में एक रूढ़िवादी भारतीय परिवार में दो महिलाओं के बीच संबंधों को दिखाया था. उसके बाद, माई ब्रदर निखिल (2005), हनीमून ट्रैवल्स प्राइवेट लिमिटेड (2007), दोस्ताना (2008), अलीगढ़ (2016) और एक लड़की को देखा तो ऐसा लगा (2019) और बेहद सफल बधाई दो (2022) जैसी कई फिल्में आईं. सभी में LGBTQ+ समुदाय की समाज में स्वीकार्यता से जुड़ी चुनौतियों को दर्शाया गया और ये कि उन्हें अभी भी सच्ची स्वीकृति के लिए एक लंबा रास्ता तय करना है.

घर बैठे, अमेज़न प्राइम के मेड इन हेवन (2019) ने हमें LGBTQ+ समुदाय के सामने आने वाली चुनौतियों की बारीक समझ दी, ऐसे भारत में जहां अनुच्छेद 377 जैसा कानून था.

प्राइड परेड के अलावा, मुंबई, बैंगलोर, चेन्नई, कलकत्ता और दिल्ली में हर किसी के अपने-अपने क्वीर फिल्म और थिएटर फेस्टिवल हैं. असल में, यहां उन सभी शहरों की सूची दी गई है जो अपने खुद के प्राइड परेड मेज़बानी करते हैं- भुवनेश्वर, हैदराबाद, चंडीगढ़, पुणे, अहमदाबाद, त्रिशूर, मदुरै, भवानीपटना, गुवाहाटी, कोचीन, जयपुर, देहरादून, सूरत, बड़ौदा, तिरुवनंतपुरम, नागपुर, लखनऊ, भोपाल, जमशेदपुर, गोवा, अमृतसर और कई अन्य.

इसके अलावा, इस समुदाय से आने वाले प्रभावशाली सेलिब्रिटी और इनका सहयोग करने वालों की लिस्ट अंतहीन है. पहचान, स्वीकार्यता और समानता की लड़ाई में भारत के LGBTQ+ समुदाय अच्छी तरह से जुड़े हैं, उनके पास अच्छा बोलने वाले और सहयोग करने वाले प्रतिनिधित्व हैं.

LGBTQ+ के स्वामित्व और उनका स्वागत करने वाले हॉस्पिटैलिटी बिज़नेस
भारत में कई हॉस्पिटैलिटी बिज़नेस हैं, जो LGBTQ+ के स्वामित्व में हैं या जो ऐसे यात्रियों की सेवा करते हैं. इनमें होटल, कैफे, बार, रेस्तरां, नाइट क्लब और इवेंट्स शामिल हैं, जो LGBTQ+ लोगों को मेलजोल, नेटवर्क बनाने और मौज-मस्ती के लिए एक सुरक्षित और आरामदायक जगह मुहैया करते हैं. इनमें से कुछ इस प्रकार हैं- पुणे में ले फ्लेमिंगटन, एक समलैंगिक जोड़े द्वारा बनाया गया आकर्षक पेरसियन शैली का कैफे, हैदराबाद का पीपल्स चॉइस कैफे, जो शहर का पहला LGBTQ+ फ्रेंडली कैफे है, दिल्ली और मुंबई में किटी सु, भारत के सबसे शानदार नाइट क्लबों में से एक है और साथ ही एक समावेशी समलैंगिक-अनुकूल स्थान. ललित होटल्स, लग्ज़री होटलों की एक श्रृंखला है, जो नियमित रूप से LGBTQ+ इवेंट्स और पार्टियों की मेज़बानी करती है; और पिंक विबग्योर एक ट्रैवल कंपनी है, जो पूरे भारत में LGBTQ+ यात्रियों के लिए उपयुक्त टूर और पैकेज आयोजित करती है.

समावेशी शौचालय सुविधा
नीति समर्थन यहां मौजूद है, लेकिन उनका कार्यान्वयन अभी तक तेज़ नहीं हो पाया है. हालांकि, ऐसे कई बेहतरीन उदाहरण हैं, जो बिल्कुल सही माहौल बना रहे हैं. भारत के सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में न्यायालय के गलियारों के भीतर नौ जेंडर-न्यूट्रल शौचालय स्थापित करके हमारे लिए समावेशिता का एक नया मानदंड स्थापित किया है.

दिल्ली सरकार ने ये आदेश देकर समावेशिता की दिशा में एक अहम कदम उठाया है कि उसके सभी विभागों, कार्यालयों, जिला प्राधिकरणों, नगर निगमों, राज्य-संचालित कंपनियों और दिल्ली पुलिस में ट्रांसजेंडर व्यक्तियों के लिए अलग और खास शौचालय हों. यह आदेश न केवल ट्रांसजेंडर शौचालयों की स्थापना की सुविधा प्रदान करता है, बल्कि यह भी कहता है कि ट्रांसजेंडर व्यक्तियों को अपने स्वयं के पहचाने गए लिंग के अनुरूप लिंग-आधारित शौचालयों का उपयोग करने का विकल्प मिलता रहेगा

शिक्षा संस्थाओं द्वारा सक्रिय कदम उठाने के भी प्रेरक उदाहरण मौजूद हैं. एक उल्लेखनीय मामला भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान ((IIT) बॉम्बे का है, जहां 2017 की शुरुआत में कैंपस में जेंडर-न्यूट्रल शौचालय स्थापित किए गए थे. इस पहल को IIT बॉम्बे में LGBTQ+ छात्र सहायता समूह साथी ने समर्थन दिया था, जो समावेशिता को बढ़ावा देने में छात्रों के नेतृत्व वाली समर्थन की शक्ति को दिखाता है.

इस दिशा में एक अन्य संस्थान जो अग्रणी है, वो है टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज (TISS) मुंबई है, जिसने 2017 में अपने कैंपस में जेंडर-न्यूट्रल शौचालय बनवाएं. इस प्रयास का नेतृत्व TISS मुंबई में एक LGBTQ+ छात्र समूह क्वीर कलेक्टिव ने किया था, जिसने सभी के लिए सुरक्षित और समावेशी स्थान बनाने में छात्रों द्वारा चलाई पहल गई के महत्व पर जोर दिया था.

आज, कई भारतीय विश्वविद्यालय जेंडर-न्यूट्रल शौचालयों की आवश्यकता को पहचानने लगे हैं. IIT दिल्ली जैसे संस्थानों ने अपने परिसरों में जेंडर-न्यूट्रल शौचालयों का बनाने की पहल की है. दरअसल, IIT दिल्ली अब ऐसी 14 सुविधाओं का दावा करता है. इसके अतिरिक्त, असम में तेजपुर विश्वविद्यालय और आंध्र प्रदेश में नेशनल एकेडमी ऑफ लीगल स्टडीज एंड रिसर्च (NALSAR) ने भी सभी छात्रों को एक समावेशी वातावरण प्रदान करने के महत्व को पहचानते हुए, जेंडर-न्यूट्रल शौचालय बनवाया है. NALSAR जेंडर-न्यूट्रल ट्रांस नीति को अपनाकर और छात्रों के प्रमाणपत्रों पर जेंडर-न्यूट्रल टाइटल ” Mx” को मान्यता देकर एक कदम आगे बढ़ गया है, जिससे अन्य संस्थानों के लिए भी इसे अपनाने का रास्ता खुल गया है.

कॉर्पोरेट सहयोगी
स्वच्छता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए मशहूर ब्रांड Harpic ने बदलाव की इस आवाज़ को स्वीकार कर लिया है. खुले दिल और गहरी समझ के साथ, Harpic ने यह सुनिश्चित करने के लिए उल्लेखनीय कदम उठाए हैं कि उसके उत्पाद समाज की समृद्ध टेपेस्ट्री को पूरा करते हैं, जिसमें LGBTQ+ समुदाय भी शामिल है. यह मानते हुए कि शिक्षा ही नज़रिया बदलने की चाभी है, Harpic ने प्रेरक अभियान शुरू किए हैं, जो लिंग पहचान की सुंदर विविधता को उजागर करते हैं. इन शक्तिशाली पहलों के माध्यम से, समाज को जागरुक, पोषित किया जाता है और ऐसा वातावरण बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जहां स्वीकृति विकसित होती है.

इस मुद्दे को संबोधित करने के मकसद से शुरू की गई एक पहल है मिशन स्वच्छता और पानी, जिसे Harpic India ने 3 साल पहले News 18 के साथ साझेदारी में शुरू किया था. स्वच्छता के प्रति अपनी प्रतिबद्धता के लिए मशहूर ब्रांड Harpic ने बदलाव की इस आवाज़ को स्वीकार कर लिया है. खुले दिल और गहरी समझ के साथ, Harpic ने यह सुनिश्चित करने के लिए उल्लेखनीय कदम उठाए हैं कि उसके उत्पाद समाज की समृद्ध टेपेस्ट्री को पूरा करते हैं, जिसमें LGBTQ+ समुदाय भी शामिल है. यह मानते हुए कि शिक्षा ही नज़रिया बदलने की चाभी है, Harpic ने प्रेरक अभियान शुरू किए हैं, जो लिंग पहचान की सुंदर विविधता को उजागर करते हैं. इन शक्तिशाली पहलों के माध्यम से, समाज को जागरुक, पोषित किया जाता है और ऐसा वातावरण बनाने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है जहां स्वीकृति विकसित होती है.

समावेशी शौचालय सुविधाओं का समर्थन करके, Harpic न केवल लाखों भारतीयों के स्वास्थ्य और कल्याण का समर्थन करता है, बल्कि भारत में LGBTQ+ के अनुकूल पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी के बुनियादी ढांचे के विकास में भी योगदान देता है. यह बदले में भारत में ज़्यादा LGBTQ+ यात्रियों आकर्षित करने, उनके खर्च और संतुष्टि को बढ़ाने और मेजबान समुदायों के लिए सकारात्मक सामाजिक प्रभाव पैदा करने में मदद कर सकता है.

निष्कर्ष
संयुक्त राष्ट्र विश्व पर्यटन संगठन और IGLTA की एक रिपोर्ट के अनुसार, LGBTQ+ अनुकूल पर्यटन और हॉस्पिटैलिटी के बुनियादी ढांचे से अधिक पर्यटकों को आकर्षित करने, उनके खर्च को बढ़ाने, लंबे समय तक उन्हें रहने, उनकी वफादारी में सुधार करने में मदद के साथ ही उनके मौखिक प्रचार को बढ़ाने में मदद मिल सकती है.

भारत में, जहां हम पर्यटकों के अनुभव बेहतर बनाने के लिए कई पहलुओं को बेहतर बनाने की दिशा में काफी विकास कर रहे हैं, लिंग समावेशी शौचालय एक आसान काम है. हम जितनी जल्दी इस पर आगे बढ़ेंगे, उतनी ही तेज़ी से हमारी बाकी कोशिश सच्ची LGBTQ+ मित्रता में बदल जाएंगी. लिंग समावेशी शौचालयों को समावेशिता के प्रति हमारी प्रतिबद्धता के ठोस प्रमाण के रूप में देखा जाता है. यह एक और कदम है जो सांस्कृतिक और सामाजिक भेदभाव को मिटाता है, जो हम में से कई लोगों को चोट पहुंचाता है, और हमें एक ऐसा समाज बनाने के एक कदम और नज़दीक ले जाता है जहां हम सभी सुरक्षित, स्वीकार्य और सम्मानित हैं.

आप इस राष्ट्रीय बदलाव का हिस्सा कैसे बन सकते हैं जानने के लिए हमसे यहां जुड़ें.

Tags: Mission Paani, Mission Swachhta Aur Paani, News18 Mission Paani

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