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Tamil Nadu: धनुषकोडी के रेत के टीलों को बचाने वाला रावण की मूंछ नामक पौधा तेज हवाओं और समुद्र की लहरों से मिट्टी के कटाव को रोकता है. यह कांटेदार घास प्राकृतिक सुरक्षा कवच की तरह काम करती है और पर्यावरण संतुलन …और पढ़ें
रावण की मूंछ वाला पौधा
धनुषकोडी और उसके आसपास के इलाकों में रावण की मूंछ नाम का एक खास पौधा पाया जाता है. ऐसा कहा जाता है कि यह पौधा रेत के टीलों की रक्षा करता है. तेज हवा या समुद्र की लहरें जब मिट्टी को उड़ाने या बहाने लगती हैं, तो रावण की मूंछ उन्हें रोकने का काम करती है. इस पौधे की जड़ें मिट्टी में गहराई तक जाती हैं, जिससे मिट्टी का कटाव रुकता है और रेत के टीले सुरक्षित रहते हैं.
रामेश्वरम से धनुषकोडी तक फैला जादू
रावण की मूंछ का पौधा रामेश्वरम से लेकर रामनाथपुरम जिले के धनुषकोडी तक सड़क के दोनों ओर देखने को मिलता है. खास बात यह है कि यह घास सड़क किनारे रेत के टीलों पर अपने आप उगती है. इसकी कांटेदार और पास-पास पत्तियां मिट्टी को एक साथ बांधती हैं और मिट्टी की उर्वरता बनाए रखती हैं.
क्यों कहते हैं इसे रावण की मूंछ?
रावण की मूंछ एक शाकीय पौधा है, जिसका अंग्रेजी नाम स्पिनिफेक्स लिटोरियस (Spinifex Littoreus) है. इसे “आलमरिथन” भी कहा जाता है क्योंकि इस पर चलने से यह आपके पैरों को पकड़ लेती है और चलना मुश्किल कर देती है. इसके नुकीले और तीखे पत्ते रावण की मूंछों जैसे दिखते हैं, इसलिए इसे यही नाम दिया गया. जब तेज हवा चलती है तो यह पौधा गेंद की तरह लुढ़कता है और अपने बीज दूर-दूर तक फैला देता है.
हवा और लहरों से लड़ने वाली घास
धनुषकोडी जैसे इलाकों में जब तेज हवाएं चलती हैं, तो रावण की मूंछ वहां के रेत के टीलों को उड़ने से बचाती है. अगर यह पौधा न हो तो सड़कों पर रेत का तूफान आ सकता है. इसी तरह, जब समुद्र में बड़ी लहरें उठती हैं, तो रावण की मूंछ एक सुरक्षा दीवार की तरह काम करती है. यह रेत के टीलों को समुद्री पानी से बचाती है और सड़क पर पानी आने से रोकती है.
प्रकृति की ओर से मिला अनमोल तोहफा
रावण की मूंछ न सिर्फ रेत के टीलों को बचाती है, बल्कि पूरे इलाके के पर्यावरण को संतुलित भी रखती है. बिना किसी इंसानी मदद के यह घास अपना काम करती है और प्रकृति को सुरक्षित बनाए रखने में मदद करती है. धनुषकोडी जैसे खास और संवेदनशील इलाकों के लिए यह पौधा किसी वरदान से कम नहीं है.