
[ad_1]
नई दिल्ली. भारत ने हाल ही में पाकिस्तान में घुसकर ऑपरेशन सिंदूर को अंजाम दिया. ठीक उसी तर्ज पर इजरायल ने आज ईरान के प्रमाणु ठिकानों और सेना प्रमुख को ऑपरेशन राइजिंग लॉयन के तहत निशाना बनाया. इजरायल दशकों से इसी तर्ज पर अपने आक्रामक रवैये के लिए दुनिया में चर्चित है. ऐसे में पीएम नरेंद्र मोदी और इजरायल के प्रधानमंत्री बेंजामिन नेतन्याहू के बीच तुलना होना तय है. दोनों ही नेता अपने देश के राष्ट्रीय हितों के लिए किसी भी हद तक एक्शन लेने से नहीं चूकते. एक मौके पर नहीं बल्कि कई बार दोनों के बीच समानता के उदाहरण सामने आए हैं.
भारत और इजरायल दोनों ही देश लंबे समय से आतंकवाद के खिलाफ लगातार ऑपरेशन चला रहे हैं. भारत का ताजा सैन्य कदम ‘ऑपरेशन सिंदूर’ इसका एक शक्तिशाली उदाहरण है, तो इजरायल की ओर से ईरान समर्थित आतंकी ठिकानों पर जवाबी कार्रवाई भी उसी सांचे में ढलती दिखती है. नेतन्याहू हों या मोदी, दोनों ही नेता घरेलू और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मजबूत निर्णय लेने के लिए जाने जाते हैं. चाहे वह आतंकियों के ठिकानों पर हमला हो या अंतरराष्ट्रीय मंच पर अपने देश की बात रखना, दोनों ही अपने-अपने तरीकों से एक ही एजेंडे पर चलते दिखते हैं और वो है राष्ट्र की सुरक्षा पहले.
‘ऑपरेशन सिंदूर’ बनाम ऑपरेशन राइजिंग लॉयन
क्या इजरायल और भारत का साथ भविष्य के लिए तय है?
दोनों देश पहले से एक-दूसरे के सहयोगी रहे हैं. 1970-80 के दशक में इजरायल ने भारत को गुप्त रूप से हथियार तक मुहैया कराए थे. आज दोनों देशों के बीच रक्षा, तकनीक, कृषि और कूटनीति के क्षेत्र में गहरा सहयोग है. अगर भारत और इजरायल का यह रिश्ता और भी मजबूत होता है तो यह पूरे दक्षिण एशिया और मिडिल ईस्ट के लिए रणनीतिक रूप से बेहद अहम होगा. जहां एक ओर नेतन्याहू अपने दुश्मनों को सीधी चेतावनी दे रहे हैं, वहीं मोदी भी आतंक के खिलाफ ‘अब बहुत हो गया’ वाली नीति पर अडिग हैं. यह समान सोच दोनों देशों को सुरक्षा के मामले में एक-दूसरे का प्राकृतिक साझेदार बनाती है.
[ad_2]
Source link