Home Life Style सुबह उठकर सबसे पहले पढ़ें यह मंत्र, धन, सम्पदा सहित होगा स्वास्थ्य लाभ

सुबह उठकर सबसे पहले पढ़ें यह मंत्र, धन, सम्पदा सहित होगा स्वास्थ्य लाभ

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सुबह उठकर सबसे पहले पढ़ें यह मंत्र, धन, सम्पदा सहित होगा स्वास्थ्य लाभ

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हाइलाइट्स

सबसे पहले उठते ही कुछ शास्त्रोक्त कार्य करने से पूरा दिन शुभ होता है.
कुछ सरल उपाय कर अपने जिन्दगी में सकारात्मकता लानी चाहिए.

हिन्दू धर्म के आधार पर माने जाने वाले वेद एवं शास्त्रों में मनुष्य जीवन से जुड़ी छोटी से छोटी चीज का सही विधान बताया गया है. उसी श्रृंखला में मनुष्य की दिनचर्या से जुड़े तमाम जरूरी नियमों के बारे में भी बताया गया है. यदि शास्त्रोक्त विधि से मनुष्य अपने दिन की शुरुआत करता है तो उसके जीवन में सकारात्मक बदलाव तो आने निश्चित ही हैं. वैसे भी एक मान्यता है कि अगर दिन का आरंभ अच्छा हो तो पूरा दिन भी अच्छा ही गुजरता है परंतु ज्ञान ना होने के कारण आजकल के समय में हम लोग वेदों एवं शास्त्रों में बताए गए उन नियमों का पालन नहीं कर पाते. अगर ऐसा किया जाए तो जीवन की परेशानियां कम हो जाएंगी और सब मंगलमय ही होगा. ज्योतिष शास्त्र में भी ऐसे एक मंत्र का उल्लेख मिलता है, जिसका नित्यप्रति उठते ही जाप करने से आपके दिन में आने वाली सभी बाधाएं नष्ट हो जाएंगी और बड़े से बड़ा कार्य भी सुलभता से निपट जाएगा.

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क्या है मंत्र और विधि?

हमें सुबह जागते ही सबसे पहले अपनी दोनों हथेलियों को एकसाथ मिलाकर उसके दर्शन करने चाहिए. याद रखें कि आखें खुलते ही सबसे पहले यही कार्य किया जाए. किसी और वस्तु या व्यक्ति को ना देखा जाए. हथेली को निहारते हुए निम्नलिखित मंत्र का भी उच्चारण कम से कम एक बार तो अवश्य करना चाहिए-

कराग्रे वसति लक्ष्मी, कर मध्ये सरस्वती,
करमूले तू ब्रह्मा, प्रभाते कर दर्शनम…

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क्या है मंत्र का अर्थ?

इस मंत्र का अर्थ है कि मेरे हाथ के अग्रभाग में देवी लक्ष्मी जी का वास है. हाथ के मध्य भाग में विद्यादायिनी सरस्वती जी एवं मूल भाग में भगवान श्रीहरि विष्णु का निवास है, तो प्रभातकाल में मैं इन सभी के दर्शन करता हू. विष्णु पुराण में वर्णित इस श्लोक में ऐश्वर्य की देवी लक्ष्मी, विद्यादायिनी माता सरस्वती और समस्त सृष्टि के रचयिता एवं पालनहार भगवान श्रीहरि विष्णु की विनय पूर्वक स्तुति की गई है ताकि जीवन में धन-सम्पदा, विद्या एवं बुद्धि और भगवद कृपा मिलती ही रहे. हथेलियों के दर्शन का वास्तविक भाव यह भी है की मनुष्य को हमेशा अपने कर्म पर विश्वास रख, कर्मप्रधान जीवन जीना चाहिए. हमारे इन हाथों से कोई दुष्कर्म, किसी का बुरा कभी भी ना हो और सबकी मदद के लिए यह हाथ आखिरी सांस तक आगे आते ही रहे. इसका दूसरा भाव यह भी निकलता है की मनुष्य सदैव भगवान से जुड़ा रहे और आत्मा से परमात्मा का यह रिश्ता ऐसे ही बना रहे.

Tags: Astrology, Dharma Aastha, Dharma Culture

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