रिपोर्ट – सोनाली भाटी
जालौर. राजस्थान अपने खान-पान के लिए प्रसिद्ध है. यहां का जलवायु शुष्क है और जमीन रेतीली. इसलिए यहां के वाशिंदों के जीवन यापन का अनूठा तरीका इनके खान-पान में भी दिखता है. इसी खान-पान की फेहरिस्त में से एक है पंचकूटा, जिसे राजस्थान की शाही सब्जी का दर्जा हासिल है. जी हां, पंचकूटा ऐसी सब्जी है, जो पांच चीजों को मिलाकर बनती है. इसके पांचों अवयव प्राकृतिक रूप से राजस्थान की इस रेतीली जमीन में उगते हैं. कभी इसे जंगली सब्जी कहा जाता था, लेकिन आज इसके भाव आसमान को छू रहे हैं.
जालौर वासियों को इस पंचकूटे की सब्जी का स्वाद बेहद पसंद है. आम तौर पर इसे शीतला सप्तमी के दिन तैयार किया जाता है, लेकिन इसका स्वाद इतना बेहतरीन है कि जालौरवासी सालोंभर इसे तैयार कर सेवन करते हैं. आइए जानते हैं क्या है यह पंचकूटा सब्जी…..
पांच सब्जियों का मेल है पंचकूटा
पंचकूटा सब्जी पांच अलग-अलग सब्जियों का मेल है, जिनमें सांगरी, केर, कुमटिया, गुंदा और साबुत लाल मिर्च शामिल होती हैं. यह खास तरह की सब्जी सुखाकर तैयार होती है, जिसके कारण इसे लंबे समय तक संरक्षित रखा जा सकता है. अगर इनकी कीमत की बात की जाए तो सांगरी ₹1000 प्रति किलो, कुमटिया ₹400 प्रति किलो, गुंदा ₹400 प्रति किलो, साबुत लाल मिर्च ₹350 रुपए मिलती है.
ऐसी होती है तैयार
पंचकूटे बनाने के लिए सभी सूखी सब्जियां रात में पानी में भिगोकर रखी जाती हैं. सुबह उसे दोबारा पानी में उबाला जाता है और फिर निकाल कर सुखा लिया जाता है. इसके बाद तेल में हींग और जीरा डाल कर छौंक लगाई जाती है, जिसके बाद पंचकूटा तैयार होता है. यह 7 से 10 दिन तक खराब नहीं होता है. राजस्थान में खास अवसरों, शादी समारोहों में पंचकूटा तैयार की जाती है. हलवाई अपने पसंद के अनुसार इसमें काजू, बादाम आदि भी डालते हैं. विदेशी पर्यटकों को भी यह सब्जी बहुत पसंद आती है. पंचकूटा शाही सब्जी के रूप में जानी जाती है. यह राजस्थान की एकमात्र ऐसी सब्जी है जो सूखे मेवों से भी महंगी है.
इसलिए सबसे महंगा है पंचकूटा
पंचकूटे को तैयार करने के लिए उपयुक्त सभी सब्जियां अलग-अलग सीजन में उगती है. इन पांचों चीजों को इकट्ठा करने से लेकर इनको सुखाने में लगता है. समय और सूखने के बाद इन सभी चीजों का वजन आधा हो जाता है. यह सब्जियां केवल मारवाड़ में ही होती हैं. पंचकूटा को लेकर कहावत पूरे मारवाड़ में प्रसिद्ध है, ‘कैर, कुमटिया, सांगरी, काचर, बोर, मतीर तीनूं लोकां नहं मिले तरसे देव अखिर’. इसका मतलब है कि पंचकूटे यह व्यंजन राजस्थान के अलावा तीनों लोकों में कहीं नहीं मिलते. देवता भी इसके स्वाद के लिए तरसते हैं. लोग इसे ईश्वर का वरदान मानते हैं, क्योंकि यह मरुस्थलीय वनस्पति अपने आप उगती है.
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FIRST PUBLISHED : January 25, 2024, 16:59 IST