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नई दिल्ली: तमिलनाडु के बिजली और आबकारी मंत्री वी. सेंथिल बालाजी जिन्हें आमतौर पर विवादों से घिरी एक शख्सियत के तौर पर जाना जाता है. प्रवर्तन निदेशालय द्वारा उनकी नाटकीय गिरफ्तारी ने एक बार फिर उन्हें चर्चा में ला खड़ा किया है. उन पर 2011 से 2016 के बीच जब वह परिवहन मंत्री थे, उस दौरान के एक नौकरी रैकेट को लेकर जांच चल रही है.
2021 में जब डीएमके सत्ता में आई उसके बाद से इस कदम को एक बड़े पॉवर प्ले के तौर पर देखा जा रहा है. इस गिरफ्तारी के बाद बालाजी के अब तक के बचाव को बहुत बड़ा झटका लगा है. क्योंकि इससे वह पहले घोटाले में पीड़ितों के साथ समझौते की बात स्वीकार चुके हैं. जिससे अप्रत्य़क्ष तौर पर उनके खिलाफ भ्रष्टाचार और रिश्वत के अपराध की स्वीकृति को बल मिलता है.
बेहद दिलचस्प है बालाजी का राजनीतिक सफर
हालांकि डीएमके में मंत्री, बालाजी का राजनीतिक सफर काफी दिलचस्प रहा है. वह तमिलनाडु की पूर्व मुख्यमंत्री जे जयललिता और उनकी विश्वासपात्र वीके शशिकला के कट्टर अनुयायी थे. यहां तक कि वह खुद को उनका गुलाम कहते थे. जब जयललिता आय से अधिक संपत्ति के मामले में जेल गई थीं उस दौरान बालाजी का नाम संभावित मुख्यमंत्री के तौर पर भी उभरा था. जबकि वह अपने कैबिनेट में बाकी सदस्यों से काफी जूनियर थे.
बालाजी के राजनीतिक हथकंडे
2016 में जब जयललिता की मृत्यु हुई, वह जयललिता की पूर्ववर्ती आरके नगर सीट पर जीत में अहम भूमिका निभाने के बाद टीटीवी अम्मा मक्कल मुनेत्र कड़गम में शामिल हो गए. AIADMK का हिस्सा होने के बावजूद बालाजी को लेकर कहा जाता है कि उन्होंने आरके नगर में दिनाकरन के पूरे अभियान की पैसों से मदद की थी. ऐसा भी माना जाता है कि इस प्रतिष्ठित सीट पर गुप्त रूप से योजनाबद्ध तरीके से जीत हासिल करने के पीछे उनका दिमाग था.
बालाजी को दिनाकरन की सीट पर जीत के लिए उस नौटंकी का भी जिम्मेदार माना जाता है, जिसमें मतदाताओं को हाथों में 20 रुपये देकर चुनाव के बाद प्रति व्यक्ति 6000 रुपये देने का वादा किया गया था. जिसके बाद उत्साही मतदाताओं ने AMMK के लिए मतदान किया, लेकिन उनके हाथ में 6000 रुपये कभी नहीं लगे बल्कि उन्हें महज 20 रुपये से ही संतोष करना पड़ा.
बालाजी का दलबदल
2018 में उन्होंने डीएमके की ओर रुख किया. लेकिन गौर करने वाली बात यह है कि डीएमके में शामिल होने से पहले. एम. के. स्टालिन ने ही उनके खिलाफ अभियान चलाया था और 2016 के चुनाव अभियान के दौरान बालाजी पर भ्रष्टाचार और जमीन हड़पने के कई आरोप लगाए थे.
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इस तरह हुआ राजनीति में प्रवेश
बालाजी ने 21 साल की उम्र में राजनीति में प्रवेश किया, 1996 और 2002 में वह करूर पंचायत संघ के सदस्य चुने गए. चार साल बाद 2006 में करूर विधानसभा सीट पर AIADMK की ओर से लड़े और विधायक चुने गए. जयललिता और शशिकला के साथ उनकी निकटता ने उनके राजनीतिक करियर को आगे बढ़ाने में मदद की. 2011 से 2015 तक वह परिवहन मंत्री रहे.
2015 में बालाजी को तब बड़ा झटका लगा जब उन्हें अनौपचारिक ढंग से मंत्रिमंडल से हटा दिया गया. अपनी मजबूत राजनीतिक इच्छाशक्ति के लिए मशहूर बालाजी ने 2016 में एक बार फिर से अरवाकुरिची से चुनाव लड़ा. लेकिन इसी साल जयललिता की मृत्यु के बाद वह AMMK में शामिल हो गए. लेकिन आगे चलकर उनका पार्टी के साथ मतभेद हो गया और दिसंबर 2018 में वह स्टालिन के नेतृत्व वाली डीएमके में शामिल हो गए. 2019 में उन्हें अवारकुरिची सीट पर होने वाले उपचुनाव के लिए पार्टी ने उम्मीदवार चुना और उन्होंने इस सीट पर जीत हासिल की.
2021 में हुई डीएमके की जीत ने उनकी राजनीतिक स्थिति को और मजबूत किया. इस चुनाव में वह एक बार फिर करूर विधानसभा क्षेत्र से विधायक बने. मई 2021 में तमिलनाडु में डीएमके की सरकार के गठन के बाद उन्हें बिजली के साथ साथ दो विभाग मद्यनिषेध और उत्पाद शुल्क का भी मंत्री बनाया गया.
बालाजी और विवाद का चोली दामन का साथ
इन मंत्रालयों से उनके राजनीतिक सफर में एक नया पड़ाव आया, जहां उन्हें राज्य प्रशासन में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने का मौका मिला. लेकिन बालाजी के राजनीतिक सफर में उनका और विवादों का चोली दामन का साथ रहा है. 2021 में चुनाव के दौरान दाखिल हलफनामे में उन पर 30 एफआईआर होने का खुलासा हुआ. यही नहीं 2014 में भर्ती घोटाले के आरोपों का सामना करना पड़ा, जिसमें परिवहन विभाग की नौकरियों के उम्मीदवारों ने उन पर पैसे लेकर नौकरी नहीं देने का आरोप लगाया. यह मामला जब मद्रास उच्च न्यायालय पहुंचा तो वहां पर यह कहकर खारिज कर दिया गया कि उनका शिकायतकर्ताओं के साथ समझौता हो गया है.
2021 में जब तमिलनाडु बिजली संकट से जूझ रहा था, तब उनका यह बयान काफी चर्चित हुआ था जिसमें उन्होंने बिजली लाइनों पर चल रही गिलहरियों को इस संकट की वजह बता दिया था. तब उनका नाम ही अनिल बालाजी (तमिल में अनिल मतलब गिलहरी होता है) पड़ गया था. इसी साल ईडी ने भी मामले की जांच शुरू की और उनसे संबंधित दस्तावेजों के लिए अनुरोध किया. हालांकि उच्च न्यायालय ने दस्तावेजों की जांच की तो अनुमति दी लेकिन उनकी कॉपी करने पर रोक लगा दी गई.
साल दर साल लगे आरोप
बालाजी पर नवंबर 2014 में राज्य संचालित मेट्रोपोलेटिन ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन से जुड़े एक भर्ती अभियान में हुए भ्रष्टाचार में शामिल होने का आरोप है, वह तब इसी विभाग में मंत्री थे. विवाद तब सामने आया जब निगम ने ड्राइवर, कंडक्टर, ट्रेडमैन और इंजीनियर सहित विभिन्न पदों के लिए पांच अलग-अलग विज्ञापन दिए. अक्टूबर 2015 में देवसगयम नाम के एक शख्स ने शिकायत दर्ज की गई कि उनके बेटे की नौकरी के लिए पलानी नाम के कंडक्टर ने उनसे 2.6 लाख रुपये लिए लेकिन उनके बेटे को कभी नौकरी मिली नहीं. और उनके पैसे भी डूब गए. हालांकि इस शिकायत में बालाजी नहीं फंसे.
मामला पहुंचा सर्वोच्च न्यायालय
आगे चलकर, मार्च 2016 को गोपी नाम के शख्स ने इसी तरह की शिकायत दर्ज की. गोपी का आरोप था कि उसने बालाजी से कथित रूप से जुड़े दो लोगों को कंडक्टर की नौकरी के लिए 2.4 लाख रुपये दिए थे. गोपी ने अपनी शिकायत की जांच के लिए मद्रास उच्च न्यायालय में मामला दर्ज किया. शुरुआत में उच्च न्यायालय ने समन को रद्द कर दिया लेकिन बाद में जब मामला सर्वोच्च न्यायालय में पहुंचा, तो उन्होंने ईडी को जांच जारी रखने और संबंधित दस्तावेजों का निरीक्षण करने के अधिकार दे दिए. अहम बात यह है कि अदालत ने इस मामले की जांच के लिए विशेष टीम के बालाजी के आवेदन को भी खारिज कर दिया.
अदालत ने बाद में यह सुझाव देते हुए की उनकी शक्ति और स्थिति ने उन्हें अपने कार्यकाल के दौरान अभियोजन पक्ष से बचा लिया था, बालाजी के उन दावों को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने अपने पर लगाए गए आरोपों को राजनीति से प्रेरित बताया था.
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Tags: M. K. Stalin, Tamilnadu, Tamilnadu news
FIRST PUBLISHED : June 15, 2023, 11:54 IST
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