Home Health स्कूली बच्चों की नींद नहीं हो पा रही पूरी! डिप्रेशन के हो रहे शिकार, डॉक्टर बोले 8 घंटे सोने पर ही बनेगी बात

स्कूली बच्चों की नींद नहीं हो पा रही पूरी! डिप्रेशन के हो रहे शिकार, डॉक्टर बोले 8 घंटे सोने पर ही बनेगी बात

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स्कूली बच्चों की नींद नहीं हो पा रही पूरी! डिप्रेशन के हो रहे शिकार, डॉक्टर बोले 8 घंटे सोने पर ही बनेगी बात

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Lack Of Sleep Effects: आज की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में समय पर सोना और समय पर जागना एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है. खासतौर पर स्कूली जाने वाले बच्चों के लिए. नीति आयोग के सदस्य (स्वास्थ्य) डॉ. (प्रो.) वी.के. पॉल ने सोमवार को राष्ट्रीय राजधानी में नींद की कमी पर एक अध्ययन जारी करते हुए कहा कि हमारे स्कूली बच्चों में से एक-चौथाई उचित नींद से वंचित हैं, जिससे उनमें मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं का खतरा बढ़ रहा है. स्वास्थ्य मंत्रालय के अंतर्गत राष्ट्रीय स्वास्थ्य प्रणाली संसाधन केन्द्र (एनएचएसआरसी) और सर गंगा राम अस्पताल द्वारा संयुक्त रूप से किए गए अध्ययन में, 12-18 वर्ष की आयु के स्कूल जाने वाले किशोरों में नींद की कमी की व्यापकता और यह किस प्रकार संज्ञानात्मक कार्यों को प्रभावित करती है, इस पर फोकस किया गया.

स्क्रीन टाइम बन रहा सबसे बड़ी बाधा

पॉल ने कहा, “नींद मस्तिष्क के कामकाज, मजबूत प्रतिरक्षा, श्रेष्ठ प्रदर्शन और स्मृति के लिए महत्वपूर्ण है. यह एक मौलिक जैविक आवश्यकता है.” उन्होंने कम से कम सात-आठ घंटे की नींद लेने की सलाह दी. उन्होंने कहा, “स्कूली बच्चों में नींद की कमी का स्वास्थ्य पर प्रभाव आज के शैक्षणिक माहौल में एक महत्वपूर्ण मुद्दा बन गया है.” उन्होंने भटकावों, विशेष रूप से स्क्रीन टाइम, का जिक्र किया, जो नींद में महत्वपूर्ण बाधा है.

गुणवत्तापूर्ण नींद के लिए किया आग्रह

पॉल ने “बच्चों को अधिक बुद्धिमान, सक्षम और कुशल बनाने के लिए सकारात्मक नींद को बढ़ावा देने की आवश्यकता” पर बल दिया. विशेषज्ञ ने स्वास्थ्य पेशेवरों और नीति निर्माताओं से देश में बच्चों और युवाओं की नींद की स्थिति में सुधार लाने के लिए मिलकर काम करने का आग्रह किया. इस बीच, अध्ययन के निष्कर्षों से पता चला कि 22.5 प्रतिशत किशोर नींद से वंचित हैं, जो मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण चिंता का विषय है.

60% प्रतिभागियों में अवसाद के लक्षण

अध्ययन में शामिल 60 प्रतिशत प्रतिभागियों में अवसाद के लक्षण दिखे जबकि 65.7 प्रतिशत किशोरों में कम से मध्यम स्तर की संज्ञानात्मक कमजोरी देखी गई. अध्ययन से पता चला है कि स्क्रीन टाइम के अतिरिक्त, स्कूल की दिनचर्या और पारिवारिक आदतें भी नींद की गुणवत्ता को प्रभावित करती हैं और दिन के समय में अस्वस्थता में योगदान करती हैं.

मेंटल हेल्थ पर पड़ रहा प्रभाव

अस्पताल में बाल स्वास्थ्य संस्थान की वरिष्ठ सलाहकार किशोर शिशु रोग विशेषज्ञ डॉ. लतिका भल्ला ने कहा, “अध्ययन के निष्कर्ष एक चिंताजनक पैटर्न को उजागर करते हैं. कई किशोरों को पर्याप्त नींद नहीं मिल रही है, जो खराब एकाग्रता, भावनात्मक असंतुलन और खराब शैक्षणिक प्रदर्शन से निकटता से जुड़ा हुआ है.”

अध्ययन में इस बात पर जोर दिया गया कि स्कूलों, परिवारों और नीति निर्माताओं को किशोरों के विकास के लिए नींद संबंधी स्वास्थ्य को आवश्यक मानने की तत्काल आवश्यकता है. यह बच्चों और किशोरों के बीच मानसिक स्वास्थ्य हस्तक्षेप की तत्काल आवश्यकता पर भी प्रकाश डालता है.

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