Tuesday, March 11, 2025
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स्टार्टअप की दुनिया के कड़वे सच उजागर करता अश्नीर ग्रोवर का ‘दोगलापन’


दोगलापन शब्द कानों में पड़ते ही आदमी के चरित्र का भान है. ऐसा आदमी जो अंदर से कुछ और बाहर से कुछ और होता है, दोगला कहलता है. ऐसे आदमी की प्रवृति को दोगलापन कहते हैं. आजकल बाजार में भारत पे (Bharat Pe) के सह-संस्थापक अश्नीर ग्रोवर की किताब ‘दोगलापन’ बाजार में छाई हुई है. हालांकि, खुद अश्नीर भी इन दिनों सुर्खियों में छाए हुए हैं. हालांकि, किताब में किसी के चरित्र के दोगलेपन की बात नहीं कही गई है, बल्कि यहां चर्चा है कारोबारी दुनिया के दोगलेपन की.

किसी समय में युवाओं में कामयाबी का आइकन बने अश्नीर ग्रोवर अब अपनी बेबाक टिप्पटियों और विवादों के कारण जाने जाते हैं. दिल्ली के मालवीय नगर के एक रिफ्यूजी लड़का आगे चलकर इन्वेस्टमेंट बैंकर बनता है, भारत को दो मशहूर यूनिकॉर्न खड़े करता है, मशहूर टीवी शो शार्क टैंक इंडिया का जज बनकर घर-घर में अपनी विशेष पहचान बनाता है और फिर बड़े-बड़े विवादों में घिरता है.

कामयाबी की चढ़ाई और विवादों से भरा दामन, अश्नीर ग्रोवर ने ये तमाम किस्से अपनी ‘पुस्तक’ दोगलापन में शुमार किए हैं. पेंग्विन बुक्स से यह पुस्तक पहले अंग्रेजी में आई थी. पुस्तक के प्रकाशित होते ही इसने धूम मचा दी और कुछ ही दिनों में बेस्टसेलर्स साबित हुई. अंग्रेजी संस्करण के बाद इसका हिंदी वर्जन बाजार में आया. हिंदी संस्करण भी बाजार में आते ही छा गया. दोगलापन का अंग्रेजी से हिंदी में अनुवाद किया है पत्रकार और लेखक मंजीत ठाकुर ने.

अश्नीर ग्रोवर की यह किताब जहां उनके निजी जीवन और संघर्षों के बारे में बताती है, वहीं स्टार्टअप की दुनिया के कड़वे सच भी उजागर करती है. कहानी शुरू होती है दिल्ली के मालवीय नगर से. अश्नीर के दादा-दादी भारत-पाकिस्तान बंटवारे में पाकिस्तान के मुल्तान जिले से दिल्ली में आए. मालवीय नगर के रिफ्यूजी कॉलोनी उनकी शरणस्थली बनी. यहीं मकान नंबर नब्बे बीस में नंदलाल ग्रोवर के पोते के रूप में अश्नीर का जन्म होता है.

‘मालवीय नगरः नींव’ चैप्टर में अश्नीर का बचपन है तो ‘तेरी हवा कितनी है’ में अश्नीर के आईआईटी में दाखिले, वहां की रैगिंग टॉपर बनने की कहानी है. इससे अगले चैप्टर में कहानी शुरू होती है मुहब्बत और रोमांस की. जी हां, मैनेजमेंट में दाखिले के लिए अश्नीर कैलाश कॉलोनी स्थित एक कोचिंग सेंटर में दाखिला लेते हैं और वहां अपने ही बैच की माधुरी जैन पर फिदा हो जाते हैं. यहां अश्नीर माधुरी के साथ डेट के बारे में लिखते हैं- “परिवार के नजरिए से, हम दोनों पूरी तरह से अलग थे. मैं एक मांसाहारी पंजाबी परिवार का था और वह पूर्ण शाकाहारी बनिया जैन थीं. मैं नौकरीपेशा पारिवारिक पृष्ठभूमि का था, जबकि उसका परिवार स्थापित कारोबारी था. मैं 200 गज के फ्लैट में रहता था, और उसके परिवार का काफी बड़ा बंगला था. मैं दिल्ली जैसे मेट्रो सिटी में पला-बढ़ा था और वह पानीपत की थी.”

खैर तमाम विभिन्नताओं के बाद भी प्रेम कहानी आगे बढ़ती है और दोनों शादी के बंधन में बंध जाते हैं. अब शुरू होती अश्नीर ग्रोवर के एक सफल कारोबारी और इन्वेस्टमेंट बैंकर बनने की कहानी. इस सफर में हम कई ऐसी दिलचस्प कहानियों से होकर गुजरते हैं जो देखने और सुनने में एकदम सपाट और आम-सी कहानी हैं, लेकिन उनका असर दूर तलक दिखलाई देता है. जैसे गोफर्स पर हुए 500 रुपये के मुकद्दमे पर 25 लाख का खर्चा. मामला कुछ इस तरह से है जब आईआईटी दिल्ली के एक सहपाठी के कहने पर अश्नीर उनके स्टार्टअप गोफर्स का हिस्सा बन गए. 80 लाख रुपये की नौकरी छोड़कर अश्नीर 40 लाख रुपये की तनख्वाह पर एक छोटे से गोदाम में बने गोफर्स के ऑफिस का हिस्सा बन गए.

मामला यह था कि अश्नीर के कंपनी ज्वाइन करने से एक दिन पहले ही गोफर्स को कुल 30 ऑर्डर मिले थे. इनमें से एक ऑर्डर में गड़बड़ हो गई. किसी कपूर नाम के एक व्यक्ति ने गोफर्स पर लिस्टिड ऑर्गेनिक सब्जी व्यवसाय से 500 रुपये की सब्जियों का ऑर्डर दिया. मैनेजर ने ऑर्गेनिक सब्जी की सप्लाई न करके नियमित सब्जी दुकानदार से सब्जियां भेज दीं. कपूर साहब को यह देखकर बहुत गुस्सा आया और उन्होंने पुलिस में धोखाधड़ी का मामला दर्ज करा दिया. इसमें गोफर्स के दो निदेशक अलबिंदर सिंह ढींढसा और सह-संस्थापक सौरभ कुमार के खिलाफ मामला दर्ज कराया. यह मुकद्दमा सुप्रीम कोर्ट तक गया और मामले को रद्द कराने में 25 लाख रुपये खर्च करने पड़े थे.

इस पुस्तक में पाठकों स्टार्टअप, बैंकर्स और कारोबारी दुनिया के कई दिलचस्प किस्से पढ़ने को मिलेंगे.

पहले बैंकर को मारो
बैंकर की नजर में एक ग्राहक की हैसियत क्या होती है, अश्नीर ने बड़े ही रोचक ढंग से बताया है. यहां अश्नीर लिखते हैं- बैंक खलिहानों की तरह होते हैं जहां ग्राहक सिर्फ कारोबार के लिए ही प्रासंगिक होते हैं. बैंक एक जगन्नाथ का रथ है, सब एम्प्लाई हाथ लगाकार खड़े हैं, चला कौन रहा है पता नहीं.

जहां हर दूसरा पेशा अपने ग्राहकों को लुभाने की कोशिश करता है, वहीं बैंक अपना व्यवसाय अपने ही ग्राहकों डराने के सिद्धांत पर चलाते हैं. यहां लेखक लिखते हैं- “मैं तो यह भी कहूंगा कि अगर सामने से सॉंप और बैंकर आ रहे हो तो बैंकर को लट्ठ मार दो. आपके बचने से मौके ज्यादा रहेंगे.”

नौकरी करके कोई रईस नहीं बना
किताब में अश्नीर कई कटु सच्चाइयों से भी अपने पाठकों को रूबरू कराते हैं. वह कहते हैं- मैं कोई नौकरीविरोधी आदमी नहीं हूं. आखिर मैंने खुद नौकरी में नौ साल गुजारे हैं. मेरा तजुर्बा कहता है कि नौकरी करते हुए आप बेशक बढ़ती महंगाई के साथ तालमेल मिला सकें और अपना जीवनस्तर बनाए रख सकें, लेकिन उस जिंदगी को कायदे से जी नहीं पाएंगे. अगर आप एक बेहतर जीवनस्तर हासिल करना चाहते हैं तो आपको नियमित आय के फंदे से बचकर निकलना होगा.

कुल मिलाकर यह पुस्तक आपके अंदर एक कारोबारी बनने का बीज डालने का काम करती है. किसी के जीवन के संघर्ष और नाकामी आपके जीवन में कामयाबी के सूत्र बन सकते हैं.

Tags: Books, Hindi Literature, Hindi Writer, Literature



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