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रिपोर्ट- मनमोहन सेजू
बाड़मेर. फास्ट फूड के इस दौर में हमारे बड़े बुजुर्गों के हाथों का ज़ायका गायब हो रहा है. लेकिन कुछ लोगों ने इसे बचा रखा है. दादी नानी की रेसिपी सीखकर उससे बाजार तक पहुंचा दिया है और अच्छा खासा व्यवसाय कर रहे हैं. बाड़मेर की हीरा प्रजापत भी उनमें से एक नाम है.
बचपन में अपनी नानी के हाथों से बने अचार को खाकर उंगलियों को चाटने वाली हीरा को लगा नानी के अचार का जायका घर से निकलकर बाकी लोगों तक पहुँचे. बस उसने इसी अचार का स्टार्टअप शुरू कर दिया. हीरा का मिट्टी के बर्तन बनाने का पुश्तैनी काम है. लेकिन उसके साथ हीरा ने अचार बनाना शुरू कर दिया. आज हीरा सफल व्यवसायी हैं. घर घर में उनका अचार पहुंच चुका है.
हीरा अब हीरा बन गयी हैं
हीरा प्रजापत बाड़मेर शहर के तिलक नगर में रहती हैं. आज वो इसी देसी नुस्खे से हरी मिर्ची, गाजर, हल्दी, अदरक, लाल मिर्ची, लहसुन, नीबू और केर-सांगरी का अचार बनाती हैं. इसकी खपत हाथों हाथ हो जाती है. अचार बनाने के साथ वो मिट्टी के बरतन बनाने का अपना पुश्तैनी काम भी जारी रखे हुए हैं. रंगों के पर्व पर वह हर्बल गुलाल भी बनाती हैं जिसे लोग काफी पसंद करते हैं.
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अचार नहीं ये औषधि है
हीरा प्रजापत अपना अचार 300 रुपये प्रति किलो के हिसाब से बेचती हैं. एक सीजन में वो करीब 50 किलो अचार बेच चुकी हैं. वो राजस्थान के देशी व्यंजन राबड़ी और खिचिया भी बनाकर बेच रही हैं. वो बताती हैं बरसों पहले का व्यंजनों का जो टेस्ट होता था वह लोग धीरे धीरे भूल रहे हैं. उसी टेस्ट को वह जिंदा रखने के लिए जुटी हुई हैं. अचार महज खाने की चीज नहीं, विभिन्न औषधीय चीज़ों का मेल है जिसके कारण शरीर की कई तरह की बीमारियों से निजात मिलती है.
हीरा के अचार क्यों हैं खास
बाजार में उपलब्ध अचारों में तेल और नमक बहुत ज्यादा होता है. वो शरीर के लिए भी नुकसानदेह होता है. इसलिए पारम्परिक पद्धति औऱ रेसिपी से बनाया गया हीरा का अचार लोग बहुत पसंद कर रहे हैं. यह अचार एक साल तक खराब नहीं होता है.
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Tags: Barmer news, Food business, Food Recipe, Local18
FIRST PUBLISHED : March 1, 2024, 16:18 IST
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