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हाइलाइट्स
भारत व विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में खाद्य रंग की जानकारी मिलती है.
भोजन या खाद्य पदार्थों में रंगों का उपयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है.
Swad ka Safarnama: फूड कलर (Food Colour) का आजकल दुनिया में जबर्दस्त प्रचार-प्रसार हो रहा है और इनका प्रयोग भी लगातार बढ़ रहा है. असल में फूड कलर का इस्तेमाल कर किसी भी डिशेज का नेचुरल कलर बढ़ाया जा सकता है, साथ ही फूड को सजावटी व सुंदर भी बनाया जा सकता है. विशेष बात यह भी है कि फूड में मिले कलर भूख को उत्तेजित भी कर देते हैं और आहार में ताजगी का अहसास भी कराते हैं. लेकिन बड़ा सवाल यही है कि क्या ये फूड कलर शरीर के लिए हानिकारक तो नहीं है. क्या इनका उपयोग किसी बीमारी को न्यौता तो नहीं देता है? अब तो फूड कलर के बिना आहार व पेय पदार्थ ‘फीके’ नजर आते हैं।
नेचुरल व सिंथेटिक कलर हैं रिवाज में
भोजन या खाद्य पदार्थों में रंगों का उपयोग हजारों वर्षों से किया जा रहा है. वर्षों पहले ही मनुष्य रंगों की कद्र जान चुका था इसलिए खाद्य पदार्थों के अलावा शरीर व कपड़ों को रंगने, विशेष उत्सवों आदि में वह सालों से रंगों का प्रयोग कर रहा है. कुछ कलर ऐसे भी होते हैं जो भोजन का रंग तो बदल देते हैं, साथ ही उसका स्वाद भी तब्दील कर देते हैं. असल में प्राचीन काल में मनुष्य प्रकृति से रंग लेता था और उसमें कोई मिलावट नहीं करता था. इस कारण वे किसी प्रकार का नुकसान नहीं पहुंचाते थे, बाद में उसने कृत्रिम (Synthetic) रंग बनाने शुरू कर दिए, जो बेहद चमकदार और भड़कीले थे, इन रंगों का प्रयोग भी भोजन में किया जा रहा था. चूंकि यह नेचुरल नहीं थे, इसलिए सवाल खड़े हो गए कि क्या यह रंग मनुष्य के शरीर के लिए नुकसानदायक तो नहीं है. यह बहस आज भी जारी है ओर इसे लेकर किंतु-परंतु भी लगातार चल रहे हैं.
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कहां से प्राप्त किए जाते हैं यह कलर
पहले यह जान लें कि प्राकृतिक और सिंथेटिक कलर क्या है और इन्हें कैसे प्राप्त किया जा सकता है. प्राकृतिक (Natural) रंग वे हैं जो पेड़-पौधों, फलों, सब्जियों आदि से प्राप्त किए जा सकते हैं. भारत व विदेश के प्राचीन ग्रंथों में इस बात का जिक्र है कि मनुष्य कौन सा रंग किस तत्व से प्राप्त करता था. उदाहरण के तौर पर बीज, फल, सब्जियां, शैवाल और कीड़ों से आते हैं. अगर और डिटेल में जाएं तो पीला, नारंगी आदि को खुबानी, गाजर टमाटर में पाए जाने वाले कैरोटीनॉयड से प्राप्त किया जा सकता है.

भारत व विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में खाद्य रंग की जानकारी मिलती है. Image-Canva
लाल, नीला और बैंगनी रंग केसर, जामुन, चुकंदर, रसभरी और लाल गोभी आदि में पाए जाने वाले एंथोसायनिन से प्राप्त होता है. जबकि हरा रंग सभी प्रकार की पत्तियों, साग और टहनियों से पाया जा सकता है, जिसे क्लोरोफिल कहा जाता है. विशेष बात यह है कि सबसे शानदार पीला रंग वर्षों से हल्दी से प्राप्त किया जा रहा है. हल्दी में और रंग मिलाकर कई तरह के कलर मिल सकते हैं. पुराने समय में लाल चंदन भी रंग का प्राकृतिक सोर्स रहा है.
आहार व अन्य पदार्थों में हजारों वर्षों से प्रयोग हो रहा है
भारत व विश्व की प्राचीन सभ्यताओं में खाद्य रंग की जानकारी मिलती है. उपनिषदों में भगवान को पेश किए जाने वाले प्रसाद में विभिन्न प्राकृतिक रंग मिलाने का रिवाज रहा है. करीब 3 हजार वर्ष पूर्व लिखे गए आयुर्वेदिक ग्रंथ ‘चरकसंहिता’ में विभिन्न औषधियों में स्वाद भरने व दृष्टिमधुर बनाने के लिए प्राकृतिक रंग मिलाए जाने की जानकारी दी गई है. इस ग्रंथ में यह भी बताया गया है कि विभिन्न प्रकार की मदिराओं को रंगीन बनाने के लिए प्राकृतिक रंगों का प्रयोग किया जाता था. फूड हिस्टोरियन भी जानकारी देते हैं कि मिस्र में पौधों के रंगों का उपयोग शराब, भोजन, कपड़े और यहां तक कि त्वचा के लिए प्राकृतिक रंगों के रूप में किया जाता था.
विशेष बात यह है कि भोजन आदि में सिंथेटिक रंगों का प्रयोग 19वीं शताब्दी में शुरू हुआ. वर्ष 1856 में पहली बार ब्रिटिश रसायनशास्त्री विलियम हेनरी पर्किन ने पहला नीला सिंथेटिक रंग बनाया. उसके बाद विभिन्न विधियों से और भी रंग बनाए गए. चूंकि यह लेबोट्री में बनाया गया था, इसलिए शुरू से ही यह सवाल खड़े होने लगे कि यह कलर रंगाई के लिए तो ठीक है, क्या यह भोजन में ‘रंग भरने’ के लिए भी ठीक रहेगा. वैसे बाद में ऐसे रंग भी ईजाद किए गए, जिनके बारे में दावा किया गया कि वे शरीर के लिए नुकसानदायी नहीं है. इनका इस्तेमाल, बटर, आइसक्रीम, पेय पदार्थों, लिकर, मिठाइयों, कैंडीज, मेडिसिन आदि में हो रहा है.
रंगों की क्वॉलिटी चेक करने के लिए कई संस्थाएं हैं
अब सवाल यह है कि क्या फूड कलर शरीर के लिए उपयोगी है और इनका सेवन करने से शरीर को किसी प्रकार का नुकसान तो नहीं हो रहा है. इस मसले पर विभिन्न देशों ने ऐसे विभाग बना रखे हैं जो इस बात की लगातार पड़ताल करते हैं कि खाद्य व अन्य पदार्थों में मिलाए जा रहे कलर शरीर को नुकसान तो नहीं पहुंचा रहे हैं. भारत में भी भारतीय खाद्य सुरक्षा और मानक प्राधिकरण (FSSAI) संस्था है जो इस बात की जांच करता है कि खाद्य पदार्थों आदि में मिलाए जा रहे फूड कलर क्वालिटी वाले हैं और उनका उचित अनुपात में प्रयोग किया जा रहा है.

नेचुरल कलर सिंथेटिक कलर के मुकाबले महंगे आते हैं. Image-Canva
एक रिपोर्ट बताती है कि पिछले 50 सालों में फूड कलर्स की खपत 500 प्रतिशत बढ़ गई है. लेकिन इस बात के कोई पुष्ट प्रमाण नहीं पाए गए हैं कि यह कलर शरीर के लिए कितने नुकसानदायी हैं. वैसे कंपनियां अपने प्रॉडक्ट के लेवल पर यह लिख देती हैं कि उनका पदार्थ एलर्जी का कारण भी बन सकता है और वह बच्चों के लिए संवेदशील हो सकता है.
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आकर्षण व ताजगी का अहसास ही दिलाते हैं रंग
फूड एक्सपर्ट व डायटिशियन अनिता लांबा कहती है कि असल में कोई भी फूड कलर हमारे शरीर को पौष्टिकता प्रदान नहीं करता है. वह कलर सिर्फ भोजन, आहार या ड्रिंक्स की ओर आकर्षित करने का एक माध्यम है. यह कलर फूड में ताजगी का भी अहसास दिलाते हैं. इसलिए लोग इन्हें खाने-पीने में परहेज नहीं करते हैं. जो ब्रांडेड फूड व पेय कंपनियां हैं, वे अपने प्रॉडक्ट में हानिरहित कलर प्रयोग में लाती हैं, इसलिए व शरीर को नुकसान नहीं पहुंचाते हैं. वैसे भी इनसे बचा नहीं जा सकता है. लेकिन उपयोग करते समय इनका लेवल जरूर पढ़ लें, क्योंकि वहां यह जानकारी जरूर होगी कि इसमें प्रयोग में लाया जाने वाला रंग शरीर के लिए हानिकारक है या नहीं. अगर आप घर में कोई ऐसी डिश बना रहे हैं, जिसमें कलर की जरूरत है तो इस बात का ध्यान रखें कि वह नेचुरल कलर होना चाहिए. ये कलर सिंथेटिक कलर की अपेक्षा महंगे तो आते हैं, लेकिन शरीर को परेशानियों से बचाने के लिए नेचुरल कलर ही प्रयोग में लाएं.
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FIRST PUBLISHED : August 13, 2023, 07:02 IST
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