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प्रेम-वात्सल्य के रिश्ते किसी मजहब के दायरे में नहीं समाते। फर्रुखाबाद में इसकी जीवंत मिसाल सामने आई जहां हिन्दू परिवार अपनी दादी सायरा की मौत पर न केवल बिलख-बिलख कर रोया बल्कि उनका अंतिम संस्कार और तीजे की फातेहा भी कराई। इस हिन्दू परिवार के मुखिया को 52 साल पहले सायरा और उनके शौहर ने बच्चे की तरह अपनाया था लेकिन उसे उसकी मूल उपासना पद्धति में ही बनाए रखा था। इलाके में दो धर्मों के एक परिवार की यह कहानी चर्चा में है।
रविवार को 85 साल की सायरा का निधन हुआ। उनके पौत्र अनिल, सुनील, मनोज, निपुण आदि ने मुस्लिम रीति रिवाज से उन्हें सुपुर्द ए खाक कराया। मंगलवार को तीजे की फातेहा कराई। इस परिवार की कहानी 1971 में शुरू हुई जब मनिहारी मोहल्ले के मुर्तजा हुसैन पत्नी सायरा के साथ कारोबार के लिए अंबेडकर नगर चले गए थे। वहां खादी आश्रम में ठेके पर काम करने लगे। वहीं उन्हें 16 साल का किशोर शंकर बाथम मिला। उसे मुर्तजा ने काम सिखाया। उस्ताद बन गए। दो साल बाद शंकर की शादी रामकुमारी से हो गई। इधर ठेका पूरा होने के बाद मुर्तजा फर्रुखाबाद लौट आए। कुछ ही दिन बाद शंकर भी सपत्नीक उस्ताद के पास आ गए। मुर्तजा ने बहुत समझाया पर शंकर नही माने।
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अंतत निसंतान मुर्तजा ने शंकर व उसकी पत्नी को साथ रख लिया। कुछ दिन में मुर्तजा ने छपाई कारखाना शुरू किया जो अच्छा चला। शंकर भी उसमें काम करते थे। वह मुर्तजा के बेटे की तरह सब संभालने लगे। मुर्तजा ने शंकर के नाम दो घर खरीदे पर सब साथ रहते थे। एक ही घर में पूजा पाठ आरती भजन कुरान पढ़ी जाती थी। 1984 में मुर्तजा का निधन हो गया, लेकिन शंकर और उनके चार बेटों, तीन बेटियों ने सायरा बेगम को मां और दादी की तरह ही माना।
रविवार को सायरा का निधन जयपुर में हो गया, जहां वह शंकर के बड़े बेटे-बहू के साथ इन दिनों रह रही थी। वे शव लेकर सोमवार को पहुंचे और मुस्लिम रीति रिवाज के साथ उसी कब्रस्तिान में सुपुर्द ए खाक किया, जहां मुर्तजा हुसैन को सुपुर्द ए खाक किया गया था। मंगलवार को शंकर के बच्चों ने दादी सायरा की तीज़े की फातिहा अपने घर पर कराई। शंकर के बेटों ने कहा- मुस्लिम रीति रिवाजों से अपनी बड़ी अम्मा के लिए सारी रस्में पूरी करेंगे। 20वां और 40वां भी कराएंगे।
हम मुस्लिम हैं वह हिंदू ही रहेगा
अनिल ने बताया कि हमारे पिता व मां जब दादी के पास आकर रहने लगे तो इसका विरोध बाबा के परिवार के लोगों ने किया था। वे लोग कहते थे कि यह मुसलमान हों, तभी साथ रखो। तब बाबा ने कहा था कि हम मुस्लिम हं, वह हिंदू है। वह हिंदू ही रहेगा और मेरे साथ ही रहेगा। विरोध हुआ तो मुर्तजा बाबा ने पुश्तैनी घर छोड़ दिया। अलग छावनी मोहल्ले में घर बनवाया और हमारे माता-पिता को साथ लेकर रहने लगे थे।
सायरा ने ही बच्चों की शादियां कराई
अनिल बाथम ने बताया कि सायरा दादी ने ही हम भाइयों-बहनों की शादियां कराईं। हमारे पिता शंकर 2005 में कहीं चले गए और नही लौटे। मां 2021 में गुजर गईं। दादी ही बुजुर्ग थीं। शंकर के बच्चों में बेटा अनिल, सुनील, मनोज विवाहित हैं। निपुण ने शादी नही की। शंकर की बेटियों में अनीता की कानपुर, ममता की लखनऊ, पिंकी की दिल्ली में शादी हुई है।
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