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जयपुर. राजस्थान के जलाबसार के रहने वाले निरानाराम चेतन राम चौधरी के लिए उसके नाम से मिलता जुलता नाम जीवन का सबसे कठिन समय लेकर आया. सात लोगों की हत्या के मामले में नारायण की जगह ‘निराना’ लिखा जाना उसे फंसी की तख्ते तक पहुंचाने के फरमान तक ले गया. नौ सालों में उसकी और परिजनों की कई फरियाद अदालतों ने खारिज कर दी. ऐसे में उसका हौसला टूट रहा था. निरानाराम कहता है कि जेल में हर दिन ऊगता हुआ सूरज एक सवाल लेकर आता था, क्या यह मेरे जीवन का आखिरी सूर्योदय तो नहीं? न्याय व्यवस्था के समक्ष यह बात साबित करने में 28 साल लग गए कि निरानाराम उस वक्त एक नाबालिग था और उसे गलत तरह से परिभाषित किया गया था. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर उसे पिछले महीने जेल से रिहा किया गया.
निरानाराम चेतन राम चौधरी का नाम नारायण और उम्र 22 साल लिखते हुए हत्या का आरोपी मान लिया गया था. यह नाम लिखने की बड़ी गलती थी. सात लोगों की हत्या के मामले में 1994 में नारायण के रूप में आरोपी बनाए जाने के बाद चार सालों में उसके लिए सजा-ए-मौत तक के प्रयास किए गए. 1998 में चौधरी को एक वयस्क मानते हुए फांसी की सजा सुना दी गई थी. 1999 से 2000 के बीच हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट से उसकी दोनों अपील रिजेक्ट कर दी गई. इसके साथ ही समीक्षा याचिका को भी खारिज करदी गई. यह उसकी टूटती उम्मीदों का दौर था.
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स्कूल की टीसी मिलने पर यकीन, फांसी नहीं हो सकती
अपने जीवन के बेहतरीन हिस्से में निरानाराम C-7432 के दोषी के रूप में पहचाना जाता रहा. उसे मौत की सजा तक सुना दी गई थी, लेकिन फिर भी वह इस उम्मीद में था कि शायद कुछ हो सकता है. जेल में उसने अपना समय पढ़ाई-लिखाई में बिताया. एक दिन उसने अपने परिजनों से स्कूल का ट्रांसफर सर्टिफिकेट भेजने के लिए कहा. तब उसे पहली बार अहसास हुआ कि जेल के रिकॉर्ड में वह अभी भी बहुत छोटा है. वह कहता है कि मुझे पता चला कि मैं घटना के समय मैं 12 साल का था और मुझे फांसी नहीं दी जा सकती थी.
जेल में रहकर ली समाजशास्त्र की मास्टर्स डिग्री
एक मेडिकल जांच में यह पक्का हो गया कि उसे घटना के वक्त जितना बड़ा दिखाया गया था उससे वह कहीं ज्यादा कम उम्र का था. इसके बाद अगले कुछ सालों में चौधरी और उसके परिजनों ने जेल के अधिकारियों और न्यायालयों को कई पत्र लिखे लेकिन उन्हें राहत नहीं मिली. निरानाराम कहते हैं हर अपील खारिज होने के बाद मैंने सोचा कि मैं हार नहीं मान सकता. मैं मर सकता हूं, लेकिन मैं लड़ते हुए मर जाऊंगा. उसने अब अपना समय किताबों में खपाना शुरू किया. इस बीच उसने जेल में ही अंग्रेजी पढ़ना शुरू किया. समाजशास्त्र में मास्टर्स डिग्री हासिल की. उसने केस लॉ और चेतन भगत के उपन्यास भी पढ़ना शुरू किए.
प्रोजेक्ट 39A के सहारे मिला बाहर आने का रास्ता
2014 में नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी के मृत्यु दंड मामलों के रिफॉर्म प्रोजेक्ट 39 A द्वारा निरानाराम की उम्र की पड़ताल करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई की अपील की गई. सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर जांच शुरू की गई तो पता चला कि घटना के समय वह लगभग साढ़े बारह साल का था. उसका नाम, स्कूल में दाखिले की तारीख, जन्म प्रमाण पत्र, अन्य पिछड़ा वर्ग जाति का प्रमाण पत्र और परिवार का राशन कार्ड दस्तावेज के रूप में पेश किए गए.
न्याय में देरी बताती है कि सिस्टम फेल है: श्रेया रस्तोगी
डेथ पेनल्टी लिटिगेशन प्रोजेक्ट की को-डायरेक्टर और सह संस्थापक श्रेया रस्तोगी कहती हैं कि इस सबके बावजूद कोर्ट को यह तय करने में 5 साल लग गए की घटना के वक्त आरोपी एक नाबालिग था. उसे जेल से रिहा करना यह इंगित नहीं करता कि सिस्टम काम कर रहा है बल्कि यह बताता है कि सिस्टम फेल है.
मां से मिला पर बोली समझने में हो रही थी मुश्किल
जेल की अंडा सेल में उसका वक्त बहुत धीमी गति से बीता, लेकिन दुनिया बहुत तेज़ी से बदल रही है. उसके गांव जलाबसार (राजस्थान) में चौधरी अपनी मां से 28 साल बाद मिला और अपनी राजस्थानी बोली को समझने में भी खुद को असमर्थ पा रहा था. उसने पिछले सप्ताह पहली बार पिज्जा चखा और अब वह विन डीजल की फिल्म के लिए और इंतजार नहीं करना चाह रहा था.
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Tags: Jaipur news, Rajasthan news
FIRST PUBLISHED : April 14, 2023, 13:00 IST
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