Monday, July 8, 2024
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2 गज जमीन न मिली, बहादुरशाह जफर जैसा हाल; कांग्रेस के संकट का वीरभद्र फैक्टर


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Himachal Pradesh Congress Crisis: हिमाचल प्रदेश में बड़ा सियासी भूचाल आया हुआ है। एक तरफ छह कांग्रेसी विधायकों ने बागी रुख अपना रखा है और बीजेपी के पाले में जा चुके हैं तो दूसरी तरफ राज्य की सुखविंदर सिंह सुक्खू सरकार से मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। मीडिया के सामने अपने इस्तीफे का ऐलान करने वाले विक्रमादित्य सिंह ने अपने पिता और भूतपूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह को अपमानित करने का भी आरोप मौजूदा मुख्यमंत्री सुक्खू पर लगाया है। प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान विक्रमादित्य सिंह अपने पिता को याद कर ना सिर्फ भावुक हो गए बल्कि उनकी तुलना आखिरी मुगल सम्राट बहादुर शाह जफर से भी कर डाली।

रोते हुए विक्रमादित्य सिंह ने कहा कि हिमाचल प्रदेश का विधानसभा चुनाव वीरभद्र सिंह के नाम और काम पर ही लड़ा गया। उनकी ही वजह से राज्य में कांग्रेस की सरकार बन सकी लेकिन दुख की बात है कि उनकी ही मूर्ति लगाने के लिए शिमला के मॉल रोड पर 2 गज जमीन मयस्सर नहीं हो सकी। उन्होंने खुले शब्दों में मुख्यमंत्री सुक्खू पर आरोप लगाया कि उन्होंने उनके पिता की मूर्ति लगाने के लिए जमीन आवंटित नहीं की।

इतना ही नहीं विक्रमादित्य ने अपने विभाग के कामकाज में भी मुख्यमंत्री के दखल देने का आरोप लगाया। उन्होंने कहा कि उनके विभाग में कामकाज पर नजर रखी गई, काम नहीं करने दिया गया। अन्य विधायकों की नाराजगी का जिक्र करते हुए उन्होंने कहा कि दूसरे विधायकों के साथ अनदेखी हुई है। सुक्खू सरकार में कई विधायकों को प्रताड़ित किया गया है। सिंह ने यह भी कहा कि हमने बार-बार इन मसलों  को पार्टी हाईकमान के सामने उठाया लेकिन कोई फा.दा नहीं हुआ। 

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विक्रमादित्य ने कहा कि 2022 के चुनावों में उनकी माता प्रतिभा सिंह और उस समय के नेता प्रतिपक्ष मुकेश अग्निहोत्री ने मिलकर प्रयास किए थे। वीरभद्र सिंह का नाम ना सिर्फ चुनावी मंचों पर इस्तेमाल किया गया था बल्कि कांग्रेस की तरफ से दिए गए विज्ञापनों में भी वीरभद्र सिंह की फोटो लगाई गईन थी। राज्य की जनता ने वीरभद्र सिंह के नाम पर कांग्रेस को वोट दिए थे लेकिन उनके लिए ही दो गज जमीन आवंटित नहीं की जा सकी।

बता दें कि बहादुर शाह जफर मुगल साम्राज्य के आखिरी बादशाह थे, जिन्होंने अंग्रेजों के खिलाफ 1857 की लड़ाई लड़ी थी। इससे गुस्साए अंग्रेजी हुकूमत ने उन्हें देश निकाला दे दिया था। वह अपने जीवन के अंतिम वर्षों में रंगून की जेल में बंद थे और वहीं उनकी मौत हो गई थी। बहादुर शाह जफर उर्दू शायरी भी करते थे। रंगून की जेल में कैद बहादुर शाह जफर ने अपने वतन की याद में एक गजल लिखी थी, जिसका आखिरी बंद काफी मशहूर हो गया। उन्होंने लिखा था- 

“कितना है बदनसीब ‘ज़फर’ दफ्न के लिए,

दो गज़ ज़मीन भी न मिली कू-ए-यार में।”



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