Saturday, December 14, 2024
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80 का गैंगवार, शिकागो से होने लगी थी गोरखपुर की तुलना…हरिशंकर तिवारी से घबराता था श्रीप्रकाश शुक्‍ला भी


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Harishankar Tiwari Story: 1971 में इटली के मिलान शहर में छोटे-छोटे गैंग बने। लूटपाट और मर्डर करते। वर्ष 1973 में इसी पर फिल्म बन गई। फिल्म में गैंगवार शब्द का प्रयोग हुआ था। ये शब्द वहां कुछ सालों में खत्म हो गया, लेकिन पूर्वांचल में स्थापित हो गया। 80 के दशक में पूर्वांचल के दो बाहुबली हरिशंकर तिवारी और वीरेंद्र प्रताश शाही के लोगों के बीच शुरू हुई वर्चस्‍व की जंग से गोरखपुर दुनिया के अपराध मानचित्र पर आ गया। इसकी तुलना अमेरिका के शिकागो शहर से की जाने लगी। बाद में ये दोनों बाहुबली सदन में पहुंचे। हरिशंकर तिवारी 1985 में जेल से चुनाव लड़कर पहली बार चिल्‍लूपार से विधायक बने तो वीरेन्‍द्र प्रताप शाही 1980 में महराजगंज की लक्ष्‍मीपुर विधानसभा सीट से। 1997 में पूरब के डॉन श्रीप्रकाश शुक्‍ला ने लखनऊ में वीरेन्‍द्र प्रताप शाही की हत्‍या कर दी थी। कहा जाता है कि पूरी यूपी में दहशत कायम करने वाला श्रीप्रकाश यदि किसी से घबराता था तो वह हरिशंकर तिवारी ही थे।

इटली के गैंगवार पर बनी फिल्म का असली वर्जन गोरखपुर यूनिवर्सिटी में देखने को मिला। वर्ष 1975 में माइक से ऐलान होता था कि 12 बजे दोपहर से शाम 4 बजे तक कोई घर से नहीं निकले, क्योंकि गोलियां चलेंगी। उस दौरान ताबड़तोड़ गोलियां चलतीं भी थीं। सड़कें सूनी रहती थीं। प्रशासन भी 4 बजे के बाद ही घटनास्थल पर पहुंचता था। गोरखपुर जिले में हरिशंकर तिवारी और बलवंत सिंह का अलग-अलग गुट बन गया। रेलवे स्क्रैप के ठेकों के लिए दोनों की अदावत खूनी हो गई।

विधायक की हत्या से नेता बन गए शाही

हरिशंकर तिवारी और बलवंत सिंह गुटों के बीच कई बार गोरखपुर बीच शहर में भिड़ंत हुई, गोलियां चलीं। निर्दोष लोग मारे गए। 30 अगस्त 1979, लखनऊ और गोरखपुर के छात्रसंघ अध्यक्ष रह चुके कौड़ीराम के विधायक रवींद्र सिंह को गोली मार दी गई। उस वक्त सरकार में इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के पूर्व छात्रसंघ अध्यक्ष सत्यप्रकाश मालवीय मंत्री थे। रवींद्र के लिए तुरंत स्टेट प्लेन की व्यवस्था की गई लेकिन उसके पहले ही उनकी मौत हो गई। इसके बाद गोरखपुर में ठाकुरों के नेता वीरेंद्र प्रताप शाही बन गए। गोरखपुर शहर इन दोनों गुटों को अच्छे से जान गया था। यहां अब दोनों की मर्जी ही चलती थी। शाही महाराजगंज में, तो तिवारी गोरखपुर में दरबार लगाते। लोग अपनी समस्याओं को थाने या कचहरी ले जाने के बजाय इनके दरबार में पहुंचाते और तुरंत निपटारा हो जाता था।

घबराता था श्रीप्रकाश शुक्‍ला भी 

गोरखपुर में जरायमपेशे में उस समय श्रीप्रकाश शुक्ला की खूब धमक थी। उसने तत्कालीन सीएम तक को मारने की सुपारी ले ली थी। वर्ष 1993 में श्रीप्रकाश ने मनबढ़ छात्रनेता राकेश तिवारी नाम की सरेआम गोली मारकर हत्या कर दी। इसके बाद श्रीप्रकाश का नाम गोरखपुर के हर घर तक पहुंच गया। श्रीप्रकाश को पुलिस खोज रही थी। तब आरोप लगे थे कि उसे संरक्षण हरिशंकर तिवारी के कुछ समर्थकों ने ही दी थी। बाद में श्रीप्रकाश ने बिहार के सबसे बड़े बाहुबली सूरजभान सिंह से हाथ मिला लिया। बताते हैं कि हरिशंकर तिवारी इससे नाराज हो गए। इसी दौरान श्रीप्रकाश ने 1997 में महाराजगंज के बाहुबली विधायक वीरेंद्र प्रताप शाही की लखनऊ में हत्या कर दी। तब आरोप लगे थे कि यह हत्या हरिशंकर तिवारी के कहने पर की गई। बाद के दिनों में हरिशंकर के लोगों और श्रीप्रकाश में बिगड़ गया। कहा जाता है कि पूरी यूपी में दहशत कायम करने वाला श्रीप्रकाश किसी से घबराता था तो वह हरिशंकर तिवारी ही थे।



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